( पुण्य तिथि :22 अक्टूबर) : भारत यायावर
-=================================
विजय केसरी
भारत यायावर की कविताएं सदा मुस्कुराती रहेंगी
विजय केसरी
झारखंड के जाने माने साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक, समीक्षक भारत यायावर की कविताएं सदा समय से संवाद करती नजर आती है । उनकी कविताएं सदा मुस्कुराती ही रहेंगी । भारत यायावर का मन सदैव लोगों को गले लगाते रहा था । आज उनका शरीर मन से अलग हो गया है । इसके बावजूद उनके मन से उपजी कविता की पंक्तियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं। उनकी कविताएं मन में उठते हर सवालों का जवाब भी देती नजर आती हैं । उनकी कविताएं पाठकों से वार्तालाप भी करती रहती हैं । उनकी कविता की पंक्तियों की यह खासियत है। उनके मन की उपजी कविताएं जितनी बार भी पढ़ी जाती हैं, हर बार एक नए अर्थ और रस के साथ उपस्थित हो जाती हैं। जब तक यायावर इस धरा पर रहें, सदा गतिशील रहें, सदा रचना रत रहें । साहित्य के अलावा उन्होंने इधर उधर बिल्कुल झांका नहीं। हिंदी साहित्य ही उनके जीवन का सब कुछ था । वे हिंदी साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया बन गए थे । हिंदी साहित्य पर क्या कुछ लिखा जा रहा है ? उनके पास बिल्कुल ताजा जानकारी रहती थी । पूर्व के रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को किस तरह समृद्ध किया है ? इस पर उनकी टिप्पणी सुनते बनती थी । उनकी बातों को सुनकर प्रतीत होता था कि उन्हें हिंदी साहित्य की कितनी जानकारी है। एक बार प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा कवि भारत यायावर के साथ फणीश्वर नाथ रेणु के गांव एक साहित्यिक कार्यक्रम में जा रहे थे। उन दोनों के बीच हिंदी साहित्य पर लंबी वार्ता हुई थी। इस वार्ता पर रतन वर्मा ने कहा कि 'भारत यायावर निश्चित तौर पर हिंदी के एक मर्मज्ञ विद्वान हैं । उन्हें हिंदी साहित्य की हर विधा की जानकारी हैं।
कवि भारत यायावर कि लगभग साठ पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी कुछ पुस्तकें प्रकाशाधीन हैं। उन्होंने जो कुछ भी रचा और संपादन किया । सभी महत्वपूर्ण कृतियां बन गई है । आज उनके जन्मदिन पर उनकी एक महत्वपूर्ण कृति 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता संग्रह की विशेष रूप से चर्चा करना चाहता हूं। इस संग्रह में कुल उनहत्तर कविताएं दर्ज हैं। सभी कविताएं विविध विषयों पर लिखी गई हैं। कविताओं के पाठन के उपरांत मैं यह विमर्श कर रहा था कि आखिर भारत यायावर ने इस संग्रह का नामकरण 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' शीर्षक कविता को ही क्यों चुना ? इस संग्रह की कविताओं के पाठन से लगा कि उन्हें संपादन की भी बड़ी अच्छी समझ थी । इस संग्रह का नामकरण इससे बेहतर और कुछ हो भी नहीं सकता था।
'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता के माध्यम से कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है। टहनियां सूख जाएंगी/ अपना होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि टहनियां सुख जाएंगी । अपना होने का अर्थ मिट जाएगा। फिर भी कविता मुस्कुराएगी । अर्थात यह जीवन एक वृक्ष के समान है । समय के साथ एक वृक्ष का उदय होता है । समय के साथ वृक्ष पुष्पित और पल्लवित होता है और अपना संपूर्ण आकार ग्रहण करता है । लेकिन एक न एक दिन उसकी टहनियां धीरे धीरे कर सूखती चली जाती है। एक समय ऐसा आता है, जब वृक्ष का अस्तित्व मिट जाता है। लेकिन मनुष्य के जीवन के वृक्ष से निकले उदगार और कर्म कविता के रूप में फिर भी मुस्कुराते रहेंगे । भारत यायावर की पंक्तियां एक जीवन के समान हैं। उनकी पंक्तियां चंद शब्दों के मिलान भर नहीं है, बल्कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन है। मनुष्य का जीवन अनंत काल से है। और अनंत काल तक बना रहेगा । कविता का जन्म ना मरने के लिए होता है । कविता की पंक्तियां कालजई होती हैं । कविता अमरता का वरदान लेकर ही पैदा होती हैं। कविता जब भी किसी पाठक के पास पहुंचती हैं। कविता पुनः गतिशील हो जाती हैं। कविता गीता के श्लोकों की तरह सदा साक्षी भाव में रहती हैं। कविता दुःख - सुख दोनों में सदा मुस्कुराती रहती हैं। यही कविता की खूबसूरती है। कविता किसी राजनेता की आलोचना कर रही होती है, तब भी मुस्कुराती रही होती है। कविता जब किसी श्रमिक के बहते पसीने पर अपनी बात कह रही होती है, तब भी कविता मुस्कुराती रही होती है । कवि के लिए कविता एक जीवन के समान है। जीवन के समान निरंतर गतिमान बनी रहती है । जीवन का आना जाना लगा रहता है। लेकिन कविता जीवन के आने जाने से मुक्त होकर कवि के मन के भावों को सदा सदा के लिए अमर बना देती हैं।
आगे पंक्तियां कहती हैं। कविता / मेरे धीरे-धीरे मरने का संगीत ही नहीं/ कविता/ सृष्टि को अकेले में / या भीड़ में भोगी / संवेदना का गीत ही नहीं /लोग /रेंगते/ घिसटते / थके - हारे लोग / कविता सिर्फ कविता। अर्थात कविता सिर्फ मेरे धीरे धीरे मरने का संगीत ही नहीं बल्कि मेरे जीवन के संघर्ष की सहचर भी हैं। लोग रेंगते हैं। लोग घिसटते हैं। थक कर चूर हो जाते हैं । इन तमाम संघर्ष और परेशानियों के बीच मनुष्य रहकर भी चलता ही रहता है । यह संघर्ष ही उसे गतिमान बनाता है। यह परेशानियां ही उसे जीने का एक नया अर्थ प्रदान करती हैं। मनुष्य के जीवन में संघर्ष ना हो। परेशानियां ना हो। तब यह जीवन किस काम का ? जीवन के संघर्ष और परेशानियां ही मनुष्य को साधारण से असाधारण बनाता है । इसलिए मनुष्य को कविताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए। कविता का जन्म किसी भी कालखंड में क्यों ना हुआ हो । जब भी उसे पढ़ा जाता है। कविता पूरी शिद्दत के साथ अपनी बातों को रखती हैं । कविता लोगों को प्रेरणा देती हैं। फिर मनुष्य क्यों अपने संघर्ष और परेशानियों से घबराता है ? उसे कविता की तरह ही विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराने की जरूरत है।
मेरे अंदर / टूटती है शिलाएं रोज / फिर भी मैं गहरे अंधेरे में खो जाता हूं / रोशनी मेरी आंखों में / ढेर सारा धुआं उड़ने लगती है /लगातार जारी इस बहस से/ आजाद कब होओगे, भाई ! / इस विफल यात्रा की झूठ को ढोता थक गया हूं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बहुत ही महत्वपूर्ण बातों की ओर इशारा करते हुए कहना चाहते हैं कि हर रोज लोगों के अंदर नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं । विचारों की शिलाएं रोज बनती हैं। टूटती हैं । और ना जाने ये विचार किस भंवर में समा जाती है ? जैसे लगता है कि आंखों के सामने सब कुछ दिख रहा है।लेकिन कुछ भी दिख नहीं हो रहा है। जैसे किसी ने ढेर सारा धुआं आंखों के सामने उड़ेल दिया हो। जब से मनुष्य आया है। तब से यह बहस जारी है कि मेरी यह यात्रा किस लिए है ? लेकिन अब तक किसी ने इस यात्रा के रहस्य को समझा ही नहीं पाया। मनुष्य अनंत काल से जन्म लेता चला रहा है। शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य का जन्म अनंत काल तक होता रहेगा । मनुष्य एक राहगीर के समान है। वह इस राह पर कब तक चलता रहेगा ? उसे मालूम ही नहीं । मनुष्य इस विफल यात्रा से मुक्ति चाहता है । आखिर इस विफल यात्रा के झूठ को मनुष्य कब तक ढोता चला जाएगा ? मनुष्य इस यात्रा से मुक्ति की नई राह को ढूंढता नजर आता है। जिसकी तलाश ना जाने कितने महापुरुषों ने की थीं । उन्हें इस विफल यात्रा से मुक्ति मिली अथवा नहीं ? ये भी बातें रहस्य बन कर रह गई हैं।
आगे पंक्तियां कहती हैं । आओ / हम अपने को नंगा कर / स्वतंत्र हो जाएं/ यातनाओं के बीच / हमारी अस्मिता का सुंदर रुप हो/ लय हो/ टहनियां सूख जाएंगी/ हमारे होने का अर्थ मिट जाएगा/ कविता फिर भी मुस्कुराएगी। कवि इन पंक्तियों में एक संदेश वाहक के रूप में यह कहना चाहते हैं कि यह जीवन सिर्फ माया का एक बंधन है। मनुष्य खाली हाथ आया है । और इस धरा से खाली हाथ ही चला जाएगा। मनुष्य इस धरा से फूटी कौड़ी भी नहीं ले जा सकता है। तो फिर मनुष्य धन, यश और पद के पीछे क्यों भाग रहा है ?
ये सारी चीजें उसे माया में ही बांधती चली जाएगी। इसलिए मनुष्य को इन बंधनों से मुक्त होने के लिए नंगा होना होगा । खुद को इन बंधनों से मुक्त करना होगा। स्वतंत्र होना होगा । तभी इस यात्रा से मुक्ति संभव है। जीवन में जो दुःख, संघर्ष, खुशी आदि हैं। इन्हीं के बीच अपनी अस्मिता को सुंदर बनाया जा सकता है। जब मनुष्य माया के बंधनों से मुक्त होता है, तभी उसका रूप निखर कर सुंदर होता है। और इसी रूप का लय होना सच्चे अर्थों में इस यात्रा से मुक्ति का मार्ग है ।
विजय केसरी,
( कथाकार / स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301
मोबाइल नंबर : 92347 99550.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें