"मेरी राधा महारास है"
गुलमोहर वह अमलतास है।
हर पल मेरे आस-पास है।।
उसकी छाया इतनी शीतल।
वह बसंत वह मधुमास है।।
कोमल मधुर कल्पना मेरी।
वह मेरी विश्वास - आस है।।
चितवन की चंचलता ऐसी।
अंतर्मन की वह उजास है।।
आई बनकर शत्रु तमस की।
मन-मंदिर की वह प्रकाश है।।
आंगन में उतरी विभवारी।
चंद्र-किरण सी वही भास है।।
तन-मन मधुर मनोहर उसका।
हुलस मिले बस यही प्यास है।।
गंगाजल जैसी वह पावन।
मेरी राधा महारास है।।
योग-मिलन मन की प्रत्याशा।
अलंकार-रस वह समास है।।..
2
*"गरीबों को खाना"*
सभी चाहते हैं वतन को बनाना।
मगर झूठ का है यहां ना ठिकाना।।
पकौड़े कहीं चाय जो बेचते हों।
उन्हें राजनीति कभी ना बताना।।
मेरे देश में रामराज्य जरूरी।
मगर देवी सीता को मत भूल जाना।।
जहां आम भी होते लंगड़े वहां से।
किसी चोचलेबाज को मत जितना।।
जिन्हें सिर्फ कुर्सी व सत्ता से मतलब।
वे शिक्षा को बेचेंगे हरगिज बचाना।।
जिन्हें कुछ नया करने आता नहीं है।
उन्हें सिर्फ आता है उंगली उठाना।।
न भूलो लगी पेट में आग जिनके।
कठिन है उन्हें देर तक रोक पाना।।
मेरे देवताओं के घर तुम बनाओ।
करो बंद लोगों का पर दिल दुखाना।।
लगी आग बाजार सड़कें हैं महंगी।
कि सीना दिखाकर भरो तुम खजाना।।
दोनों को क्या है जरूरी तो समझो।
अमीरों को योगा,गरीबों को खाना।।...
3
*"सौगंधो के आगे क्या है"
मैं हूं तो कैसा घबड़ाना, संबंधों के आगे क्या है।
जल है थल है या मरुथल है, तटबंधों के आगे क्या है।।
ये दुनिया है बहुत मतलबी,भाग गये सब जब दुख देखा।
मिल जाए अपनों का कंधा, इन कंधों के आगे क्या है।।
सच का साथी बनकर देखो सब हँसते, मैं पड़ा अकेला।
सबसे उत्तम गोरख धंधा, इन धंधों के आगे क्या है।।
जिन पर पड़ा वही बन जाता, इतनी खूबी होती इसमें।
चला पुलिस का डंडा देखो, इन डंडों के आगे क्या है।।
मजदूरन की भीगी पलकें, हांफ रही है रोता बच्चा।
ठेकेदारों बाज तो आओ, तुम अंधों के आगे क्या है।।
कितने नामों के चंदे हैं, शहरों में रहना है मुश्किल।
चंदों में सम्मान छिपा जी, इन चंदों के आगे क्या है।।
रक्तदान का उत्सव करते, मैंने देखा युवाओं को।
जिनके मन में जन सेवा है, उन बंदों के आगे क्या है।।
तन-मन-वचन कर्मरत रहकर,आओ अपना देश बनाएं।
भारत भूमि की सेवा में, सौगंधों के आगे क्या है।।
...*"अनंग"*
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