प्रेम,,,,,,
जो लड़का नही चाहता है प्रेम करना
जिसके उपर पूरे जिम्मेदारी होती हैं
उस लड़के को,
भी हो जाता है अक्सर प्रेम।
जो होता है एकदम परिपक्व।
जानते हुए कि छला ,
जाएंगा ,ठगा जाएंगा ,
सहर्ष मोल लेता है।
सच तो ये है जीना चाहता है,
अपनी बिसराई,भूली जिंदगी,
जो दफना आया ,दायित्व की,
चट्टान के नीचे, गहरे कहीं।
सिर्फ देना ही नहीं वो,
पाना भी चाहता है वो स्नेह।
उनके उम्र से बड़ी होती है,
उनकी परछाईं की उम्र,
जो मुड़ झिड़कती है,
"हद में रहो, ।"
नहीं व्यक्त करता है वो अपनें,
अंदर उमड़ती भावनाएं।
छेड़ना चाहता हैं,
चिढ़ाना चाहता हैं
खिलखिलाना और शरमाना
चाहता हैं खुल के।
नहीं लुभाता उन्हें,
दैहिक आकर्षण ,
होती है बस चाह,मन से
मन के मिल जाने की।
खोजता है वो ऐसा कोई,
जो दे तवज्जो उन्हें,
मुखर हो,बिखर जाए,
जिसके समक्ष बिना किसी,
लाज शर्म लिहाज पर्दे के।
बांटना चाहता हैं
बचपन, जवानी और
चल रही कहानी,
खींच लेता है खुद के इर्द गिर्द ,
लक्ष्मण रेखा खुद ही।
छुपा लेता है खुद को,
कहानी,किस्सों,
लेखों,संस्मरणों के
भीतर ही कहीं।
हाँ, जिम्मेदारी वाले लड़के
को भी हो जाता है
अक्सर प्रेम.,,,,,,,,
मैं शून्य हूँ
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