रविवार, 7 जून 2020

होइगे मोर धरोहर गायब / महाकवि व्हाट्स एप्प







👍होइगै मोर धरोहर गायब
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चम्पा और चमेली गायब ।
फुलवन से ऊ खुश्बू गायब ॥
छोट छोट चीनी के आगे ।
बडी बडी गुड भेली गायब ॥

सरिया मह से धेनू गायब ।
माठा मह से नैनू गायब ॥
बडी बडी राइसमिल चलिगै  ।
काँडी जांत पहरुवा गायब

खेतन से भय बरही गायब ।
ताले से भय नरई गायब ॥
घरे घरे अब नलका गडिगा ।
धन्न कुँवा पनिहारिन गायब ॥

रैन ना बोलै झींगुर गायब ।
जँगल मह से तीतिर गायब ॥
जब से रोटावेटर चलिगा ।
खेते मह से चीखुर गायब ॥

सगरे कै ऊ पानी गायब ।
नानी कै कहानी गायब ॥
जब से मिक्सर विक्सर चलिगा ।
सिल बट्टा कै चटनी गायब ॥

नदियां से भय नइया गायब ।
नइया कै खेवइया गायब ॥
अब कपार चढि कूकुर बइठे ।
सरिया मह से गइया गायब ॥

बाइस्कोप कै दुनिया गायब ।
जँघिया कै नचवइया गायब ॥
जब से आर केस्ट्रा चलिगा ।
बिरहा और बिरहिया गायब ॥

पँछी महै मटरिया गायब ।
मोरवा और मोरिनिया गायब ॥
खपडा से अब लिंटर परिगा ।
आँगन से गौरैया गायब ॥

गन्ना कै रस गोरस गायब ।
सतुवा और चबइना गायब ॥
जब से कोकाकोला चलिगा ।
माठा कै पियवइया गायब ॥

माटी वाली हण्डी गायब ।
डिहवा पर कै झण्डी गायब ॥
जब से गैस सिलेण्डर चलिगा ।
चूल्हा पर से कण्डी गायब ॥

स्कूले कै दुद्धी गायब ।
पहिली वाली तख्ती गायब ॥
शिक्षा जब से बिजनेस बनिगा ।
बडे बडे कै बुद्धी गायब ॥

महुआ कै ऊ किसुली गायब ।
आमे कै ऊ जिबुली गायब ॥
लकडकट्ट कै चोरी बढिगै ।
हरियर पेड कै सिल्ली गायब ॥

मेघ ना बरसै पानी गायब ।
गँउवन कै जवानी गायब ॥
बाग उजड के महल खडा अब ।
बइलन कै जवानी गायब ॥

हर जुवाठ कै मुठिया गायब ।
बाबा जी कै कुटिया गायब ॥
मोबाइल से होय भजन अब ।
मँगलचार कै गितिया गायब ॥

धानी रँग कै चिरिया गायब ।
शादी ब्याह कै भिरिया गायब ॥
वाइफ और हसबेण्ड बने ।
पति वन्दन वाली तिरिया गायब ॥

समुन्दर से सूती गायब ।
बाँसे कै ऊ पूती गायब ॥
बोलबेटा बालम् अब चलिगा ।
धोती कुर्ता गमछा गायब. ॥

गोझिया कै ऊ मोडनी गायब ।
रसोइँया से बढनी गायब ॥
जब से जींस और टाप सँचरि गा ।
कांधे पर से ओढनी गायब

टिड्डा और टिटहरी गायब ।
पोखरा से भय सेहरी गायब ॥
जब से टीना टंकी चलिगै ।
माटी वाली डेहरी गायब ॥

कय चिंतन " साकेतपुरी अब ।
मन मा इहै विचार करैं ॥
आवै वाली पीढी कइसे जानी।
 शिष्टाचार करै ॥
ओक्का बोक्का तीन तलोक्का,
फूट गयल बुढ़ऊ क हुक्का।
फगुआ कजरी कहाँ  हेरायल,
अब त गांव क गांव चुड़ूक्का।।

नया जमाना; नयके लोग,
नया नया कुल फईलल रोग।
एक्के बात समझ में आवै,
जइसन करनी वइसन भोग।।

नई नई कुल फइलल पूजा,
नया नया कुल देबी देवता।
एक्कै घर में पांच ठो चूल्हा,
एक्कै घरे में पांच ठो नेवता।।

नउआ कउआ बार बनउवा,
कवनो घरे न फरसा झऊआ।
लगे पितरपख होय खोजाई,
खोजले मिलें न कुक्कुर कउआ।।

एहर पक्का ओहर पक्का,
जेहर देखा ओहर पक्का।
गांव क माटी महक हेराइल,
अंकल कहा कहा मत कक्का।।

कहाँ गयल कुल बंजर ऊसर,
लगत बा जइसे गांव ई दूसर।
जब से ई धनकुट्टि आइल,
कउनो घरे न ओखरी मूसर।।

कहाँ बैल क घुंघरू घण्टी,
कहाँ बा पुरवट अऊर इनारा।
कहां गइल पनघट क गोरी,
सूना सूना पनघट सारा।।

शहर गांव के घीव खियावै,
दाल शहर से गांव में आवै।
शहरन में महके बिरियानी,
कलुआ खाली धान ओसावै।।

गांव गली में अब त खाली,
राजनीती पर होले चर्चा।
अब ऊ होरहा कहाँ भुजाला,
कहाँ पिसाला नीमक मरचा।।

कबो कबो सोंचीला भाई,
अब ऊ दिन ना लौट के आई।
अब ना वइसे कोयल बोलिहैं,
वइसे ना महकी अमराई।।

🌹 यदि आप अपने पुराने दिनों में पहुंच गए हों तो इन यादों को आगे बढ़ाते रहिएगा।
धन्यवाद।
एक मित्र के ह्वट्सैप से।


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