*तुझे क्या कहूं*
*बीमारी कहूं कि बहार कहूं*
*पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं*
*संतुलन कहूं कि संहार कहूं*
*कहो तुझे क्या कहूं*
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*मानव जो उदंड था*
*पाप का प्रचंड था*
*सामर्थ्य का घमंड था*
*मानवता खंड-खंड था*
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*नदियां सारी त्रस्त थी*
*सड़के सारी व्यस्त थी*
*जंगलों में आग थी*
*हवाओं में राख थी*
*कोलाहल का स्वर था*
*खतरे में जीवो का घर था*
*चांद पर पहरे थे*
*वसुधा के दर्द बड़े गहरे थे*
*फिर अचानक तू आई*
*मृत्यु का खौफ लाई*
*मानवों को डराई*
*विज्ञान भी घबराई*
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*लोग यूं मरने लगे*
*खुद को घरों में भरने लगे*
*इच्छाओं को सीमित करने लगे*
*प्रकृति से डरने लगे*
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*अब लोग सारे बंद है*
*नदिया स्वच्छंद है*
*हवाओं में सुगंध है*
*वनों में आनंद है*
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*जीव सारे मस्त हैं*
*वातावरण भी स्वस्थ है*
*पक्षी स्वरों में गा रहे*
*तितलियां इतरा रही*
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*अब तुम ही कहो तुझे क्या कहूं*
*बीमारी कहूं कि बहार कहूं*
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*पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं*
*संतुलन कहूं कि संहार कहूं*
*कहो तुझे क्या कहूं*
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🙏🏼🌹
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