इतिहास में नहीं दर्ज होते हैं..../ सीमा "मधुरिमा"
स्त्री की पीड़ा कभी इतिहास में नहीं दर्ज हुआ ---
इतिहास में दर्ज होती है पुरुष की सफलता ---
झंडे गड़ते हैं पुरुष के नाम के
वाह वाही होती है
पिता और भाई....और पति के नाम के
पर इस वाह वाही के पीछे
होती हैं ( गुप्त.और प्रत्यक्ष रुप से)
अनेक स्त्रियों की अनेकों अंतहीन पीड़ाएँ
जो गाने की नहीं, महसूस करने के लिए होती हैं...
मगर,
जिन्हें महसूसती भी एक स्त्री ही है ---
उसकी आँखों से बहती है अविरल अश्रु धारा....
जो अदृश्य होती है...
और भोजन के स्वाद में नमक बन
सबके मन को तृप्ति देती है ---
ये जो तृप्तियाँ होती हैं न्
उसके पीछे छिपे होते हैं
ऐसे ही अनकहे और अनगाये
सैकड़ों इतिहास ---
स्त्री की पीड़ा कभी इतिहास का विषय नहीं रहा ---
और ज़ब स्त्री मुखर होती है अपनी पीड़ा के लिए...
तब ये पुरुषवादी सत्ता
चुप करा देता है उसे
लगाकर अनेकों आरोप --
जिसमें सर्वोपरि होता है
बदचलनी का आरोप ---
जिसे सुन स्त्री तिलमिला जाती है
और फिर वो चुप हो जाती है
वैसे ही जैसे उसकी पीड़ा भी बोलना बंद कर देती है....
और स्त्री सहनशीलता की मूर्ति हो जाती है....जिसको नमन करता है समाज ----
सीमा "मधुरिमा"
लखनऊ!
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