हमारी गंगा जमुनी तहजीब को पुख्ता करते हैं बारादरी जैसे आयोजन : आलोक अविरल
'ऊपर-ऊपर क्या पढ़ लोगे, जीवन है अखबार नहीं है' : शिव नारायण
आने वाली नस्लों को बेहतर रूप से गढ़ने का काम कर रही है बारादरी : बलराम
संवाददाता
गाजियाबाद। सुप्रसिद्ध कवि और संपादक शिव नारायण ने महफिल ए बारादरी में बतौर अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि बारादरी में कवि और श्रोता के बीच जो रागात्मक तारतम्य दिखाई देता है, ऐसा संयोग दुर्लभ ही देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि यहां सुनी रचनाओं ने काव्य जगत में आ रहे परिवर्तन से भी मेरा परिचय करवाया। एक ओर मंच पर जहां कविता की अस्मिता की निरंतर हानि हो रही है वहीं ऐसे आयोजन कविता की आत्मा को अक्षुण बनाए रखने को तत्पर दिखाई देते हैं। उन्होंने अपने अशआर 'गम क्या उपचार नहीं है, लोगों में किरदार नहीं है। ऊपर-ऊपर क्या पढ़ लोगे, जीवन है अखबार नहीं है। जो खुशियों पर ताला जड़ दे ऐसी भी सरकार नहीं है' पर भरपूर दाद बटोरी।
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में संपन्न कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आए आलोक 'अविरल' ने कहा कि 'बारादरी जैसे आयोजन ही हमारी गंगा जमुनी की तहजीब को पुख्ता करने का काम करते हैं'। उन्होंने अपने कलाम 'तेरे मेरे दिल के बीच इक पुल होता था कच्चा सा, जिसके नीचे से बहता था सुख का झरना छोटा सा। छोटे-छोटे लम्हे बुनकर मन आकाश बनाया था, इक सपना था तारे जैसा जहां खुद ही आया था। बहुत पुरानी बात नहीं है, हम तुम हंसते रहते थे, किस्सों की संदूक खोलकर घंटों बातें करता था' पर भरपूर दाद बटोरी। अति विशिष्ट अतिथि बलराम ने कहा कि अदीबों की यह महफ़िल आने वाली नस्लों को बेहतर रूप से गढ़ने का काम कर रही है। जो हमें भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है।
विशिष्ट अतिथि अनिल 'मीत' की पंक्तियों 'फैसला कर ही डालिए साहिब, आज कल पर न टालिए साहिब। फिर किसी दूसरे की सिम्त बढ़ो, पहले खुद को संभालिए साहिब' पर ध्यान खींचा।
बारादरी के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने फ़रमाया 'तमाम किस्से अभी तक उसी मलाल के हैं, हुजूर आप सही में बड़े कमाल के हैं। परिंदे ये जो उड़े हैं स्याह और सफेद, अगर ज़बान मैं खोलूं तो एक डाल के है'। सुरेंद्र सिंघल ने अपने शेरों 'धूप आंगन में मेरे आते हुए सीढ़ियां उतरी हिचकिचाते हुए, सुबह एहसान सा करती उतरी चांद निकला था मुंह चिढ़ाते हुए। मेरी बाहों में सो गई थी रात तेरे वादे पर दुख जताते हुए, यकायक खुलती गई वह मुझ पर खुद से खुद को ही छुपाते हुए। मैं खुद को चला हूं बेचेहरा, शहर को आईना दिखाते हुए। मासूम ग़ाज़ियाबादी ने कहा 'आंधियों की ये इंसाफियां देखिए, ऊंचे महलों के फानूस जलते रहे, मुफलिसों के घरों से मेरे गांव में, सब चिरागों से ही रोशनी छीन ली। अपने बच्चों को रोते हुए छोड़ कर वो हवेली के बच्चे खिलाती तो है, भूख ने कितने बच्चों की तकदीर से लोरियों से भरी रात भी छीन ली'।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे अनिमेष शर्मा ने कहा 'अपना जलवा दिखा रही है मुझे, चांदनी फिर जला रही है मुझे। एक तमन्ना जो जल कर खाक हुई, अभी भी कितना सता रही है मुझे। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. तारा गुप्ता के मां सरस्वती को समर्पित दोहों से हुआ। उन्होंने अपने शेर 'पेड़ की जड़ हिलाने से क्या फायदा
शाख से फल गिराने से क्या फायदा। तैरने के लिए डूबना चाहिए, ध्यान तट पर लगाने से क्या फायदा' पर वाहवाही बटोरी। योगेन्द्र दत्त शर्मा के शेर 'ख़ुशबुओं से बच निकलने में ही अब तो ख़ैर है, आजकल है पुरख़तर बारूद फूलों के तले। सिरफिरी दहशत ने तानी हैं गुलेलें पेड़ पर, फुनगियों पर थरथराते हैं बया के घोंसले' भी सराहे गए। पटना से आई रूबी भूषण के शेर 'उसने जो ग़म दिया सीने में छुपा रखा है, दिल को कांटो से ही गुलज़ार बना रखा। काट दे हाथ या मन्नत मेरी पूरी कर दे, तेरे आगे ये मेरा दस्त ए दुआ रखा है' भी सराहे गए। नेहा वैद, इंद्रजीत सुकुमार और जे.पी. रावत के गीत भी भरपूर सराहे गए। सरवर हसन सरवर, पूनम 'श्री', डॉ. अमर पंकज, प्रेम सागर प्रेम, विपिन जैन, सुरेंद्र शर्मा, रूपा राजपूत, रिंकल शर्मा, मंजु 'मन', देवेन्द्र देव, आशीष मित्तल, प्रतिभा प्रीत व सिमरन आदि की रचनाएं भी भरपूर सराही गईं।
इस अवसर पर सुभाष चंदर, आलोक यात्री, पत्रकार सुशील शर्मा, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा, मजबूर गाजियाबादी, मुनीश बिलस्वी, दिनेश शर्मा, अशहर इब्राहिम, साजिद खान, तिलक राज अरोड़ा, वागीश शर्मा, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, सत्य नारायण शर्मा, नीरज कौशिक, सोनी नीलू झा, टेकचंद, सौरभ कुमार, निखिल झा, वी. के. तिवारी, दीपा गर्ग, श्रीमंत मिश्रा, फरहत एवं गौरव गर्ग सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।
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