रविवार, 18 दिसंबर 2022

गाँव की औरत

 गाँव 

गाँव की औरत


लहरों सी उठती हैं,

हवा सी चलती हैं,

कर्मपथ पर वो सदा,

नदियों सी बहती हैं,

डूबकर वो पसीने में,

गुलाब सी महकती हैं,


चूल्हा चोका, गोबर पाणी,

डांडा ढोर, कबीला ढाणी,

खेत खलिहान, चारा पूस,

ये ही उसका गहना हैं,,

इसी गहने से वो रोज,

दुल्हन सी सँवरती हैं,


कई घाव दिल मे समेटे,

अंजाने दुखों से लड़ती हैं,

कुचले हुए अरमानों के संग,

छुई मुई सी खुद में सिमटती हैं,

सहन शक्ति अपरम्पार इसकी,

कहा सुनी सबकी सहती हैं,

अपनेपन की भूखी बेचारी,

प्रीत की प्यास में तरसती हैं,

पर हारती नहीं झुकती नहीं,

अनवरत कर्मपथ पर चलती हैं,

अनगिनत दुखो के पहाड़ पार कर,

जीवनपथ पर बढ़ती रहती हैं ।।

ना साज सिणगार का शौक,

ना ख्वाहिशें बड़ी रखती हैं,

काजल टिकी ओर बिंदिया में,

कभी कभी चांदनी सी निखरती हैं ।।


गाँव की औरत का जीवन जितना सीधा सादा होता हैं उतना ही कठिन भी होता हैं । 


जोहार गांव की औरत

Copied bhai Mastram Meena

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