सोमवार, 27 सितंबर 2021

दृष्टि दोष

 --------// दृष्टि दोष //----------


एक नदी में कुछ ऋषि पुत्रियाँ नग्न-अर्धनग्न अवस्था में स्नान कर रही थीं । कुछ पानी के अंदर थी और कुछ किनारे बैठी हँसी ठिठोली करती हुईं अपना अपना शरीर साफ कर रही थीं । तभी उन्हें पदचाप सुनाई दी । देखा तो व्यास ऋषि इधर ही आ रहे थे । 


उनके निकट आते ही बाहर बैठीं ऋषिकन्याएँ  जल के अंदर चली गईं और उनके आगे बढ़ते ही फिर से बाहर आ गयी।  थोड़ा आगे जाकर ऋषि ने नदी से जल ग्रहण किया और वापस चले गए। इस बार फिर से कन्याएं जल में उतर गयीं । 


थोड़ी ही देर में उधर से पदचाप सुनाई पड़ने पर कन्याओं ने देखा कि व्यास ऋषि के युवा पुत्र शुकदेवजी आ रहे हैं । कन्याएं वैसी ही बैठी स्नान करती रहीं और ब्यास जी आगे निकल गए । तभी कन्यायों ने देखा कि व्यास ऋषि अचानक इधर ही आ रहे हैं तो वे पानी मे उतर गयीं ।


इसबार व्यास ऋषि वहाँ ठहरे और बोले - पुत्रियों! मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि मुझ बूढ़े को देखकर तुम सभी को लज्जा और झिझक का आभास हो रहा है किंतु मेरे युवा पुत्र को देखकर कुछ भी नहीं । ऐसा क्यों ?

एक कन्या ने गले तक जल में रहते हुए ही हाथ जोड़ते हुए कहा - क्षमा करें ऋषिवर! यह तो दृष्टि और विचारों के कारण ऐसा हो रहा है ।


ऋषि ,- मैं समझा नहीं । कृपया स्पष्ट कहें ।


कन्या - ऋषिवर, आपने हमें स्नान करते हुए न केवल देखा बल्कि हमारी क्रियाओं को भी संज्ञान में लिया जबकि वे आ रहे (एक तरफ संकेत करते हुए) शुकदेव जी ने न तो हमें स्नान करते हुए देखा और न हमारी क्रियाओं को संज्ञान में लिया ।


ऋषि - ऐसा कैसे सम्भव है कि शुकदेव ने तुम सभी को देखा ही न हो!


फिर समीप आने पर उन्होंने शुकदेव जी को रोककर पूछा - शुकदेव, क्या आपने इन कन्याओं को तट पर स्नान करते हुए नहीं देखा ?


शुकदेव जी - तात! कौन सा तट और कौन सी कन्याएं ! मैं तो प्रभुपद में निमग्न हूँ ।


और वे प्रणाम करते हुए आगे चले गए ।


ऋषि - क्षमा करना कन्याओं, आज मैं समझ गया कि शुकदेव क्यों श्रेष्ठ है ।


निष्कर्ष : ये दृष्टि ही तो है कि जब स्वयं की माँ, बहन या बेटी के गुह्य अंग दिखते हैं तब यह झुक जाती है और विचार भी उत्तेजक नहीं होते हैं बल्कि हम धीरे से या तो उस स्थान से हट जाते हैं या फिर अन्यत्र देखने लगते हैं। किन्तु यहीं पर यदि इनसे पृथक कोई अन्य स्त्री कुछ ऐसी ही दशा में होती है तो दृष्टि और विचारों में उलट प्रतिक्रिया होने लगती है । हम उनका पीछा भी करते हैं । दोष फिर भी स्त्री का .. भला क्यों ?


सभी यही कहते हैं कि हमारे घर की स्त्रियाँ ऐसी नहीं हैं किन्तु कभी दूसरों की दृष्टि और विचारों से भी उन्हें परख कर देख लेते तो शायद दोष किसका है समझ मे आ जाता । भइया जी, जो विचार और दृष्टि हम दूसरे की बहन बेटियों के लिए रखते हैं, दूसरों की  वैसी ही दृष्टि और विचार हमारी बहन बेटियों के लिए भी रहते हैं चाहे हम उन्हें कितने ही परदे और बंदिशों में रख लें।


दूसरों के कपड़े या भाव भंगिमा पर कटाक्ष करने से पहले हमें अपनी नज़र और विचारों को अनुशासित और संयमित रखना पड़ेगा । - 'जय' हो ।


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