रविवार, 11 दिसंबर 2022

आत्मदर्शन की सिद्धि ही मुक्ति है... नमन.. 🙏

 मैं मानता हूँ कि सम्भोग तन की मूल आवश्यकताओं में से एक है, उसके पूरा होते ही एक अलग ही सुख और शांति का अनुभव होता है, जब मन तृप्त और शांत हो तब आप भगवान भक्ति या अन्य कोई भी काम करें, सफलता की संभावना दुगुनी हो जाती है।


सम्भोग और कामोत्तेजना के दौरान हमें अपनी कमजोरी और ताकत भी अहसास होता है, बेचैनी और तृप्ति का भी अहसास होता है और सही तरीके के सहवास के लिए आपको शरीर और आत्म ज्ञान का होना मतलब सामने वाले की सोच को पढ़ने की क्षमता और खुद की इच्छा और भावना को जान कर प्रकट करने का तरीका हो यहीं से आत्म दर्शन होता है।


भगवान को किसी ने नहीं देखा लेकिन जब हम भगवान की बनाई हुई सबसे अनोखी चीज सम्भोग और कामुकता से जुड़ी हुई चीजों को जानते हैं तब हम ईश्वर को जानने लगते हैं, जब हम इन सबके द्वारा तृप्त और शांत होते हैं, तब हमारे मन मस्तिष्क में स्वतः ही ईश्वर का स्मरण हो आता है। खुद की क्षमताओं को जानना इस प्रकृति के व्यवहार को समझना और ईश्वर के अलौकिक अस्तित्व और सृष्टि को अंगीकार करना ही तो आत्मदर्शन है।


आत्मदर्शन की सिद्धि ही मुक्ति है... नमन.. 🙏

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