कहानी =
मां का मन / विजय केसरी
अब सरस्वती देवी अपने मोहल्ले की सबसे बुजुर्ग महिला हो गई । उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद वह पूरी तरह स्वस्थ है। उन्हें किसी भी तरह की कोई गंभीर बीमारी नहीं है । वह अंग्रेजी दवा ना के बराबर ही लेती है। उसे इंजेक्शन लिए वर्षों बीत गए । मौसम बदलने पर उन्हें खांसी, सर्दी, बुखार जरूर लग जाया करता है, किन्तु वह घरेलू दवा खाकर ही ठीक हो जाती है। सरस्वती देवी की उम्र लगभग बिरासी वर्ष हो गई है । जब वह मात्र चौदह वर्ष की थी, तभी विवाह होकर इस मोहल्ले में आई थी। तब से लेकर अब तक वह अपने खानदानी मकान पर ही है। उसने अपने बलबूते खपरैल मकान को आज दो तल्ला मकान में तब्दील कर दिया । मकान में सारे सुख - सुविधा की चीजें लगा दी ।
सरस्वती देवी इस मोहल्ले की पहली बहु थी, जिसने ससुराल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी । आगे वह पढ़ना चाहती थी । लेकिन गरीबी और गृहस्थी के कामों के कारण उसकी आगे की पढ़ाई नहीं हो पाई थी । आगे की पढ़ाई के लिए उसने कोशिश भी की थी, लेकिन घर के सदस्यों के सपोर्ट नहीं मिलने की वजह से वह चाह कर भी पढ़ाई जारी नहीं रख पाई थी। धीरे धीरे सरस्वती देवी गृहस्थी में उलझती गई थी।
शादी के पन्द्रह साल बीत जाने के बाद भी सरस्वती देवी को एक भी बच्चे नहीं हुए थे । इस बात के लिए उसे अपनी सास और तीन - तीन ननदों से बहुत ताना सुनना पड़ता था। लेकिन सरस्वती देवी को विश्वास था कि एक न एक दिन उसकी गोद जरूर भरेगी । वह तानों को सुनती थी, लेकिन पलट कर कभी भी जवाब नहीं देती थी। सरस्वती देवी के पति रामधन बच्चा नहीं होने के कारण कभी भी ताना नहीं दिया था, बल्कि मां और बहनों के ताने के लिए माफी मांगता था। सरस्वती देवी की तरह उसके पति को भी विश्वास था कि ईश्वर उसे बेऔलाद नहीं रखेंगे।
भगवान ने उन दोनों की सुन ली थी। शादी के ठीक सत्रह साल बाद सरस्वती देवी को एक पुत्र हुआ था। इसके ठीक चार साल के बाद उसे एक पुत्री की भी मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। अब वह दो बच्चों की मां बन गई थी । सरस्वती देवी दो बच्चों की मां बनने के बावजूद कभी भी अपनी सास और तीनों ननदों से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी । बल्कि वह और भी विनम्र हो गई थी ।
सरस्वती देवी घर का कामकाज करते हुए अपने बच्चों पर पूरा ध्यान देती थी । उसकी शादी से पूर्व दोनों ननदों की शादी हो गई थी। तीसरी ननद की शादी उसने बड़े ही धूमधाम से की थी । अपनी हैसियत से ज्यादा बढ़ चढ़कर उसने लेन - देन किया था। उसने अपने सारे गहने ननद को दे दी थी। आज भी उस बात की चर्चा होती रहती है। तीसरी ननद की विदाई के बाद सिर्फ पांच जन ही घर में बच्चे थे ।
घर खर्च में सहयोग करने के बाबत मौका देख कर एक दिन सरस्वती देवी ने अपने पति से कहा,- 'मैं भी गृहस्थी के खर्च में कुछ सहयोग करना चाहती हूं। मैं सिलाई का काम जानती हूं। घर पर ही सिलाई का काम शुरू करना चाहती हूं। ताकि बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पाऊं । आपके महीने भर की आमदनी से बड़ी मुश्किल में घर का खर्च निकल पाता है। मेरी सिलाई से घर के काम पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। और आमदनी भी होती रहेगी। इस मोहल्ले में सिलाई की एक भी दुकान नहीं है। सिलाई के लिए मोहल्ले वालों को मुख्य बाजार जाना पड़ता है। मुझे मोहल्ले से ही सिलाई का बहुत काम मिल जाएगा।'
यह सुनकर उसके पति रामधन ने कहा,- 'तुम घर पर सिलाई का काम करेगी तो मोहल्ले वाले क्या कहेंगे ? मोहल्ले की कोई भी बहू इस तरह का काम नहीं करती है। हजारीबाग कोई बड़ा शहर नहीं है, बल्कि एक गांव के समान ही है। इसलिए कोई काम ऐसा मत करो कि मोहल्ले वाले उसे गलत समझ लें। रही बात बच्चों की पढ़ाई की तो मैं पार्ट टाइम कुछ करने के लिए सोच रहा हूं । अगर मैं तुम्हें इजाजत दे भी देता हूं, तो मां तुझे घर पर सिलाई का काम करने की इजाजत कभी नहीं देगी '।
यह सुनकर सावित्री चुप हो गई थी। रामधन भी अपने काम में निकल पड़ा था। सरस्वती देवी चुप जरूर हो गई थी, लेकिन उसके दिलो-दिमाग में सिलाई का काम ही घूम रहा था। वह चाहती थी कि अपने सिलाई के हुनर के बल पर कुछ करें। लेकिन रामधन के जवाब से वह खुश नहीं थी । इसके आगे वह कर भी क्या सकती थी ? उसने विचार किया कि क्यूं ना सासू मां से इस बाबत पूछ लूं। अगर सासू मां इजाजत दे देती है तो ठीक है । इससे भला तो घर का ही होगा।
सरस्वती देवी ने सास के पास आकर कहा,- 'मां बच्चे अभी छोटे हैं । कुछ सालों में स्कूल जाने लायक हो जाएंगे । मैं चाहती हूं कि बच्चें कोई अच्छे स्कूल में पढ़े। लेकिन घर की आमदनी उतनी नहीं है कि बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा पाऊंगी। इसलिए मैं चाहती हूं कि घर पर ही सिलाई का काम शुरू करूं। मैंने सिलाई का प्रशिक्षण एक अच्छे संस्थान से लिया है । सिलाई का काम भी बढ़िया से जानती हूं । इससे घर में कुछ आमदनी भी बढ़ जाएगी । मैं यह काम घर के काम के साथ ही करती रहूंगी'।
सासु मां सरस्वती देवी की बातें सूनकर आग बगुला हो गई। उन्होंने तेज आवाज में कहा,- 'बहू तुम यह क्या बोल दी ! अब हम लोगों के दिन इतने खराब हो गए हैं कि बहू की कमाई खाएं । मुझे मुझे ऐसी कमाई नहीं खानी है । आज तुम यह बात बोल दी है ,भविष्य में कभी ऐसी बात मुंह से मत निकालना । रामधन जब बच्चे पैदा किया है, तो अच्छे स्कूल में पढ़ा भी लेगा । बस तुम अपनी गृहस्थी का काम देखो। मोहल्ले की कोई बहू कमाकर घर चलाती है, भला । आदमी का काम कमाना है और औरत का काम घर चलाना है। इसके आगे तुम सोचना भी नहीं'।
सासु मां की ऐसी ताने भरी बातें सुनकर सरस्वती देवी को हिम्मत नहीं हुई कि आगे कुछ और कह सके । वह चुप ही रहना पसंद की थी। और वहां से निकल कर अपने कामों में लग गई थी।
समय के साथ दिन भी बीतते चले जा रहे थे। सरस्वती देवी फिर कभी भी ना अपने पति और ना ही अपनी सासु मां से सिलाई के बाबत बोली थी। सरस्वती देवी ने अपने बड़े बेटे राकेश का नाम एक सरकारी स्कूल में लिखवा दिया था । छोटी बेटी ममता अभी छोटी थी। दोनों बच्चों को सरस्वती देवी घर पर बहुत ही मन लगाकर पढ़ाती थी । आर्थिक अभाव में भी दिन हंसी खुशी बीत रहे थे।
एक दिन उनकी सास भी इस दुनिया से चल बसी। सरस्वती देवी एवं उनके पति रामधन ने मां का श्राद्ध कर्म बहुत ही बढ़िया ढंग से किया था। सासू मां कुछ पैसे बचा कर रखी थी । इससे ही उनका काम क्रिया बहुत ही बढ़िया ढंग से हो पाया था। अन्यथा रामधन पर कर्ज का बोझ और बढ़ जाता ।
सासु मां के निधन का जब साल संबत बीत गया, तब एक दिन सरस्वती देवी ने अपने पति से कहा,- अब बच्चे भी बड़े होते जा रहे हैं। इस साल ममता का भी स्कूल में नाम लिखवाना है । आपकी आमदनी भी ज्यादा बढ़ नहीं पा रही है । घर के खाना खर्चा के लिए आपकी आमदनी ठीक है । लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए हम दोनों को ही ना सोचना पड़ेगा। पैसे की कमी कारण ही रमेश का नाम सरकारी स्कूल में लिखवा दिया । आगे दोनों बच्चों को पढ़ाना है । बेटी की शादी के लिए कुछ पैसे जमा भी करना है। दिन-ब-दिन आपकी और हमारी उम्र भी बढ़ती चली जा रही है। इसीलिए मैं चाहती हूं कि घर पर सिलाई का काम शुरू कर दूं। अगर मैं घर पर सिलाई का काम करती तो कुछ आमदनी बढ़ जाती। आप अकारण मोहल्ले वालों की चिंता करते हैं। कोई कुछ नहीं बोलेगा । अब कितनी लड़कियां कमा कर घर चला रही हैं । आप मुझे घर पर सिलाई के काम करने का परमिशन दें दे । आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी',।
यह सुनकर रामधन थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसने कहा, - 'ठीक है ! तुम घर पर सिलाई का काम शुरू कर दो। लेकिन सिलाई मशीन कहां से लाएगी ? अभी हम लोगों के पास इतने पैसे तो नहीं है'।
पति रामधन की बातें सुनकर सरस्वती देवी फूली नहीं समाई ।
उसने कहा,- 'आपको सिलाई मशीन की कोई चिंता नहीं करनी है। हमारे एक रिश्तेदार सुबोध ओझा जी हैं, जो बिहार सेवा मंडल के सचिव हैं। वे सिलाई प्रशिक्षित महिलाओं को मुफ्त में सिलाई मशीन वितरण कर रहे हैं। यह खबर मैंने कल ही एक अखबार में पढ़ी। मैंने तुरंत सुबोध भैया से फोन पर इस बाबत बात भी की। उन्होंने आश्वासन दिया है कि मशीन मैं तुम्हें जरूर दूंगा'।
सरस्वती देवी से यह बात सुनकर रामधन बहुत ही खुश हुआ और उसने कहा,- सरस्वती ! भगवान भी चाहते हैं कि तुम घर पर सिलाई का काम शुरू कर दो'।
एक सप्ताह के बाद बिहार सेवा मंडल के सचिव सुबोध ओझा ने एक सिलाई मशीन सरस्वती देवी को प्रदान किया था। सरस्वती देवी सिलाई मशीन पाकर बहुत खुश हुई थी। उसी दिन से उसने सिलाई का काम घर पर प्रारंभ कर दिया था । धीरे धीरे कर मोहल्ले की महिलाओं ने उसे काम देना प्रारंभ किया था। देखते ही देखते सरस्वती देवी का सिलाई का काम जोर पकड़ लिया था। सरस्वती देवी को सिलाई का अच्छी जानकारी थी । उसे सिलाई के काम में मन भी लगता था। वह अपने ग्राहकों को समय से पहले काम पूरा कर दे देती थी । वह पारिश्रमिक भी अन्य सिलाई दुकानों के मुकाबले कम लेती थी । काम भी बहुत ही बढ़िया करके देती थी । इस बात का प्रचार आसपास के मोहल्ले में भी फैल गई थी। जो भी महिलाएं एक बार सरस्वती देवी से सिलाई करवा लेती , दोबारा उसी को ही काम देती थी। देखते ही देखते कुछ महीनों में ही सिलाई का काम स्पीड पकड़ लिया था। इधर सरस्वती देवी दो और सिलाई मशीन खरीद ली थी। उसने सिलाई के काम में मदद के लिए दो महिलाओं को काम पर रख लिया था। उसने अपने दोनों बच्चों का नाम विवेकानंद सेंट्रल स्कूल में लिखवा दिया था । बच्चे बहुत ही बढ़िया ढंग से पढ़ रहे थे । आर्थिक रूप से सरस्वती देवी मजबूती भी हो गई थी। उसने तीन साल के भीतर अपने खपरैल मकान को दो तल्ला मकान में परिवर्तित कर दी थी। घर में हर तरह की खुशहाली आ गई थी।
सरस्वती देवी का सिलाई का काम दिन ब दिन बढ़ता ही चला जा रहा था। अब उसके पास दस सिलाई मशीनें थीं। तेरह महिलाएं उसके सिलाई के काम में सहयोग करती थी । वह अपने सिलाई के काम में सहयोग करने वाली महिलाओं को अच्छी तनख्वाह देती थी। सभी महिलाएं मन लगाकर काम करती थीं ।
तभी अचानक एक दिन एक सड़क हादसे में सरस्वती देवी के पति रामधन के देहावसान का समाचार आया। यह खबर सुनते ही सरस्वती देवी मूर्छित हो गई थी । दुकान में मौजूद महिलाएं सरस्वती देवी के चेहरे पर पानी छिड़ककर सांत्वना देने लगी थी । सरस्वती देवी को जब होश आया, तो वह विलख - विलख कर रोने लगी थी। सरस्वती देवी ने ऐसी अनहोनी की कल्पना तक नहीं की थी ।
सरस्वती देवी का पुत्र राकेश ने मुखाग्नि दिया था। समय के साथ श्राद्ध कर्म संपन्न हो गया था । श्राद्ध कार्यक्रम में सरस्वती देवी के तीनों ननंद - ननदोई सहित परिवार के अन्य रिश्तेदार भी सम्मिलित हुए थे। सभी रिश्तेदारों ने सरस्वती देवी को संतावना दिया था । श्राद्ध कार्यक्रम के बाद सभी रिश्तेदार अपने - अपने घर लौट गए थे। सरस्वती देवी के कंधों पर भारी बोझ आ गिरा था। वह कई दिनों तक अपने दोनों बच्चों को पकड़कर रोती रही थी । उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि रामधन के बिना आगे की गृहस्थी कैसे चलेगी ? वह मन को बहुत समझाती थी कि रामधन अब तो लौट कर वापस आएगा नहीं । उसके बिना मैं अपने बच्चों को अकेले कैसे बड़ा करूंगी ? बच्चों को कैसे पढ़ाऊंगी ? रह सोचकर वह फूट-फूटकर रोने लगती थी । इसी रोना-धोना में सरस्वती देवी का एक महीना से अधिक समय बीत गया था। सिलाई दुकान में कार्यरत महिलाएं सरस्वती देवी को बहुत ढांढस देती थी । समझाती थी । तब हुआ चुप हो जाती थी। फिर रात में रामधन को याद कर फूट-फूट कर रोने लगती थी। सरस्वती देवी के टूटते जाने से उनके दोनों बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।
एक दिन सिलाई दुकान में कार्यरत सावित्री ने सरस्वती देवी से कहा,- 'दीदी ! अब तो रामधन आने वाले नहीं है। लेकिन रामधन दो बच्चों की जवाबदेही आपको देकर सदा सदा के लिए चले गए। उनकी जवाबदेही को अब आपको ही पूरा करना है। आपको बच्चों को आगे पढ़ाना लिखाना है। इस तरह रोती रहेंगी तो काम कैसे चलेगा । अब अपना ध्यान बच्चों पर दीजिए। बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है'।
सावित्री के मुख से ऐसी बात सुनकर सरस्वती देवी ने आंसुओं को पोछते हुए कहा,- मुझे अपनी जवाबदेही का एहसास है । लेकिन रामधन के चले जाने से मैं बिल्कुल असहाय महसूस कर रही हूं । बार-बार उसी की याद आ जाती है । और मैं रो पड़ती हूं'।
यह सुनकर सावित्री ने कहा,- 'दीदी! आप अकेली नहीं है। हम लोग सभी आपके साथ हैं । अपने आप को कभी अकेला मत समझिए। जब भी हम लोगों की जरूरत होगी, हम सब आपके साथ हैं'।
सरस्वती देवी ने यह सुनकर कहा,- 'अब तुम लोग ही मेरे सच्चे सहयोगी हो'।
यह कहकर सरस्वती देवी, सावित्री को गले लगा ली थी। सावित्री उस रात अपने मन पर पत्थर बांध ली थी। वह अब आंखों से आंसू ना गिरने देगी । पति रामधन ने जो दो बच्चों की जवाबदेही उसके कंधों पर दी है। वह पूरी निष्ठा से पूरा करेगी ।
सावित्री की बातों का सरस्वती देवी पर बहुत ही गहरा असर पड़ा था । आज वह सुबह उठकर रो नहीं रही थी, बल्कि घर के कामकाज को निपटा कर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी । बीते डेढ़ महीने से मां को रोते देख बच्चे भी हदस गए थे ।आज मां को स्कूल के लिए तैयार करते देख बच्चे अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे। आज पहले की तरह सरस्वती देवी सिलाई दुकान का कामकाज देखीं थीं। वह अपने सहयोगियों को सिलाई के मुत्तलिक कुछ बातें भी बताई थी । इससे सभी महिला सेविकाएं बहुत खुश हुई थीं । सरस्वती देवी बहुत ही सरल स्वभाव की रहीं । मृदुभाषी भी उतनी ही रही । अपने काम के प्रति भी पूरी तरह ईमानदार रही । यही कारण था कि कोई उसकी दुकान छोड़ना ही नहीं चाहती थीं।
सिलाई दुकान और बच्चों के लालन-पालन में सरस्वती देवी अपनी पीड़ा को भूल ही गई थी। उसने अपने मन को बहुत ही भारी पत्थर से बांध दिया था । दिल उनका रोता जरूर था, लेकिन आंसुओं को आंखों तक पहुंचने नहीं देती थी। देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए थे।सरस्वती देवी अपने घर का काम संभालते हुए मोहल्ले वालों के सुख- दुख में बराबर खड़ी रहती थीं ।जरूरत पड़ने पर वह लोगों को धन से भी मदद करती थी। सरस्वती देवी के व्यवहार से मोहल्ले वाले बहुत खुश रहते थे। समय के साथ दोनों बच्चे बी.ए पास कर लिए थे। बेटा राकेश की बी.एड करने के बाद उसकी प्राइमरी स्कूल में सरकारी नौकरी हो गई थी। बेटी ममता की बैंक में नौकरी हो गई थी। सरस्वती देवी के दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए थे।
सरस्वती देवी एक योग्य लड़के से अपनी बेटी ममता की शादी कर दी थी । दामाद बेंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। बेटी की शादी के लिए सरस्वती देवी ने काफी मशक्कत की थी । तब जाकर यह शादी हो पाई थी। बेटी के लिए लड़का ढूंढने में सरस्वती देवी को पति रामधन की बहुत याद आई थी। लेकिन इस याद को उसने चेहरे पर कभी आने नहीं दिया था।
आज बेटी ममता दो बच्चों की मां बन गई है । बेटा राकेश की भी शादी हो गई । वह भी दो बच्चों का पिता बन गया है । घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रही।
बढ़ती उम्र और बेटा राकेश की नौकरी के कुछ सालों बाद सरस्वती देवी ने अपना सारा कारोबार सावित्री के हाथों में सौंप दिया था। बदले में उसने सावित्री से फूटी कौड़ी भी नहीं लिया था। आज सिलाई की उस दुकान से बीस महिलाओं का परिवार चलता है । सिलाई की यह दुकान अब सावित्री के घर पर चल रही है।
सरस्वती देवी के नाती - पोते जवान हो चले हैं ।सरस्वती देवी अपने जीवन से बहुत खुश थी । सिर्फ दुख एक ही था कि सुख के समय उसका पति साथ नहीं था । आज भी रामधन को याद कर उसकी आंखें नम हो जाती।
सरस्वती देवी को इस बात को लेकर बहुत संतोष था कि रामधन ने जो जवाबदेही उसके कंधों पर दी थी, वह पूरा हो गया था । वह अपने पोता -पोती के संग बहुत खुश रहती। बेटी ममता को भी ईश्वर ने दो बेटों से नवाजा । जब जब भी बेटी नैयहर आती तब सरस्वती देवी दोनों नातियों को खुब दुलार करती। सरस्वती देवी के लिए उनके बच्चे ही घर संसार बन गए।
सरस्वती देवी का नियमित मंदिर जाना । भजन मंडली में बैठना। फिर घर के कामकाज में बहू को सहयोग देना। पोता - पोती से बातें करना । इसी सब में उसका समय बीत जाता । बच्चे भी उसे बहुत स्नेह करते । सरस्वती देवी दान पुण्य भी खूब करती थी । लेकिन अपने दान पुण्य की बात किसी को बताती नहीं थी। जरूरत पड़ने पर ही सरस्वती देवी बोलती थी । अन्यथा ज्यादा समय चुप ही रहती थी। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी। जब कभी भी उसे अवसर मिलता तो एक-दो सप्ताह के लिए चतरा अपना नैयहर चली जाती । वहां भी उसे बहुत मान सम्मान मिलता। इसी तरह सरस्वती देवी के दिन बहुत ही हंसी - खुशी गुजर रहे थे।
एक दिन सरस्वती देवी ने टीवी देखा कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर देशभर में फैलती चली जा रही है। देशभर में काफी संख्या में लोग इस बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं। यह सुनकर सरस्वती देवी अंदर से भयभीत हो गई।
उसे, अपने बेटा - बहू, पोता - पोती, बेटी - दामाद और नाती -नतनी का ख्याल आ गया।
यह खबर देखने के बाद बिना देर किए सरस्वती देवी ने बेटा राकेश, बहु लक्ष्मी की मुखातिब होकर कहा, जब भी तुम सब घर से बाहर निकलो मास्क पहनकर। हाथ बराबर धोते रहो । लोगों से दो गज की दूरी बना करके रखो कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बहुत ही तेजी के साथ फैल रही है'।
मां की बात सुनकर बेटा राकेश ने कहा,- 'हां मां ! हम लोग ऐसा ही कर रहे हैं । कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर से भी ज्यादा खतरनाक है। इसलिए हम सबों को पहले से भी ज्यादा सावधानी रखनी है। मां हमने दोनों बच्चों को भी समझा दिया है'।
यह सुनकर सरस्वती देवी आश्वस्त हुई ।
फिर उसने कहा,-'बेटे राकेश तुम बिल्कुल सही बोल रहे हो। ममता और दमाद बाबू को भी मोबाइल पर इस बात की जानकारी दे दो ताकि वे लोग भी सावधानी से घर पर ही रहें। ज्यादा इधर-उधर ना निकले'।
यह सुनकर राकेश ने कहा,- 'मां ! कल ही मेरी ममता और संजय जी से बातचीत हुई थी। संजय जी घर से ही अपना काम कर रहे हैं। वे लोग बिल्कुल ठीक हैं'।
यह सुनकर सरस्वती देवी के मन में शांति का अहसास हुआ । वह मन ही मन दुआ करने लगी थी कि हमारे सभी बच्चे कुशल रहें।
धीरे धीरे कर कोरोना की दूसरी लहर संपूर्ण देश में फैल गया। देश में मेडिकल इमरजेंसी जैसी स्थिति बन गई । एक दिन में तीन लाख से अधिक कोरोना संक्रमित मरीज मिलने लगे। प्रतिदिन चार हजार से अधिक जाने जाने लगी । देशभर में मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई कि कोरोना संक्रमित मरीजों को जीवन रक्षक दवाएं भी नहीं मिलने लगी थी। मरीजों को ऑक्सीजन गैस सिलेंडर की भी दिक्कत होने लगी थीं । आवश्यक दवाओं के लिए मरीजों के अभिभावकों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। ऑक्सीजन गैस सिलेंडर की जबरदस्त तरीके से ब्लैक मार्केटिंग हो रही थी । जीवन रक्षक दवाएं कई गुना अधिक दामों में बेचे जा रहे थे। एंबुलेंस सेवाओं में भी लूट मची हुई थी। मिलाजुला के देश की स्वास्थ्य व्यवस्था स्थिति तार-तार हो गई थी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कोराना को परास्तत करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दी थी । लेकिन कोरोना जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। संपूर्ण देश में एक डर का माहौल बन गया था। देश के सभी राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने राज्य में लॉकडाउन घोषणा कर दी थी। वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन की घोषणा करने में केंद्र सरकार की भूमिका को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। अगर केंद्र सरकार पहले ही लॉकडाउन की घोषणा कर देती तो स्थिति इतनी विकराल नहीं होती ।
सरस्वती देवी को अब टीवी देखने में भी डर लगता था। वह पिछले कई दिनों से टीवी पर समाचार भी नहीं देख रही थी । हमेशा भगवान से अपने बच्चों की सलामती के लिए दुआ करती रहती थी। भगवान से यह भी प्रार्थना करती कि भगवान मुझे ले जाना लेकिन मेरे बच्चों को सलामत रखना । घर में सामान की जरूरत पड़ने पर सरस्वती देवी खुद ही बाजार चली जाती थी। अपने बेटे राकेश, बहू लक्ष्मी और पोता - पोती को भी घर से बाहर जाने नहीं देती थी।
वह यह कहकर परिवार के सभी लोगों को रोक देती,- 'मेरी तो उम्र हो गई है। मैंने दुनिया देख ली है । अगर मैं चली भी जाऊंगी तो कोई फर्क नहीं पड़ता है। तुम लोगों ने अभी जीवन देखा ही कहां है ? तुम लोगों के कंधे पर घर की सारी जवाबदेही है।'
मां की बात यह सुनकर राकेश, लक्ष्मी और दोनों पोता - पोती चुप हो जाया करते थे। वे सभी टीवी पर समाचार देखकर पूरी तरह डरे हुए थे । लेकिन वे सभी अपने-अपने डर को एक दूसरे से छुपाए रहते थे। बहु लक्ष्मी को हर पल चिंता सताती रहती थी कि अगर राकेश को कोरोना हो गया तो मेरा और बच्चों का क्या होगा ? लेकिन मन की इस पीड़ा को कभी प्रगट नहीं होने देती थी । पति राकेश और बच्चों को घर से बाहर निकलने ही नहीं देती थी ।
जरूरत पड़ने पर ही सरस्वती देवी घर से बाहर निकलती अन्यथा घर पर ही रहती थी। बाजार जाते समय मुंह पर मास्क लगा लेती थी । हाथों में सैनिटाइजर लगा लेती थी। उसकी एक आदत थी, बार बार थूकने की। वह चाहकर भी इस आदत को रोक नहीं पाई थी। वह बाजार जाते - आते समय थूकने के लिए मास्क को हटा लेती फिर तुरंत मास्क पहन लेती थी। जब वह बाजार से वापस आती तो साबुन से हाथ धो लेती और पहने कपड़ों को गर्म पानी में खंगाल लेती थी।
एक दिन जब सरस्वती देवी राशन लेकर घर लौटी तो उसे थका - थका महसूस हो रहा था। और पूरे बदन में बहुत जोरों से दर्द हो रहा था। वह रात में सिर्फ एक ही रोटी खाई और दूध में हल्दी डालकर पी गई थी । इसके पहले भी उसे कई बार शरीर में दर्द होने पर दूध हल्दी पीने से ठीक हो गई थी । आधी रात के बाद उसे तेज बुखार लग गया था। वह बुखार से बड़बड़ाने लगी थी। राकेश बगल के ही कमरे में सोता था । मां की बड़बड़ाने की आवाज सुनकर वह तुरन्त उसके कमरे में गया। उसने मां के माथे को छुआ। मां बुखार से तप रही थी। उसने तुरंत अपने कमरे में गया और एक बुखार की गोली लाकर मां को दिया। पहले तो मां खाने से इंकार की किन्तु बेटे के आग्रह पर वह गोली खा गई ।
राकेश ने कहा,- 'मां ! घबराने की कोई बात नहीं सुबह तक तुम ठीक हो जाओगी। ठंडा गरम मौसम के कारण तुम्हें बुखार लग गया है'।
यह कह कर राकेश अपने कमरे में चला गया। मां को अचानक बुखार हो जाने से राकेश भी चिंतित हो गया था। उसने लक्ष्मी को जगा कर मां को बुखार वाली बात बता दी । लक्ष्मी यह सुनकर चिंतित हो गई ।
तब लक्ष्मी ने कहा,- 'कहीं मां को कोरोना तो नहीं हो गया है ? क्या आपने मां को छुआ तो नहीं ?
यह सुनकर राकेश ने कहा,- 'मां का बुखार देखने के लिए माथा छुआ । तुम कैसी बात बोल रही हो ? मां को इससे पहले भी कई बार बुखार लगा और ठीक भी हो जाती रही। मां इतने सावधानी से रहती है । उसे कोरोना कैसे हो सकता है ?
लक्ष्मी जब यार सुनी कि राकेश ने सासू मां का माथा छुआ , उसकी चिंता और बढ़ गई।
लक्ष्मी ने झट से कहा,- 'साबुन से हाथ धो लीजिए। और जो कपड़े पहने हुए हैं ,उसे गर्म पानी में धो लीजिए'।
यह सुनकर राकेश ने कहा,- 'तुम यह क्या बोल रही हो'?
लक्ष्मी ने कहा,- 'मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं। परिवार के भले के लिए बोल रही हूं। ठीक है, मां को कोरोना नहीं है। अगर कोरोना निकल गया तो पूरे परिवार में कोरोना वायरस फैल जाएगा। तब परिवार का क्या होगा ?
लक्ष्मी की बातें सुनकर वह भी घबरा सा गया। अब उसे लगने लगा कि लक्ष्मी ठीक ही बोल रही है।
तब उसने कहा,- 'कल ही मां का कोरोना टेस्ट करवा देते हैं। तब तक हम सभी को मां से दूर ही रहना होगा'।
यह सुनकर लक्ष्मी ने कहा,- आप बिल्कुल ठीक बोल रहे हैं । हम सभी को मां से दूर ही रहना होगा । अभी मैं तुरंत बच्चों को भी यह बात बोल देती हूं। नहीं तो सुबह उठकर बच्चे रोज की तरह दादी से मिलने ना चले जाएं'।
इधर सरस्वती देवी बुखार से तप ही रही थी । बुखार की गोली खाने के बाद भी उसका बुखार नहीं उतरा था। पसीना खूब बहा, फिर भी बुखार नहीं उतरा था। उसे पूरे शरीर में दर्द था । अब उसे हल्की - हल्की खांसी भी हो रही थी । जबकि इसके पहले गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पी लेने के बाद बदन दर्द और बुखार दूर हो जाता था। लेकिन इस बार बुखार उतर ही नहीं रहा था। बुखार और बदन में दर्द के कारण उसे नींद भी नहीं आ रही थी। वह लेटी -लेटी सोच रही थी कि उसे कोरोना तो नहीं हो गया है । वह कोरोना होने के डर से बिल्कुल घबरा नहीं रही थी । बल्कि इस बात से चिंतित थी कि कोरोना संक्रमण घर में न फैल जाए। बस वह कोरोना के फैलने से डर रही थी। बुखार की ऐसी हालत में भी वह बार-बार अपने बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थी
मां की खांसने की आवाज सुनकर राकेश और लक्ष्मी और भी डर गए थे। दोनों एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। दोनों कोरोना के भय से घबराए हुए थे । बेड पर दोनों जरूर लेटे हुए थे। लेकिन दोनों के आंखों से नींद गायब थी । राकेश चाह कर भी मां के पास मदद के लिए जा नहीं सकता था। किसी तरह उन दोनों ने रात बिताई थी।
राकेश सुबह उठकर सबसे पहले यह पता किया कि कोविड का आर टी पी सीआर की जांच कहां- कहां हो रही है। उसे पता चला कि बगल के ही स्कूल में कोविड जांच का शिविर लगेगा। उसने राहत की सांस ली।
राकेश ने मां के कमरे के बाहर खड़ा होकर कहा,- 'मां ! बगल के स्कूल में कोविड की जांच शिविर लगेगा। वहां तुम्हें जांच के लिए ठीक ग्यारह बजे जाना है'।
मां ने यह सुनकर कहा,- 'ठीक है बेटे।
आज कोई भी बच्चे दादी से मिलने के लिए नहीं गए थे। दोनों बच्चे भी डरे हुए लग रहे थे । लक्ष्मी ने दूर से ही नाश्ता कमरे के बाहर सासु मां के लिए रख दिया था । उसने जोर से आवाज लगाकर नाश्ता के संबंध मे बता दिया था। साथ ही लक्ष्मी ने सिर्फ बगल वाला बाथरूम यूज़ करने के लिए कहा था। सासू मां लक्ष्मी की बातें सुन ली थी। सरस्वती देवी को बिल्कुल भी नाश्ता करने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन किसी तरह वह खुद को संभालते हुए नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद बमुश्किल दो रोटी खा पाई थी। उसका सारा बदन दर्द से टूटा जा रहा था । बुखार छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। बड़ी मुश्किल से वह बगल के स्कूल तक कोविड जांच के लिए जा पाई थी। बेटा - बहू दोनों दूर ही खड़े थे। मोहल्ले वाले सरस्वती देवी को अचानक ऐसी अवस्था में देखकर उससे दूरी बना लिए थे। चूंकि पहले से इस मोहल्ले के सात कोविड मरीज अस्पताल में भर्ती थे । सब दूर ही से सरस्वती देवी को देख रहे थे । सरस्वती देवी भी समझ रही थी कि यह बीमारी ही ऐसी है। कोई चाह करभी कटेगा।
तीन दिनों के बाद राकेश के मोबाइल पर मां का कोरोना जांच रिपोर्ट आया था। रिपोर्ट पॉजिटिव था। यह पढ़कर उसके आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। उसने किसी तरह खुद को संभाला । और विचार करने लगा कि आगे क्या किया जाए? उसे कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था कि मां का इलाज कैसे हो ?
तब राकेश ने लक्ष्मी से कहा,- 'मां का जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आया है'।
यह सुनकर लक्ष्मी के भी होश उड़ गए थे।
तब लक्ष्मी ने कहा, 'देर मत करो। मां को तुरंत सदर अस्पताल में भर्ती कर दो। नहीं तो बड़ी मुश्किल में हम सब पढ़ जायेंगे। मां की कोविड जांच के बाद हम सबों ने कितने मुश्किल से तीन दिन बिताए हैं । हम ही लोग जानते हैं। अगर गलती से भी घर के किसी और मेंबर को कोरोना हो गया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए जो भी हो, मां को आज ही अस्पताल में भर्ती कर दीजिए। मां वहीं पर ठीक हो पाएगी । तीन दिनों से डॉक्टर के परामर्श पर मां दवा खा रही है। बुखार और खांसी कहां कम नहीं हो पा रही है । मां घर पर रहेगी तो संक्रमण फैलने का खतरा भी उतना ही रहेगा'।
यह सुनकर राकेश ने कहा,- तुम ठीक ही बोल रही हो। घर पर मां का इलाज संभव नहीं है। अस्पताल में ही उनका ठीक से उपचार हो पाएगा । चाह कर भी हम सब मां की सेवा ढंग से नहीं कर पा रहे हैं । इसलिए अस्पताल में ही मां को भर्ती कर देते हैं'।
राकेश की ये बातें सुनकर लक्ष्मी राहत की सांस ली।
तब उसने कहा,- 'मां को सदर अस्पताल कैसे ले जाएंगे?
यह सुनकर राकेश कुछ सोचने लगा। तभी उसे ख्याल आया कि एक एंबुलेंस वाले का नंबर उसके मोबाइल में है।
तब उसने कहा,- 'मैं एक एंबुलेंस वाले को जानता हूं। मेरे मोबाइल में उसका नंबर भी है। उसे फोन कर बात करता हूं । एंबुलेंस वाला बड़ा अच्छा आदमी है। वह मां को जरूर सदर अस्पताल ले जाएगा' ।
राकेश बिना देर किए एंबुलेंस वाले से बात की ।एंबुलेंस वाले ने तुरंत आने की बात कही।
अब राकेश और लक्ष्मी इस बात से इत्मीनान हो गए थे कि मां अब सदर अस्पताल पहुंच जाएगी ।वहां उसका इलाज शुरू हो जाएगा । हम लोगों को मां को छूना भी नहीं पड़ेगा। फिर दोनों एक थैला में मां के लिए कुछ कपड़े और आवश्यक चीजें रख दिया। फिर एंबुलेंस का इंतजार करने लगे थे।
तभी लक्ष्मी ने राकेश से कहा,- 'आपके मोबाइल में मां का कोरोना का पॉजिटिव रिपोर्ट है । उसकी एक कॉपी साइबर कैफे से निकालकर मां को दे दीजिए। ताकि डॉक्टर रिपोर्ट को देखकर तुरंत इलाज शुरू कर दे'।
लक्ष्मी की बात सुनकर राकेश तुरंत साइबर कैफे से मां का कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट निकलवा लिया । लक्ष्मी इस रिपोर्ट को थैला में ऊपर में रख दी।
इसके बाद लक्ष्मी ने मां से कहा,- 'मां!थैला में ऊपर में आपका कोरोना का रिपोर्ट दिया है।इसे डॉक्टर को दिखाना होगा। तभी आपका तुरन्त इलाज शुरू होगा। एंबुलेंस बस थोड़ी देर में आ रहा है। वह आपको सदर अस्पताल ले जाएगा'।
यह सुनकर सरस्वती देवी ने कहा,- 'ठीक है बहु! मेरे कारण पूरे तुम दोनों को काफी परेशानी हो रही है । अब देखो भगवान को क्या मंजूर है ! मैंने तो आज तक किसी का बुरा किया नहीं। अब जीवन के आखरी समय में भगवान हमें क्यों कष्ट दे रहे हैं। यह तो कृष्ण मुरारी ही जाने'।
यह बोलते बोलते सरस्वती देवी की आंखें भरआई थी। तभी एंबुलेंस आ गया था। सरस्वती देवी किसी तरह एंबुलेंस में बैठ गई थी । अगल - बगल के लोग अपने - अपने घरों के बाहर खड़े होकर सरस्वती देवी को एंबुलेंस में जाते देख रहे थे । लेकिन कोई भी उसके समीप नहीं पहुंचा था। जबकि सरस्वती देवी हर के सुख-दुख में हमेशा साथ खड़ी रहती थी । सरस्वती देवी मोहल्ले वाले से ऐसी कोई अपेक्षा भी नहीं कर रही थी । वह जानती थी कि हमारी बीमारी ही ऐसी है, तो लोग कैसे मेरे पास आएंगे।
सरस्वती देवी को लेकर एंबुलेंस आगे - आगे जा रही थी। पीछे से मोटरसाइकिल पर राकेश और लक्ष्मी जा रहे थे।
तभी लक्ष्मी ने राकेश से कहा,- कोरोना बहुत ही छूत की बीमारी है। मां को हम लोग सदर अस्पताल तक पहुंचा दे रहे हैं। मां के पास कोरोना का रिपोर्ट है। रिपोर्ट देखकर डॉक्टर मां का इलाज शुरू कर देंगे। आप हॉस्पिटल के अंदर मत जाइएगा। अगर आपको कुछ हो गया तो मेरा और बच्चों का क्या होगा'।
यह सुनकर राकेश और भी भयभीत हो गया था। वह पहले से ही मां के इलाज के लिए चिंतित था कि अस्पताल के अंदर कैसे जाएगा। वह आज तक अस्पताल नहीं गया था। इससे वह और डरा सहमा हुआ था । लक्ष्मी की बात ने उसे और डरा दिया था।
तब राकेश ने कहा,- 'मां का इलाज फिर कैसे होगा ?
यह सुनकर लक्ष्मी ने कहा,- 'इलाज आपको तो नहीं करना है । इलाज डॉक्टर को करना है । हम लोग मां को सदर अस्पताल पहुंचा दीजिए। सारा काम डॉक्टर कर लेंगे । कोरोना की दूसरी लहर जिस तरह फैली हुई है। मैं पूरी तरह घबरा गई हूं। कहीं आपको कुछ हो गया तो हम लोगों का क्या होगा। मां तो अपना जीवन जी ली है। हम लोगों ने कभी भी मां को किसी चीज की कमी होने दी है । यह बीमारी ही ऐसी है। इसलिए मैं ऐसी बात बोल रही हूं । मां के दर्द को मैं समझती हूं ।लेकिन इसके आगे हम लोग कर भी क्या सकते हैं'।
लक्ष्मी की बातें सुनकर राकेश को भी लगा कि वह ठीक ही बोल रही है। अगर मुझे सचमुच कुछ हो गया तो मेरा घरबार ही तबाह हो जाएगा।
पन्द्रह मिनट में एंबुलेंस मां को लेकर सदर अस्पताल पहुंचा गया था। एंबुलेंस ड्राइवर ने मां को सदर अस्पताल की सीढ़ी तक्र पहुंचा दिया था। फिर राकेश से पैसे लेकर वहां से चला गया था। सरस्वती देवी अस्पताल की सीढ़ी पर बैठ गई थी। बुखार से उसका शरीर तक रहा था। दर्द से उसका बदन भी टूट रहा था। वह सीढ़ी पर बैठकर इंतजार कर रही थी कि बेटा - बहू उसे अस्पताल में भर्ती कराएंगे । तभी मां की नजर दूर खड़े बेटा - बहू पर पड़ी। राकेश और लक्ष्मी अस्पताल की सीढ़ी से काफी दूरी पर खड़े थे । मां ने दोनों को देखकर आने का इशारा भी किया था । लेकिन दोनों अपनी जगह से हिले तक नहीं थे। मां को समझते देर न लगी कि आखिर बेटा - बहू उसके पास क्यों नहीं आ रहे थे। मां ने आखरी बार बेटा और बहू को अपनी आंखों से जी भर देख लिया था। मां के आंखों से आंसू छलक पड़े थे। मां का मन टूट सा गया था। पति के मरने के बाद जितना दुख नहीं हुआ था, उससे कहीं ज्यादा दुख आज महसूस कर रही थी। उसने अपनी मेहनत से घर के लिए क्या कुछ नहीं किया था। सब कुछ रहते हुए भी आज उसके पास कोई नहीं था। वह मन को समझाते हुए भगवान कृष्ण का नाम ली थी। सरस्वती देवी ने मन ही मन कहा था कि हे कृष्ण मुरारी! अगर ले जाना है, तो देर ना करो । यह दिन देखने के लिए मैं जिंदा नहीं रहना चाहती। सरस्वती देवी यह सोच ही रही थी, तभी रेणु नाम की एक नर्स वहां से गुजर रही थी।
सरस्वती देवी को सीढ़ियों पर पड़ा देखकर नर्स रेणु ने कहा,- माता जी आप सीढ़ी पर बैठी हुई है। आपको कोई तकलीफ है क्या ?
यह सुनकर सरस्वती देवी को लगा कि भगवान कृष्ण ने मदद के लिए किसी को भेज दिया है । तब उसने अपने थैला से कोरोना रिपोर्ट निकाल कर रेणु को दे दिया।
रिपोर्ट देखकर रेणु ने कहा, - 'माता जी! आपको कोरोना पॉजिटिव है। घबराने की कोई बात नहीं है। माता जी ! आपके घर वाले कहां है?
यह सुनकर सरस्वती देवी चुप ही रही थी। वह क्या कहती ? बेटा - बहू वहां खड़े हैं। नर्स रेणु को समझते देर ना लगी। वह समझ गई थी कि माता जी के साथ कोई नहीं है। नर्स रेणु ने सहारा देकर सरस्वती देवी को उठाया और अस्पताल के कक्ष की ओर बढ़ ही रही थी, इसी बीच समाजसेवी गणेश सीटू जी भी मदद के लिए पहुंच गए थे । उसने भी सरस्वती देवी को सहारा दिया और उनका थैला अपने हाथ में ले लिया था। अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरस्वती देवी जब पीछे मुड़ कर देखी तो बेटा और बहू वही खड़े थे। उनकी आंखों से फिर से आंसू छलक पड़े थे। फिर सरस्वती देवी मन को कठोर कर आगे बढ़ने लगी थी।
माता जी के आंखों से आंसू छलकते देखकर गणेश सीटू ने कहा,- 'चाची ! आप बिल्कुल घबराइए नहीं। मैं भी आपके बेटे जैसा ही हूं । जहां तक हो सकेगा पूरी मदद करूंगा ।आपको कष्ट नहीं होने दूंगा। रेणु दीदी आपके साथ है ही'।
गणेश सीटू की बातें सुनकर सरस्वती देवी का दिल भर आया। उसने कहा,- 'तुम दोनों मेरे पूर्व जन्म के बेटा - बेटी हो। इसलिए भगवान कृष्ण ने मदद के लिए भेज दिया है'।
यह सुनकर रेणु और गणेश सिटू मुस्कुरा भर दिए थे। रेणु और गणेश सीटू सरस्वती देवी को लेकर अस्पताल के कोविड कक्ष में आ गए थे। रेणु और गणेश सीटू, सरस्वती देवी को लेकर डॉक्टर के कक्ष में चले गए। डॉक्टर साहब ने तुरंत सरस्वती देवी का रिपोर्ट देखा और जल्द से जल्द कागजी कार्रवाई पूरा कर अस्पताल में भर्ती करने का आदेश दे दिया था। इधर गणेश सीटू कागजी कार्रवाई पूरा करने में लग गए। थोड़े ही देर में कागजी कार्रवाई पूरी हो गई । बेड भी निर्गत हो गया था। रेणु और गणेश सीटू माता जी को सहारा देकर बेड तक ले गए थे। सरस्वती देवी का इलाज प्रारंभ हो गया ।उनका ऑक्सीजन लेवल थोड़ा काम था । चेस्ट में इंफेक्शन था। गणेश सीटू और रेणु ने माताजी के लिए ऑक्सीजन गैस सिलेंडर का इंतजाम किया। सरस्वती देवी को दिन और रात भर ऑक्सीजन लगा रहा। सलाइन भी चढ़ता रहा। दूसरे दिन सुबह वह कुछ अच्छा महसूस कर रही थी। बुखार भी थोड़ा उतर चुका था। खांसी में भी कमी आ गई थी। बदन दर्द में भी कमी महसूस कर रही थी। अब वह कुछ अच्छा महसूस कर रही थी। उसने अगल-बगल बेड में पड़े मरीजों को सरसरी निगाहों से देखा तो वह थोड़ी घबरा सी गई थी। लेकिन उसने अपने मन को विचलित नहीं होने दिया। मन को मजबूत की। इसी बीच उसे ख्याल आया कि मारने वाला है राम और बचाने वाला है राम। अगर मेरी मृत्यु लिखी हुई है तो कोई ताकत मुझे बचा नहीं सकती है । अगर जिंदगी है तो कोई मुझे मार भी नहीं सकता। उसने यह भी मन बना लिया कि कोरोना को परास्त करके रहेगी और स्वस्थ होगी। वह समय पर दवा लेती थी । अस्पताल से उसे जो भी भोजन मिलता बड़े ही चाव से खाती थी। कई स्वयंसेवी संगठनों ने भी उसे भोजन का पैकेट दिया था। वह बहुत ही प्रसन्न मन से खाती थी। नर्स रेणु भी सरस्वती देवी का बहुत ख्याल रखती थी। सुबह शाम गणेश सीटू सरस्वती देवी का हाल-चाल लेने के लिए आ जाता था। रेणु और गणेश सीटू के आत्मीय व्यवहार से सरस्वती देवी बहुत खुश थी। सरस्वती देवी का मन तब दूखता था, जब अगल-बगल के मरीजों से मिलने के लिए उनके बेटा - बहू, बेटी - दमाद, पोता - पोती, नाती -नतनी आते थे। तब उसे भी अपने बेटा - बहू और पोता - पोती की याद आ जाती थी। तब आंखों से आंसू छलक पड़ते थे। वह सोचती थी कि उसके बच्चे कितने निर्मोही हो गए हैं। क्या अस्पताल के बाहर मां को छोड़कर भला कोई इस तरह चला जाता हैं। जिनके लिए मैंने अपना संपूर्ण जीवन दे दिया । आज मेरे साथ परिवार के कोई भी सदस्य नहीं है। यह तो भगवान कृष्ण की कृपा है कि रेणु और गणेश सीटू जैसे मददगार पहुंच गए । अगर ये नहीं होते तो मेरा क्या होता ?
नर्स रेणु की मां बचपन में ही दुनिया से चल बसी थी। सरस्वती देवी को देखकर उसे लगता कि अगर मेरी मां जिंदा होती तो बिल्कुल ऐसी ही होती। उससे जितना संभव हुआ, सरस्वती देवी के लिए की थी । उसकी सेवा, गणेश सीटू का रोजाना देखना, अस्पताल की बेहतर देखभाल और सरस्वती देवी का आत्मविश्वास व जीने की प्रबल इच्छा का असर ऐसा हुआ कि दस दिनों के बाद फिर उनका आ रटी पी सीआर रिपोर्ट नेगेटिव आया गया था। सरस्वती देवी पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी। अस्पताल के डॉक्टर्स, नर्सेज एवं अन्य कर्मचारी गण सरस्वती देवी के स्वस्थ हो जाने से बहुत खुश थे। उसने अस्पताल के नियमों का पालन बहुत ही अच्छे ढंग से किया था। फलस्वरुप सरस्वती देवी इस उम्र में भी स्वस्थ हो पाई थी । नर्स रेणु ने सबसे पहले सरस्वती देवी को नेगेटिव रिपोर्ट की सूचना दी थी। नेगेटिव रिपोर्ट आने का समाचार सुनकर सरस्वती देवी बहुत ही खुश हुई थी। उसकी आंखें भर आई थी।
यह देखकर नर्स रेणु ने कहा,- 'माता जी ! आपकी आंखों में आंसू ?
सरस्वती देवी ने कहा,- 'बेटी ! ये खुशी के आंसू है '।
तब तक गणेश सीटू जी भी सरस्वती देवी के पास एक हाथ में मिठाई का डब्बा लेकर पहुंच गए थे ।उसने अपने हाथों से सरस्वती देवी को मिठाई खिलाई। और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया । सरस्वती देवी ने गणेश सीटू और नर्स रेणू को बहुत आशीष दिया । आशीष देते समय उसकी आंखें भर आई थी।
नर्स रेणु ने सरस्वती देवी से कहा,- 'माता जी ! आप एक-दो दिनों में यहां से डिस्चार्ज हो जाएंगे। अपका घर कहां है ? परिवार में कोई लोग हैं ना ?
सरस्वती देवी यह सुनकर फूट-फूट कर रोने लगी।
तब उसने कहा,- 'बेटी! हमारा भरा पूरा परिवार है। कोरोना हो जाने के कारण सब मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर दूर हो गए हैं। बेटा - बहू,बेटी - दामाद, पोता - पोती, नाती - नतनी सब हैं। लेकिन मुझे देखने के लिए कोई नहीं आए। मैं जिंदा हूं व मर गई हूं । यह भी खोज खबर लेने के लिए कोई नहीं आए । इसी बात का मुझे जीवन भर दुख रहेगा। ना जाने मुझसे क्या गलती हो गई ? कि उन लोगों ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया'।
यह सुनकर नर्स रेणु ने सरस्वती देवी के पीठ को सहलाते हुए कहा,- 'माताजी ! अब इन बातों को जाने दीजिए। बच्चों को माफ कर दीजिए । यह बीमारी ही ऐसी है कि सब लोग दूर भाग रहे हैं। मैं भी घर जाती हूं, तो घरवाले मुझसे भी दूर ही रहते हैं । मैं बिल्कुल ही बुरा नहीं मानती हूं । कोरोना के भय से सब लोग डरे हुए हैं'। यह सुनकर सरस्वती देवी ने कहा,- 'बेटी ! मैं कहां उन्हें कुछ बोल रही हूं । बस मेरा यह कहना है कि उन लोगों को कम से कम मेरा हाल-चाल लेने के लिए अस्पताल तो आना चाहिए था। ठीक है ! मुझे कोरोना हो गया । मुझसे शारीरिक दूरी बनाकर रखते लेकिन उन लोगों ने मुझे मन से दूर दिया। इस बात की मुझे सबसे अधिक तकलीफ है'।
नर्स रेणु ने कहा,- खैर! जो हुआ उसे भूल जाइए। बच्चों को माफ कर दीजिए । गणेश सीटू और हम आपके बच्चे ही हैं। समझ लीजिए, उनकी जगह हम लोगों ने आपकी सेवा कर दी। उन्हें माफ कर दीजिए। आपके बेटे का कोई नंबर है, तो दे दीजिए । आपके ठीक होने की खबर मैं उन्हें दे दूंगी। ताकि वे आपको यहां लेकर से चले जाएंगे'।
यह सुनकर सरस्वती दीदी ने कहा,- 'बेटे का नंबर मेरे पास जरूर है। लेकिन यहां उसे बुलाऊंगा नहीं । तुम लोगों ने ही मुझे ठीक किया है । तुम और गणेश मुझे घर छोड़ देना। इस बहाने एक मां का घर देख लेना'।
तब रेणु ने कहा,- 'ठीक है माता जी'।
इधर राकेश, लक्ष्मी और दोनों बच्चे घर पर ही थे। सब डरे हुए थे। राकेश मां को देखने के लिए अस्पताल जाना चाहता था । लेकिन लक्ष्मी उसे जाने ही नहीं देती थी। दोनों पोता - पोती भी दादी को खोज रहे थे । लक्ष्मी उन दोनों को यह कह कर मना देती थी कि दादी अस्पताल में भर्ती है। वहां उसका इलाज चल रहा है। वह ठीक है। दस दिन बीत गए थे। राकेश को मां को इस तरह अस्पताल में छोड़कर आ आने और देखने के लिए भी ना जाने से बहुत ही अपराध बोध हो रहा था। मां कैसी होगी ? मां का क्या हाल होगा ? इस तरह की कई बातें उसके मस्तिष्क में चल रही थी। उसका मन कहता था कि मां ठीक ही होंगी । अगर कोई अनहोनी होती तो अस्पताल से कोई खबर जरूर आती । यह सोचकर उसे तसल्ली होती कि कम से कम मां ठीक तो है। वह बीते दस दिनों से घर से बाहर निकला ही नहीं था ।उसे इस बात का डर था कि मुहल्ले वाले मां के विषय में पूछेगे तो क्या ज़बाब देंगे ? पूरे परिवार के लोग इतने डरे सहमे हुए थे कि घर के अंदर भी मास्क पहनकर रह रहे थे। कहीं सासु मां का कोरोना का बैक्टीरिया घर में तो नहीं है ! लक्ष्मी कई बार सैनिटाइजर से पूरा घर धो चुकी थी । इसके बाद भी मन में बैठा डर दूर नहीं हो रहा था।
चौदहवें दिन सरस्वती देवी को सदर अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया था। अस्पताल के सिविल सर्जन ने सरस्वती देवी को फूलों का एक गुलदस्ता भेंट कर विदा किया था। अस्पताल में भर्ती सभी मरीजों ने हाथ हिला कर सरस्वती देवी को विदा किया था। सभी सरस्वती देवी के ठीक होने से खुश नजर आ रहे थे।
नर्स रेणु और गणेश सीटू सरस्वती देवी को एक टेंपो से लेकर उसके घर आए थे। सरस्वती देवी टैंपू से उतरी और घर का बेल दबाई। बेल की आवाज सुनकर घर के सभी मेंबर हड़बड़ा गए । चूंकि बीते चौदह दिनों के दरमियान उसके घर का बेल किसी ने बजाया ही नहीं था ।अचानक दिल की आवाज सुनते ही राकेश और लक्ष्मी विशेष रुप से हड़बड़ा गए थे । वे दोनों सोचने लगे थे कि कहीं कुछ मां के साथ अनहोनी तो नहीं हो गया !
मोहल्ले वाले सरस्वती देवी को टेंपो से उतरते हुए जैसे देखें सभी अपने-अपने घरों के बाहर खड़े हो गए थे। तरह-तरह की बातें करने लगे थे। राकेश को सरस्वती देवी के साथ ना देखकर सभी अचंभित थे । वे सब आपस में तरह तरह की बातें करने लगे थे।
बेल की आवाज सुनकर सहमे - सहमे राकेश - लक्ष्मी ने घर का दरवाजा खोला। सामने मां को देखकर दोनों अचंभित रह गए थे । उन लोगों ने कल्पना भी ना की थी कि इस तरह भी मां घर आ सकती थी। राकेश को मां को सामने देखकर नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बहु लक्ष्मी स्थिति को समझते हुए उसने मां का पैर छूकर प्रणाम किया। राकेश भी मां का पैर छूकर प्रणाम किया।तक उनके दोनों पोता - पोती भी आ गए। उन दोनों ने भी दादी को पैर छूकर प्रणाम किया। सरस्वती देवी ने मुस्कुराकर सभी को आशीर्वाद दिया।
सरस्वती देवी, गणेश और नर्स रेणु को इसारा कर नजदीक बुलाई। उसने दोनों को अंदर साथ चलने के लिए कहा। वे दोनों उनके साथ कमरे तक आए। नर्स रेणु को ऐसी उम्मीद थी कि माताजी अपने बेटा - बहु को खूब डांट फटकार लगाएगी, लेकिन ऐसा होते देख कर उसे भी घोर आश्चर्य हो रहा था । सरस्वती देवी जिस इत्मीनान के साथ अपने बच्चों से मिली, आशीर्वाद दी, लगा ही नहीं कि उसके बेटे और बहू ने इतनी बड़ी गलती की।
सरस्वती देवी नर्स रेणु और गणेश सीटू को खूब आशीर्वाद दे रही थी । दोनों बच्चे दादी को देख कर बहुत खुश नजर आ रहे थे।
नर्स रेणु ने सरस्वती देवी की ओर मुखातिब होकर कहा,- 'माताजी ! अब हम दोनों को जाने दीजिए। हॉस्पिटल में बहुत सारा काम है । वहां रहना जरूरी है'।
यह सुनकर सरस्वती ने कहा,- 'हां बेटी ! तुम दोनों जरूर अस्पताल जाओ। मैं तुम दोनों को नहीं रोक रही हूं। तुम दोनों ने जैसी मेरी सेवा की, मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी। तुम दोनों मेरे पूर्व जन्म के बेटा - बेटी हो । तुम दोनों को मैं आशीर्वाद देती हूं कि खूब फलो फूलो'।
सरस्वती देवी की बातें सुनकर नर्स रेणुऔर गणेश सीटू की आंखें भर आई । फिर दोनों उन्हें प्रणाम कर कमरे से बाहर निकल गए।
नर्स रेणु और गणेश सीटू कमरे से बाहर निकल कर आगे जा ही रहे थे कि पीछे से राकेश ने उन दोनों को रोक कर कहा,- 'आप आप दोनों ने मेरी मां की बड़ी खिदमत की है। तब ही मेरी मां बचपाई। मैं तो मां को अस्पताल पहुंचा कर भाग खड़े हुए थे। हमसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है। आप दोनों को शुक्रिया अदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। जो काम मुझे करना चाहिए था, आप दोनों ने किया'।
यह सुनकर गणेश सीटू ने कहा,- 'आप सबों से बहुत बड़ी भूल हुई है। आपकी मां ने आप लोगों को एक शब्द भी नहीं कहा । यह आपकी मां का मन और उदार हृदय है । उन्होंने डांटने की जगह आप सबों को आशीर्वाद दिया है । ऐसा सिर्फ आपकी मां से ही संभव है । अस्पताल में आप सबों को याद कर अंदर ही अंदर कुढ़ती और रोती थी । लेकिन एक बार भी आपकी मां आप सबों की शिकायत नहीं की। आप सबों ने जो गलती की है,उस गलती की माफी भी नहीं है ।आप सब शहर में रहते हैं। सब कुछ जानते हैं। समझते हैं। फिर भी इतनी बड़ी गलती की । हम लोग भी किसी न किसी के पति और बेटा हैं। हम लोग भी दिन रात कोरोना मरीजों के साथ रहते हैं। हम लोगों को कोरोना कहां हो रहा है ? सिर्फ सावधानी रखने की जरूरत होती है। खैर ! छोड़िए इन बातों को । अब आपकी मां ठीक हो गई है। बहुत ही सीरियस कंडीशन में हॉस्पिटल आई थी। आपकी मां बहुत हिम्मत दिखाई। इसलिए वह जल्दी स्वस्थ हो पाई। मां को चौदह दिनों तक और कोरेन्टाइन में रखिए। मां की सेवा कीजिए। दवा समय-समय पर दीजिए'।
क्या सुनकर राकेश ने कहा, जी भैया'।
इसके बाद नर्स रेणु और गणेश सीटू सरस्वती देवी के घर से निकल गए थे। राकेश, गणेश सीटू की बातें सुनकर अंदर ही अंदर व्यथीत हो रहा था । उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। उसे लग रहा था कि लक्ष्मी की बातें मानकर उसने बड़ी भूल की। वह चाहता तो अस्पताल में मां की सुध ले सकता था । वह ऐसा ना करें जीवन की बड़ी भूल की थी। मां बचपन से लेकर आज तक उसका कितना ख्याल रखती थी । अब उसके पास पछतावे के अलावा और कुछ भी ना था।
देखते ही देखते चौदह दिन भी बीत गए थे। सरस्वती देवी अब पूरी तरह ठीक हो गई थी। लेकिन पहले से थोड़ी दुबली हो गई थी। इस बीच नर्स रेणु और गणेश सीटू दो-दो बार उसे देखने के लिए भी आए । राकेश और लक्ष्मी दोनों ने मिलकर मां की बेहतर सेवा की थी।
आज सरस्वती देवी बहुत प्रसन्न लग रही थी।
सरस्वती देवी ने बेटा राकेश ,बहू लक्ष्मी को पास बुलाकर कहा, - 'आज मैं अपने मन की बात तुम लोगों से कहती हूं । बेटा राकेश तुम और लक्ष्मी मुझे अस्पताल की सीढ़ी पर छोड़कर चले आए थे। मुझ पर क्या बीती होगी ? इसका तुम दोनों का अंदाजा है । मैं कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि ऐसा भी दिन मुझे देखना पड़ेगा। यह जरूरी था कि तुम सब मुझसे शारीरिक दूरी बनाकर रखते । इसके मैं इनकार कहां करती । लेकिन तुम दोनों ने मुझसे शारीरिक दूरी के साथ मन का भी दूरी बना लिया था। यह बात मुझे बेचैन कर रख दिया था । मैं एक बार यह समझ ली थी कि अब शायद अपना घर देख नहीं पाऊंगा। तुम दोनों को आखरी बार देख रही हूं' ।
मां की ये बातें सुनकर रितेश और लक्ष्मी की निगाहें झुक गई थी। उन दोनों में इतनी शक्ति नहीं थी कि मां से आंखें मिला पाए।
उन दोनों ने मां के पैर पर छूकर माफी मांगी ।
राकेश ने कहा, - 'मां ! हम दोनों से बड़ी गलती हुई है। हम दोनों पूरी तरह घबरा गए थे । अगर मुझे कोरोना हो गया तो क्या होगा ? जिस तरह कोरोना से मृत्यु की खबरें आ रही थी। उससे हम दोनों घबरा गए थे। मां ! हम दोनों की गलती को क्षमा कर दीजिए'।
सरस्वती देवी ने कहा,- 'बेटे! तुम दोनों को मैं कहां सजा दे रही हूं। मैंने तो तुम दोनों को माफी कर दिया । लेकिन तुम दोनों ने मेरे साथ जो किया इसे सपने में भी नहीं सोची थी। अस्पताल में मेरे साथ कोरोना के कई मरीज भर्ती थे। उन सभी के बच्चे मिलने आते थे। एकमात्र मैं हीं ऐसी थी, जिसे मिलने के लिए उसके परिवार के कोई भी लोग नहीं आए थे। उस समय मैं अस्पताल के बेड पर पड़ी - पड़ी अंदर से रोती रहती थी। मेरा भरा पूरा परिवार होने के बावजूद मुझसे मिलने के लिए कोई भी नहीं आता था। मेरी तो उम्र हो गई बेटे ! अगर मैं दुनिया से चली भी जाती तो मेरा क्या था ? मैंने तो सुख और दुख दोनों देख लिया था। अगर मेरी जगह कोई दूसरी मां होती तो तुम दोनों के व्यवहार से कब की मर गई होती। यह तो भगवान की ही कृपा है कि अस्पताल में रेणु और गणेश जैसे बेटे मिल गए। जिसने जी जान से मेरी सेवा की। और मैं रोग मुक्त हो पाई'।
यह कहते-कहते सरस्वती देवी की आंखें भर आई । फिर उसने अपने आंचल से बहते आंसुओं को पोछते हुए कहा, - 'तुम्हारे कंधे पर घर की जवाबदेही है। मैं कभी नहीं चाही कि तुझे कुछ भी परेशानी हो । लेकिन तुम दोनों को मुझे जो मन से दूर नहीं करना चाहिए था। तुम्हारे पिता बहुत ही छोटी उम्र में तुम भाई - बहन को छोड़कर चले गए थे। उस समय उतना दुख नहीं हुआ था, जितना कि तुम मुझे अस्पताल में अकेले छोड़कर चले गए थे। मिलने तक नहीं आए। इसलिए बेटे! मैं कहती हूं । यह नया जीवन भगवान कृष्ण ने मुझे दिया है। अब इस जीवन को कृष्ण के चरणों में बिताना चाहती हूं। जो मैं बीते बिरासी सालों में सीख नहीं पाई, वह मात्र चौदह दिनों में अस्पताल ने मुझे सिखा दिया । तुम मुझे मथुरा वृंदावन छोड़ आओ । मैं शेष बचा जीवन भगवान श्री कृष्ण के चरणों में बिताना चाहती हूं '।
यह सुनकर रितेश और लक्ष्मी दोनों सन्न रह गए थे।
तब रितेश ने कहा, - 'मां ! हम दोनों को माफ कर दीजिए। हम दोनों ने बहुत बड़ी गलती की है। अब आप इस उम्र में कहां जाइएगा ? मुझे एक मौका दीजिए आपनी गलती सुधारने का'।
यह सुनकर सरस्वती देवी ने कहा, - 'मैं तो तुम दोनों को कब की माफ कर चुकी हूं । तुम दोनों से मेरी कोई शिकायत नहीं है । मेरी आंखों में जो परिवार के मोह का पट्टी बंधा हुआ था , अब वह खुल चुका है। अब मैं चाह कर भी तुम लोगों के साथ नहीं रख सकती हूं। मैं अपना शेष जीवन कृष्ण चरणों में ही बिताना चाहती हूं। यही मेरी आखिरी इच्छा है'।
यह सुनकर राकेश ने कहा,- 'मां ! मथुरा वृंदावन में आपकी देखभाल कौन करेगा ? वहां कैसे रहिएगा ?
मां ने कहा,- 'जैसे तुम लोगों के बिना अस्पताल में रह ली थी। अस्पताल में भगवान ने मदद के लिए रेणु और गणेश को भेज दिया था। उसी तरह मथुरा वृंदावन में भी भगवान कोई ना कोई उपाय जरूर कर देंगें'।
रितेश ने कहा,- मां !आप हमें लोगों के बीच रहिए। मुझे अपनी गलती का सुधारने एक मौका दीजिए'।
मां ने कहा, - बेटे ! मैं तुम्हें अपने बंधन आजाद करती हूं । मैं भी तुम सबों के बंधन से आजाद होती हूं'।
रितेश और लक्ष्मी बार-बार मां से यही आग्रह करते रहे कि मथुरा वृंदावन जाने की जिद छोड़ दे। लेकिन सरस्वती देवी मानी नहीं । वह अपने निर्णय पर अडिग रही। इस बात के पांच दिनों के बाद सरस्वती देवी वृंदावन के लिए निकल पड़ी। सरस्वती देवी को वृंदावन छोड़ने के लिए राकेश ,लक्ष्मी दोनों पोता - पोती साथ में गए । सरस्वती देवी के वृंदावन रवानगी के समय पूरे मोहल्ले के लोग जुट गए थे। सभी ने सरस्वती देवी को भावभीनी विदाई दी। सरस्वती देवी ने मोहल्ले वालों से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और सभी को आशीर्वाद भी दिया। सभी की आंखें नम हो गई थी। सावित्री को अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि सरस्वती देवी ने उसके लिए क्या कुछ नहीं किया था । लेकिन जब वह सदर अस्पताल में कोरोना से जंग लड़ रही थी, तब कोरोना के डर से मिलने के लिए एक बार भी जा नहीं पाई थी। यह बात उसके मन में कांटे की तरह चुभ रही थी। अब देर बहुत हो चुकी थी। सावित्री देवी के पास अब पछतावे के सिवा और कुछ भी नहीं बचा था।
विजय केसरी,
(कथाकार / स्तंभकार),
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301,
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