ताज्जुब की बात / ऋतुराज वर्षा
देखकर जमाने को मुझे भी जीना आ गया।
दीदार कर लिया जब शंभू का एकबार,
फिर नहीं किसी की हमें दरका.र।
हुनर सारे ज़माने की सीखे बिना आ गया।
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आज कैसे-कैसे बदल रहे मिजाज लोगों की।
मगर कोई बात नहीं,
हमें डर किसी का नहीं,
हमें तो हर मसले से वाकिफ होना आ गया।
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खैर वह अपनी मनाये।
सोते हुए भी जिन्हें खौफ सतायें।
उनका ज़ख्म सदा के लिए पुराना हो गया।
हमें तो हर हाल में जिंदगी से याराना हो गया।
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मस्त रहे हम गर्दिश में भी,
नाम ऋतुराज वर्षा मेरा,
मानो बारिश की फुहारों का महीना आ गया।
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सच कह दूं एक बात जीते थे हम जिन्हें देखकर,
वह बंगलें में पड़े हैं किराये देकर।
चक्कर देखो गणित और इतिहास का।
मालूम नहीं उन्हें निष्कर्ष अपने कर्तव्य का,
बस छह-पांच में अटके पड़े हैं।
आता नहीं कुछ भी
मानसपटल उनका खाली हो गया।
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फिर भी झूठी शान के लिए वह चाणक्य बन गया।
ताज्जुब की बात है,
सिसकियों से जिन्हें फुर्सत नहीं, दिन है कि रात है।
हमारी खुशियां देखकर उन्हें पसीना आ गया।
देखकर जमाने को मुझे भी जीना आ गया।
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