बुधवार, 22 सितंबर 2021

उजाला या अँधेरा: / मुकेश कुमार

बात यही कोई पचीस-तीस साल पुरानी है जब गाँव में सही से सड़क भी नहीं बनी थी और ना ही हर तरफ बिजली पहुँच पायी थी. 

हाँ गाँव के कुछ धनी लोग जरुर थे जिन्होंने बिजली के लिए जनरेटर और मनोरंजन के लिए टीवी का इंतजाम कर रखा था. अधिकतर लोग सरकारी नौकरी वाले ही थे, उनका ऑफिस कस्बे में था सो सारी उपलब्ध सुविधाओं का पुरा खबर रहता था उन्हें.

अँधेरा हुआ नहीं की फट-फट की आवाज़ से गूंजने लगती थी उनके घर के बगल वाली झोपडी जिसमे जनरेटर रखा होता था. 


वो अँधेरा भी कमाल का था, एक ही समय में गाँव को दो हिस्सों में बाँट जाता था. एक तरफ जहाँ ढिबरी जलती हुई दिखती तो दूसरी तरफ़ जगमगाती रौशनी में चमकता हुआ सब कुछ. 

गाँव के दोनों तरफ दूर से देखो तो लगता था मानो वो जनरेटर ढिबरी की रौशनी का मजाक उडा रहा हो.

एक तरफ जगमगाती रौशनी में लोग खेलते या फिर जमावड़ा लगा कर बैठे नज़र आते, तो दुसरी तरफ़ क्या हो रहा है ए बता पाना भी मुश्किल.


गाँव के दुसरे हिस्से को देख ऐसा लगता था मानो अँधेरे को गुलाम बना रखा हो उन्होंने, जब तक मन करे तब तक अँधेरे को चीरते हुए बड़ी-बड़ी बत्तियां जलाते और फिर बड़े से कमरे में रखी हुई टीवी पर सब एक साथ फिल्म देखने का लुत्फ़ उठाते थे. उस समय टीवी पर सिर्फ़ दूरदर्शन आता था, शुक्रवार की शाम को चित्रहार पर नए-पुराने गाने और रात को पुरानी फ़िल्में.


इधर गाँव के दूसरे तरफ ढिबरी की रौशनी में कुछ औरतें खाना पकाती, कुछ बुजुर्ग रिश्तों को अपनी अनुभव देते, कुछ लोग बच्चे को पढ़ाते नजर आते थे.

जो बच्चे बड़े थे वो अपने से छोटे बच्चों को भी पढ़ा रहे थे. रौशनी तो ज्यादा नहीं होती है ढिबरी से लेकिन हाँ जब अगल-बगल हर तरफ ढिबरी जलती हुई नज़र आती तो लगता था जैसे दिवाली की रात हो. 

वक़्त गुजरता रहा और बच्चे बड़े होते गए गाँव के इस तरफ भी और उस तरफ भी. गाँव के स्कूल के स्कूल से पढ़ाई पूरी होते ही दोनों तरफ के बच्चों ने कस्बे के हाई स्कूल में दाखिला लिया. यहाँ भी दोनों तरफ के बच्चों ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और कॉलेज के लिए दूसरे शहर भी गए.

वक़्त जितना लगना था उतना ही लगा और फिर दोनों तरफ के कुछ बच्चों ने अपनी उच्चतम पढ़ाई पूरी कर ली.


गाँव के इस तरफ वाले बच्चों ने ज्यादा मेहनत की इसलिए उनमे से एक जिला अधिकारी बन गया और उसकी पहली पोस्टिंग उसी के जिले में हुई. 

उस अधिकारी के देख-रेख के वजह से काफी कम समय में ही उस गाँव के दोनों तरफ की सारी सड़कें पक्की बन गयी और हर तरफ बिजली भी आ गयी.


एक दिन वो जिला-अधिकारी अपने गाँव आया हुआ था तो उस से मिलने कुछ लोग उस तरफ से भी आये. 

अधिकारी से मिल कर जाते वक़्त उस तरफ के एक बुजुर्ग ने पूछा "बेटे तुम ढिबरी में पढ़ते हुए बड़े अधिकारी बन गए और हमारे बच्चे तेज़ रौशनी में भी पढ़ कर कुछ ना बन सके ऐसा क्यों?"


अब मैं क्या बताऊँ काका आपके उम्र को देखते हुए "छोटी मुँह और बड़ी बात हो जाएगी" 

लेकिन आपने पुछा है तो बताना जरुरी है ताकि उस तरफ़ के बच्चों में भी सुधार हो और कुछ करने का जज़्बा जागे.

काका, जहाँ अँधेरा होता है वहिं लोग रौशनी की तलाश में निकलते हैं.

हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं था इसलिए हमने सिर्फ़ अपना सम्मान पाने पर ध्यान दिया और आपके बच्चों के पास सब कुछ पहले से ही था इसलिए उन्होंने कुछ पाने पर ध्यान नहीं दिया.


अनजान लेखक (मुकेश कुमार)

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