शनिवार, 3 दिसंबर 2022

आ: धरती कितना देती है' ....???/ ममता सिंह



सुमित्रानंदन पंत की गिनती ऐसे लेखकों में की जाती है, जिनका प्रकृति का चित्रण समकालीन कवियों में सर्वश्रेष्ठ था। आधुनिक काव्य की भूमिका में सुमित्रानंदन पंत जी लिखते हैं कि ’’कविता करने की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, जिसका श्रेय मेरी जन्मभूमि प्रदेश को है। मैं घण्टों एकांत में बैठा प्राकृतिक दृश्यों को एकटक देखा करता था और कोई अज्ञात आकर्षक मेरे भीतर एक अव्यक्त सौन्दर्य का जाल बुनकर मेरी चेतना को तन्मय कर देता था।’’

पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ जैसे अनगिनत पुरस्कार प्राप्त महान कवि सुमित्रानंदन पंत को हिंदी में ‘वर्ड्सवर्थ’ कहा जाता है। उनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साथ ही, हिमालय की ओट में छिपे कौसानी जैसे छोटे से गांव को अपनी रचनाओं के माध्यम से विश्व मानचित्र पर जगह दिलाने का काम यदि किसी ने किया है तो वो पंत जी ही थे। आज उनकी एक कविता की ये पंक्ति 

'आ : धरती कितना देती है'... अनायास ही मानस पटल को झकझोर कर रख देती है कि वो अपनी लेखनी के माध्यम से इतना कुछ गढ़ गए हैं जो देश के लिए अमूल्य धरोहर हैं लेकिन हमने उन्हें क्या दिया? उनके एक कमरे के मकान जिसे ठीक से सरकार संग्रहालय तक की शक्ल भी नहीं दे पाई। कहने को पहाड़ी शैली में एक स्ट्रक्चर जरूर खड़ा किया गया है लेकिन वह भी महज खानापूर्ति ही है। यानी संग्रहालय के नाम पर सरकार ने उनकी कुछेक चीजों को इकट्ठा करके एक मिनी म्यूजियम तो बना दिया लेकिन उसे संग्रहालय भी नहीं कहा जा सकता। वहां न कोई तख्ती लगी मिली, न कोई जानकार व्यक्ति, जिससे पंत जी के बारे में पर्यटकों को कुछ ठोस जानकारी मिल सके। यानी  जिसने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रौशन किया हो, उनकी ऐसी बेकद्री देखकर मन बहुत व्यथित हुआ।

कल सुमित्रानंदन पंत जी की पोस्ट डाली, यह अनायास ही नहीं डाली। लिखना कुछ और था जो वहां देखकर समझा, लेकिन सोचा कि क्या लिखूं उस राज्य के बारे में जिसने देश को कई जाने माने कवि और साहित्यकार दिए। जब वहां की सरकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने प्रतिष्ठित कवियों और साहित्यकारों की सुध नहीं ली तो हम कौन...हां, इतना जरूर है कि पर्यटकों की के लिए आगामी 19 और 20 नवम्बर को ‘कौसानी महोत्सव’ का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन इस दौरान होने वाले कार्यक्रमों में सुमित्रानंदन पंत जी को कितना स्थान मिलेगा, यह देखने वाली बात होगी।  

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