गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022

ताज्जुब की बात // ऋतुराज वर्षा@

 ताज्जुब की बात / ऋतुराज  वर्षा 



देखकर जमाने को मुझे भी जीना आ गया।

दीदार कर लिया जब शंभू का एकबार,

फिर नहीं किसी की हमें दरका.र।

हुनर सारे ज़माने की सीखे बिना आ गया।

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आज कैसे-कैसे बदल रहे मिजाज लोगों की।

मगर कोई बात नहीं, 

हमें डर किसी का नहीं,

हमें तो हर मसले से वाकिफ होना आ गया।

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खैर वह अपनी मनाये।

सोते हुए भी जिन्हें खौफ सतायें।

उनका ज़ख्म सदा के लिए पुराना हो गया।

हमें तो हर हाल में जिंदगी से याराना हो गया।

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मस्त रहे हम गर्दिश में भी, 

नाम ऋतुराज वर्षा मेरा,

मानो बारिश की फुहारों का महीना आ गया।

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सच कह दूं एक बात जीते थे हम जिन्हें देखकर,

वह बंगलें में पड़े हैं किराये देकर।

चक्कर देखो गणित और इतिहास का।

मालूम नहीं उन्हें निष्कर्ष अपने कर्तव्य का,

बस छह-पांच में अटके पड़े हैं।

आता नहीं कुछ भी

मानसपटल उनका खाली हो गया।

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फिर भी झूठी शान के लिए वह चाणक्य बन गया।

ताज्जुब की बात है,

सिसकियों से जिन्हें फुर्सत नहीं, दिन है कि रात है।

हमारी खुशियां देखकर उन्हें पसीना आ गया।

देखकर जमाने को मुझे भी जीना आ गया।


@ऋतुराज वर्षा@

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