सोमवार, 25 मई 2020

वेश्या व्यथा / महाकवि फेसबुकिया बाबा






कोरोना काल में वेश्या व्यथा
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इस जिंदगी से अच्छी
तो बिकी जिंदगी थी
साठ दिन से ग्राहकों
का नाज़ुक इंतजार
बिक्री बाकी है

मेरे बिकने में शामिल है
मेरी भूख
उम्मीदों की साँसें
मेरे बिकने में शामिल है
मेरा गरीब बाप
मेरी मजबूर माँ

मेरे बिकने में शामिल है
शहर कोतवाल
वो सभी रईस
जिनकी आदमियत
फना हो गई है

मेरे बिकने में शामिल है
वो  ठेकेदार
जिसने मुझे
बच्ची से नगर वधू
बना दिया

मेरे बिकने से
मिलती है
मेरे परिवार को रोटी
मेरी माँ को दवाई
मेरी बहन को कपड़े
और मुझे मिलती है
तसल्ली
झूठी ही सही।

1 टिप्पणी:

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