बुधवार, 6 मई 2020

प्रेम / मनु लक्ष्मी मिश्रा


एक पुरानी प्रेम कविता जो कभी पुरानी नहीं हो सकती,क्य़ोकि जब तक दुनिया है तब तक प्यार है, मोहब्बत है-

सपनों का आना जैसे
तारों का टिमटिमाना ,
तुम्हारा खामोश रहना और
अपलक मुझे निहारना ,
भीनी हवा के मानिन्द
 मुझसे लिपट जाना ,
तुम्हारा दिल के साज को छेड़ना
 और मेरी तन्हाइयों को दूर करना
क्या ये सपना है या
मेरे मन का अन्तर्द्वन्द ?
प्रिय तुमने मेरी खामोश
नजरों को अपनी पलकों
 में छिपा लिया था न ?
और मेरी गूंगी जुबान पर
आई लव यू लिख दिया था न ?
मौन क्यों हो ,उत्तर क्यों नहीं देते ?
मैं जानती हूँ तुम कुछ
कह पाओ या न कह पाओ
चाहे जितना चुप रहो
 लेकिन मेरे बिना रह न पाओगे
मेरे विषय में तमाम दुनिया की
गैर दुनियाबी बातें सह न पाओगे
मेरा किरायेदार मन जो
रच बस गया है तुममें
उससे अपने दिल का मकान
खाली न करा पाओगे ।
फूलों में बसी खुशबू हूँ मैं जिसे
तुम चाह कर भी जुदा न कर पाओगे
और दर्दे जुदाई से डरकर एकदिन
फिर मेरे ही आगोश में आओगे.....
फिर मेरे ही आगोश में आओगे.........
                                                 ."मनु "

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