शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

रवि अरोड़ा की नजर से.....

एक सर्वे ऐसा भी / रवि अरोड़ा 



एक अखबार में छपी यह ख़बर आपने भी पढ़ी होगी कि शहर के एक अनाथ आश्रम घरौंदा को इस साल मिले लावारिस बच्चों में तीन चौथाई केवल लड़कियां ही थीं। हालांकि इस ख़बर में नया कुछ भी नहीं था मगर यह ख़बर चूंकि नवरात्र में छपी थी अतः महत्वपूर्ण हो गई । वह नवरात्र जिसमें हम एक स्त्री रूपा दुर्गा को परम शक्ति मानते हुए उसकी पूजा करते हैं और पूरे नौ दिन उसके सम्मान में उपवास रखते हैं, उसी जीती जागती स्त्री की मुल्क में हैसियत की यह जमीनी हकीकत है। बेशक इस बार भी करोड़ों देशवासियों ने नवरात्र में उपवास रखा होगा और कन्या पूजन के साथ मां दुर्गा को पूरे सम्मान के साथ विदा होगा । पूजी गई स्त्री चूंकि पत्थर अथवा मिट्टी की थी अतः अपने आसपास की स्त्रियों में उसका अक्स तलाशने की किसी को कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी । इर्द गिर्द की स्त्रियों के बाबत युगों से स्थापित आचरण में परिवर्तन की तो खैर कल्पना भी फजूल है। इस बार भी नवरात्र में भी खूब बलात्कार हुए, महिलाओं की हत्या हुई और अपने पतियों से भी औरतें जम कर पिटी । हालांकि ऐसा कोई सर्वे तो नहीं हुआ मगर अखबारों से गवाही लें तो नवरात्रों में भी महिलाओं के प्रति अपराधों में रत्ती भर भी कमी देश में नहीं आई। 


घरौंदा आश्रम की बात करूं तो वहां इस समय 31 बच्चे हैं और उनमें से 20 केवल लड़कियां हैं। आश्रम संचालक ओंकार सिंह से मैंने जब पूछा लड़के कम क्यों हैं तो उन्होंने मुझ से ही पूछा कि लड़कों को भला कौन लावारिस छोड़ता है ? उनके अनुसार लड़के तो केवल वही लावारिस मिलते हैं जो किसी कुंवारी मां की संतान हों अथवा रेल गाड़ी आदि में अपने मां बाप से बिछड़ गए हों। मां और बाप दोनो की मृत्यु और किसी रिश्तेदार द्वारा जिम्मेदारी वहन न करने की सूरत में भी यदा कदा लड़के आश्रमों में पहुंचते हैं जबकि इसके विपरीत लड़कियों के ऐसे स्थानों पर पहुंचने का बस एक ही कारण होता है और वह है बेटे की चाह में अनचाही बेटी का पैदा हो जाना। बच्ची के मां बाप पहले तो उसे मारने का ही प्रयास करते हैं और असफल रहने पर मरने के लिए लावारिस छोड़ देते हैं। ओंकार सिंह बताते हैं कि उनके पास ऐसे बहुत सी महिलाओं का फोन आता रहता है जो बताती हैं कि तीसरी अथवा चौथी लड़की हुई है और पति उसे मारना चाहता है, बताएं क्या करूं ? घरौंदा आश्रम ही नहीं देश के ऐसे आठ हजार आश्रमों की यही हालत है। महिला एवं बाल विकास मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुरूप अनाथ आश्रमों में लड़कियों की संख्या दो तिहाई है। यह आंकड़ा उस देश का है जहां हर राज्य में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले बेहद कम है । 


चलिए फिर नवरात्र की बात करें। इस बात नवरात्र में मेरे मन में एक इच्छा जगी। चाह हुई कि देश भर में ऐसा कोई सर्वे हो जिसमें यह पता किया जा सके कि कितने फीसदी बलात्कारियों ने नवरात्र पर उपवास रखा ? अपनी पत्नियों को पीटने वाले कितने फीसदी पुरूष दुर्गा की पूजा करते हैं ? अथवा जिन्होंने अनचाही कन्या होने पर उसे मार दिया अथवा कूड़े के ढेर में मरने को फेंक दिया, उन्होंने नवरात्र कैसे मनाए ? जाहिर है कि कोई सरकार भला ऐसा सर्वे क्यों कराएगी। चलिए जाने दीजिए सरकारों को और खुद ही अपने इर्द गिर्द झांकें और पता करने की कोशिश करें कि स्त्रीयों पर आए दिन जुल्म करने वालों ने इस बार नवरात्र पर क्या क्या पाखण्ड किया था?



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