इस शानदार तहरीक ,बहुत ताज़ादम की मौजूदगी के लिए संपादक जी हमारे कुणाल, संतोष चौबे जी और वनमाली कथा के तमाम सहयोगियों का ख़ैरमकदम।
इस अंक की कहानियां पढ़ते हुए मेरे ज़ेहन में एक मिसरा कौंधता रहा
मैं आसमान के माथे को चूम आया हूं।
यह कहानी नवलेखन अंक
जैसे कि युवा अदीबों ने शब्दों के ताप और भाषा की लोच, लय, और कथा जगत के विस्तार और विषय की व्यापकता का बड़ी शिद्दत से एहसास कराया हो।
एक ज़माना पहले जब उर्दू के नक्काद किसी बड़े अदीब पर लिखते तो दो बातों का ज़रुर ज़िक्र करते। कि वो ज़बान का शायर है यानी बहुत साफ़ ज़बान है।दूसरी बात ये कि वो अपना लिखता है यानी, मौलिक लिखता है।
ये दोनों बातें मैं नवलेखन अंक तमाम कथाकारों के लिए बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूं।
ये नये कथा लेखक अकेले नहीं आए, अपने साथ अपना मुहावरा और विजन भी लेकर आए हैं।
विशेषांक की मैं सभी कहानियां तो नहीं पढ़ पाया, कुछ छूट गई हैं, वो अगली किसी नशिस्त पर।
फिलहाल जो कहानियां पढ़ी हैं, उन पर संक्षिप्त सी तहरीर।
आशीष शुक्ला और सौरभ सिंह की पहली कहानी है लेकिन इन कहानियों को पढ़कर लगता है जैसे बहुत कहानियां लिख चुके हों। दोनों युवा कथाकारों का अपनी कथा भाषा और शैली है। आशीष की कहानी में कमाल की रवानी है। वो एक मध्यमवर्गीय परिवार के ज़रिए नये समय की रिफ्लैक्शन को व्यक्त करते हैं। सौरभ सिंह के पास जो भाषा है वो ग़ैर मामूली है। कहानी में अकेले मनुष्य और अकेलेपन को बहुत गूड़ ओर प्रतीकात्मक लहजे में रचते हैं। अकेलापन खुद एक किरदार है। दोनों कहानी लेखकों की ये पहली और सशक्त कहानी है।
उतनी मानीखेज और तहदार कहानी युवा कथाकार और कवयित्री पूनम अरोड़ा की है। पूनम पहले भी बहुत सारी कहानियां लिख चुकी हैं।उनकी लेखन शैली जितनी कविता में मुख़तलिफ़ है उतनी कहानी में भी। उनकी कहानी। तुम पर धिक्कार है अनारकली ।
बहुत प्रतीकात्मक शीर्षक है।
कहानी में बग्ज़ निकालती स्त्री पात्र, दरहकीकत, पूरे परिदृश्य पर हस्तक्षेप करती है।एक स्त्री जब घर से जाब के लिए निकलती है तो हर क़दम पर बदनीयती के कीड़ों से टकराती है। स्त्री संसार के मनोभाव, द्वंद, ख़लिश, व्याकुलता और क्षोभ को बहुत महीन और तीक्ष्ण कथा शैली में रचती हैं।
पूरी कहानी में दृश्यों की रचना है । जैसे कि बिम्ब , ख़ामोश ज़बान में बोल रहे हों।
यही ख़ामोश ज़बान में पुई का बोलना , पुई कहानी में है। छ सात साल की न बोलने वाली लड़की या कहें कि बच्ची पात्र
को कितनी जीवंतता प्रदान की है।वो नहीं बोलती लेकिन उसकी ख़ामोशी बोलती है। पेड़ पौधे पक्षी उसका ख़ामोश भाषा समझते हैं। कहानी में चार किरदार है। पुई टीचर दादी और पुई का पिता चंदन। इन पात्रों के बीच बुनी गई,जैसे कि मासूमियत के किरोशिये से कहानी को बुन दिया हो। अंत बहुत चौंका देने वाला और बहुत शानदार। बहुत अच्छी कहानी।
नोई अक्का उषा दशोरा की बहुत उत्कृष्ट कहानी है।टीन एजर्स की साइकी को कहानी का तो पहले भी बनता रहा है । यहां मिज़ाज दूसरा है। मुहावरा और शिल्प की क्या बात करें । कहानी जैसे दृश्यों में व्यक्त की गई हो।भाषा हर दृश्य में अपना रूप और लहजा बदलती है। यह बहुत बड़ी बात है। कहानी में आश्रम और बाबा के ज़रिए जो लोक रंग लोक भाषा का सृजन हुआ है वो चकित करता है। कहानी बहुत बहुत अच्छी है।
उज़मा कलाम की बालसुलभ भय की अभिव्यक्ति है। बच्चे चूड़ैलों से डरते हैं और उनसे निजात पाने की तरकीबें आज़माते हैं। बहुत दिलकश कहानी है। भाषा खिलंदड़ी कहानी के मिज़ाज और माहौल को रचती हुई।
कांउट योर ब्लैसिंग शिल्पी झा की पहली कहानी है और बहुत हलचल पैदा करती हुई।
कहानी एक तरह से नये समय के नये नागरिकों की कहानी है। जितना समय नया है उतनी कथा भाषा और शैली। आखिर वो क्या चीज़ है जो सब कुछ हासिल होने के बावजूद, स्त्री स्वयं को वंचित सा महसूस करती है।उस छूट गये की अव्यक्त सी ख़लिश को व्यक्त करती बहुत ताज़ादम कहानी है और यह शिल्पी की पहली कहानी है।
इमरोज़ में जीना और कहानियां लिखना बेशक ज़रूरी हो, लेकिन कदीमी रिवायतों, निशानियों, जीवन मूल्यों, पुरानी गलियों मौहल्लों आपसदारी कशिश उन्स लगाव को ज़िंदा रखना भी तो कथाकारों का जज़्बाती काम है । इसी परिदृश्य की छोटी लेकिन अच्छी कहानी अम्मी हमारी वायरल हैं, लतिका प्रियदर्शनी की।
ज़बान के ऐतबार और स्त्री पात्र की दृढ़ता भरी कहानी सबाहत आफ़रीन की कहानी है। उन्होंने कहानी में जिस माहौल की रचना की है उसकी अपनी जादूगरी है। वैशाली थापा की हेडफ़ोन कहानी बहुत छोटी सी कहानी है। कहानी में यात्रा है यात्रा में घटनाएं। लेखिका कहानी के बहाने विमर्श तो पैदा किया ही है कि गैजेट्स क्यों ज़रूरी होते चले गए ।यह एक तरह से भावजगत की कहानी भी है। ज़िंदा है अभी क़ासिद।
विस्मय रचती है और अपनी कथा भाषा , वातावरण,और क़ासिद उपस्थित और अनुपस्थिति की कशमकश को बयान करती गूड़ रचना है।
अंक में कहानी केंद्रित दो ज़रूरी लेख हैं। बड़े अदीब़ों ने कहानी और बाकी लिखने के बारे में क्या कहा , उसे ज़रूर पढ़ा जाए।
बहुत मुबारक युवा कथाकारों को। सोचा ही नहीं था कि इतनी कहानियां पढ़ने को मिलेंगी। इन्होंने किसी की लकीर मिटाई नहीं है, आपनी नयी और पुख्ता लकीर खींची है।
बहुत मुबारक कुणाल सिंह
वनमाली कथा और संतोष चौबे साहब।
शुभकामनाएं।
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