मेरी देह पर नहीं मेरी छलनी आत्मा पर
बिंदे गये हैं तुम्हारे प्रेम के क्रुर स्मृति चिन्ह
जिन्हें विलुप्त होने में कयी सदियां लग जाएंगी
पुरूष! तुम पूर्ण पुरूष कभी नहीं थे..
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तुमको आया ही नहीं कभी प्रेम करना
प्रेम के महासागर में तुम कभी उतरे ही नहीं
तुमनें नदी में पत्थर उछाले
तुमनें प्रेम के मार्ग में कांटें बोये..
हर रोज सजाते रहे चिता परीक्षा की
तुमको तुलसी के दामन पर दाग नजर आते रहे
प्रेम के खण्डरों में प्रेत बनकर वो जो
सृजन रचती रही...!! तुमनें पढ़ी नहीं कभी आंखों की नमी
तो भला आंसुओं की भाषा क्या खाक समझते!
अहम की पराकाष्ठा, वहम के मारो
तुम क्या जानों प्रीत निभाना!
वो जो यज्ञवेदी में करके स्वाहा आती है अपनी हर खुशी
तुम नित नयी चिंगारी सुलगाते हो
और एक दिन जब जल कर राख हो जाएंगी प्रेम की जड़ें
तो मरूस्थल के ह्रदय में क्या रोपोगे तुम?
मधुबन रचाना तुम्हारे बस की बात नहीं
तुम तानाशाह ही बने रहो इन मकबरे - मकानों के
बेशक घर के भीतर दहलीज के पार मेरे लिए बनवास है
पर यह घर तुम्हारा तब तक ही घर...
जब तक सांसों में सांस है
एक दिन अति के अंत में
रह जाएंगे बबूल खड़े
तितलियाँ सारी उड़ जाएंगी!
Pic by guriditta singh
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