गुरुवार, 14 मई 2020

सवाल बना हुआ है / रिफ़त शाहीन



कहानी

सवाल बना हुआ है

सिंक में पड़े ढ़ेर सारे बर्तनों ने नीलिमा को आज फिर मुँह चिढ़ाया ... पिछले एक महीने से वो इन कलमुंहे बर्तनों दो दो हाथ कर रही थी .... मगर बर्तन थे कि उसके सब्र का इम्तेहान लेने से बाज़ ही नही आ रहे थे | जितनी बार उन्हे धो कर रखो अगली सुबह फिर एक ढ़ेर इकट्ठा ... थक गई थी नीलिमा .... इस लॉकडाउन ने उसे एक ऐसे इम्तेहान में ड़ाल रखा था कि उसे कुछ अच्छा ही नही लग रहा था | ऊपर से पतिदेव का ये जुमला .... दो चार बरतन ही तो धोने पड़ते हैं तुमको ,खाना तो मैं ही बना लेता हूँ ... औरत हो क्या इतना भी नही कर सकती? वो तुनक कर कहती | तो तुम ही धो लिया करो दो चार बरतन ...?
ओके चलो मैं धो लेता हूँ.... आज से ड्यूटी चेंज , तुम खाने कि ज़िम्मेदारी लो मैं बरतन धो लेता हूँ |
वो इस डील पर इसलिए तयार नही थी कि बरतन तो केवल सुबह धोने पड़ते हैं मगर खाना तो तीनों समय बनता है ... खाना बनाना मतलब सारे दिन कि आहुती ... वो पति को घूरती... कोरोना को कोसती ... भुनभुनाती हुयी किचन में जाती और अपना सारा गुस्सा उन बरतनो पर निकालती जिसे कभी बड़े चाव से ख़रीद कर लाई थी और इन्ही बरतनो के कारण महरी को हर रोज़ चार बात सुनाया करती थी | धीरे नही रख सकती हो इन्हे ... पता है ये नॉन स्टिक कढ़ाई कितनी कोस्टली है ? जितनी तुम्हारी एक महीने की पगार है उससे भी ज़्यादा | और ये तवा ये तो कढ़ाई से भी ज़्यादा कास्टली है ..... लेकिन तुम गंवार लोग क्या जानो इनकी कद्र.....उसके घमंड भरे जुमले सुन कर महरी बेचारी बस इतना ही कहती | बीबी जी ! हम गरीबन का तो पेट ही भर जाए यही बहुत है ,हम तो दो वक़्त की रोटी के लिए सारा दिन मेहनत करते हैं .... हमें इससे कहाँ मतलब होता है कि रोटी मिट्टी के तवे पर बनी है या चाँदी के | महरी कि ऐसी बातें सुन कर नीलिमा बुरा सा मुँह बनाते हुये कहती | तुम लोगों के पास भूक के सिवा तो कोई बात ही नही होती ....अजीब समाज है तुम लोगों का भी  बस भूक ,भूक भूक ,,.जब मुँह खोलोगी भूक की ही बात करोगी .. खैर जाते समय रात का बचा खाना लेती जाना ,एक समय की भूक तो मिट ही जाएगी तुम्हारी और तुम्हारे चार बच्चों की | .... और हाँ एक भी बरतन टूटा तो तुम्हारी पगार से ही भरपाई होगी | लेकन आज उससे ख़ुद न जाने कितने कीमती टूटे थे कभी धोते समय कभी रैक में सजाते समय लेकिन उसे कहाँ फिक्र थी इस बात कि ,उसे फिक्र थी तो बस अपने फीके पड़ चुके हाथों की जो बरतन घिस घिस बदरंग हो रहे थे ,अपने सुंदर तराशे हुये  नाखूनों की | नीलिमा जिस सोसाइटी में रहती थी वहाँ कोरोना नाम की इस बीमारी से बस इतना ही फर्क पड़ा था कि लोग अपने अपने घरों में क़ैद होकर रह गए थे और उन विलासी महिलाओं को भी घर के काम करने पड़ रहे थे जिन्होने अपनी पूरी लाईफ़ में एक गिलास पानी भी ख़ुद उठ कर नही पिया था…. नीलिमा को तो सारी रात इस सोच में नींद नही आती  कि, सुबह उसे बरतनो के ढ़ेर से उलझना है ... उफ़्फ़ ये समस्या कब सुलझेगी ? कब ये लॉकडाउन ख़त्म होगा ? ये सब सोच सोच कर वो अवसाद में जाने लगी थी | ऊपर से न्यूज़ चैनल पर आती खबरों ने तो उसका रहा सहा चैन भी छीन लिया था | हर रोज़ बढ़ते कोरोना पेशेंट और उसी के साथ बढ़ती लॉक डाउन अवधि ....यानि महरी के आने का अभी कोई चांस नही | उसने एक बार फिर अपने सुंदर हाथों की ओर देखा .... जो डिशवाश के संपर्क में आने के कारण अपनी रंगत खोता जा रहा था ,नाखूनों पर लगी नेल पोलिश जगह जगह से उखड़ चुकी थी ... उसे रोना आने लगा ... उसने सोचा ड्यूटी बदल लेते हैं  काम ज़्यादा है तो क्या हुआ मेरे इन खूबसूरत हाथों का तो यूं बुरा हाल नही होगा |और उसी दिन उसने पति के सामने ड्यूटी बदलने का प्रस्ताव पेश कर दिया | पति को कोई आपत्ति नही हुई मगर उन्होने इतना ज़रूर कहा | नीलिमा ! सोच लो इतना आसान नही है तीन वक़्त का खाना बनाना | तो क्या तुम मेरा हाथ नहीं ब्टाओगे ? उसने मनुहार की |
बटा दूँगा ... चलो सुबह का नाश्ता मैं बना दिया करूंगा |
लव यू डार्लिंग ! नीलिमा ने पति को प्यार से देखते हुये कहा तो पतिदेव बोले | तो फिर ऐसा करो आज डिनर में पनीर मुगलई बना लो बच्चे भी ख़ुश हो जाएंगे |
बना तो लूँ पर रेसिपी नही आती मुझे |
वो यू ट्यूब से देख लेना ओके |
ओके | इतना कह कर नीलिमा किचन में चली गई ... मगर उफ़्फ़ जितना आसान उसने कुकिंग को समझा था उतनी थी नही | प्याज़ काटने में आंखो का बुरा हाल हुआ तो मिर्च से उँगलियाँ जलने लगीं ,आटा गूथने में बचे खुचे नाखून चले गए ,रोटी आड़ी बेड़ी बनी तो सही मगर कलाई जल गई | ऊपर से पति और बच्चों को खाना पसंद भी न आया | ख़ूब नाक सिकोड़ी सबने | अब तो नीलिमा के सब्र की हद ही हो गई और उसने निर्णय ले लिया कि वो कल ही होममेड को फोन करके बुलाएगी और किचन उसके हवाले करके चैन की साँस लेगी | कोरोना नाम की महामारी के इस साईड इफ़ेक्ट से मरने से  तो लाख बेहतर है ,कोरोना से मर जाया जाए | उसके इस निर्णय का पति और बच्चों ने जम कर विरोध किया मगर वो नही मानी और उसने मेड को फोन लगाया | फोन उसकी बेटी ने उठाया और बोली | बीबी जी ! मम्मी तो घर पर नही हैं,|
इस लॉकडाउन में कहाँ गई है बेवकूफ़ ? नीलिमा झुँझला पड़ी |
गाँव | लड्की ने मरी हुई आवाज़ में कहा |
कैसे गई कोई सवारी तो चल नही रही है ?
पैदल गई है बीबी जी !
झूठ मत बोल ... क्या मैं जानती नही तेरा गाँव यहाँ से चालीस किलो मीटर दूर  है और कोई इतनी  दूर वो भी इस चिलचिलाती धूप में पैदल कैसे जा सकता है ? और फिर उसे जरूरत क्या आन पड़ी गाँव जाने की?
बीबी जी ! कई दिन से घर में चूल्हा नही जला, छोटे छोटे भाई बहन भूक से रो रहे थे ,इसलिए मजबूरी में अम्मा गाँव गई है,दादी से आनज लेने |
यहाँ भी तो सरकार और बहुत से लोग अनाज बाँट रहे हैं तो गाँव जाने की क्या जरूरत थी ?
बीबी जी ! अम्मा बड़ी स्वाभिमानी है फोटो खिचवा कर अनाज नही लेगी |
एक तो तुम गरीबों का ये स्वाभिमान ... उफ़्फ़ ... अरे तो मुझसे कहती मैं दे देती |
अम्मा बोली थी जब बीबी जी का काम नही कर रही तो किस मुँह से मदद माँगने जाऊँ |
ठीक है ठीक है आ जाए तो भेज देना उसे | इतना कह कर नीलिमा ने फोन कट कर दिया और पति की ओर देखते हुये बोली | नरेंद्र ! कितने झूटे होते हैं ये जाहिल गरीब लोग ... तुम्हीं बताव क्या कोई चालीस किलो मीटर की दूरी पैदल तय कर सकता है ? ये लोग न....  इमोशनल करना ख़ूब जानते हैं ताकि सामने वाला इनकी झोली ठूंस ठूंस कर भर दे और ये अपने स्वाभिमान का राग भी अलापते रहें |
हो सकता है वो सच बोल रही हो ? पति ने समझाना चाहा |
कैसे मान लूँ इस अनहोनी बात को ?
अरे जब लोग दिल्ली से चल कर बिहार ,मुंबई से चल कर up  पहुँच सकते हैं तो ... पति इतना ही बोल पाये थे की नीलिमा ने उन्हे घूर कर देखा और भुनभुनाती हुई किचन में आ गई | बड़ी मुश्किल से आज उसने ड़ाल चावल बनाया और अपने कमरे में आकर सर थाम कर बैठ गई और सोचने लगी | इस कोरोना नाम की महामारी ने इन तीस दिनों में क्या कुछ नही छीना उससे ... उसकी किटी पार्टी ,उसकी सोशल अक्टिविटीज़ , मूवीज़ ,शॉपिंग ,होटलिंग ,ब्यूटीपार्लर उफ़्फ़ जिंदगी की सारी खुशियाँ छीन ली इस महामारी ने और जाहिल औरतों की तरह झोक दिया चूल्हे चौके में |  इस महामारी का इतना भयानक रूप होगा उसने सोचा ही नही था | उसे लगा इन चीज़ों के बिना तो जिंदगी की कल्पना तक संभव नही फिर गरीब कैसे सिर्फ रोटी के सहारे जी लेते हैं ? ख़ैर मुझे क्या ये उनकी लाईफ़ स्टाईल है मुझे तो मेरी लाईफ़ स्टाईल से मतलब है ... हे ईश्वर  जल्दी विदा करो इस कोरोना नाम की बीमारी को वरना मेरी नसें फट जाएंगी इस यातना में ज़्यादा जी नही पाऊँगी मैं | नीलिमा रोने लगी थी ,उसका दिल चाह रहा था वो अपने बाल नोच ड़ाले कपड़े फाड़ कर पूरे घर को सर पर उठा ले ,क्यूंकी उससे अब और सहन नही हो रही थी लॉकडाउन की ये स्थिति | उधर उसकी दशा से अंजान ,उसकी बेटी ने अपने कमरे से उसे आवाज़ दी | मम्मा ! आज लंच में मलाई कोफ्ते बना लो न बहुत मन हो रहा है |
बेटी की इस फरमाईश ने तो उसे ऐसा गुस्सा दिलाया कि वो अपना आपा ही खो बैठी और फिर माँ बेटी में जम s
 कर वाद विवाद हुआ ... बेटी चूंकि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी इसीलिए चूल्हा चौका करने का उसके पास समय ही नही था | लेकिन नीलिमा को उसका इस तरह फरमाईश करना खल गया और फिर पति ने भी बेटी की ही तरफदारी क्या कर दी नीलिमा तो जैसे अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी  और उसी रात उसने सुसाईड कर लिया | कोरोना नाम की महामारी ने इस घर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था क्या ये कहना उचित होगा ?B या कोरोना से भी ज़्यादा घातक बीमारी जिसे असंवेदनशीलता कहते हैं वो थी इस भरे पूरे घर की तबाही की जिम्मेदार ? सवाल बना हुआ है |
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मोब. 7007614161

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