प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
हमेशा की तरह दोपहर को सब्जी बाली दरवाजे पर आई और चिल्लाई, चाची, "आपको सब्जियां लेनी हैं" ?
माँ हमेशा की तरह अंदर से चिल्लाई, "सब्जियों में क्या-क्या है" ?
सब्जी बाली :- ग्वार, पालक, भिन्डी, आलू , टमाटर....
दरवाजे पर आकर माँ ने सब्जी बाली के सिर पर भार देखा और पूछा, "पालक कैसे दिया" ?
सब्जी बाली :-*
दस रुपए की एक गड्डी ।
माँ :- पच्चीस रुपए में चार दो ।
सब्जीवाली :- चाची नहीं जमेगा ।
माँ : तो रहने दो ।
सब्जी बाली आगे बढ़ गयी, पर वापस आ गई ।
सब्जी बाली:- तीस रुपये में चार दूँगी ।
माँ :- नहीं, पच्चीस रुपए में चार लूँगी ।
सब्जी बाली :- चाची बिलकुल नहीं जमेगा ।
और वो फिर चली गयी
थोड़ा आगे जाकर वापस फिर लौट आई । दरवाजे पर माँ अब भी खड़ी थी, पता था सब्जी बाली वापस अवश्य आएगी ।
माँ ने सब्जी की टोकरी उतरने में सहायता की, ध्यान से पालक कि चार गड्डियां परख कर ली और पच्चीस रुपये का भुगतान किया । जैसे ही सब्जी बाली ने सब्जी का भार उठाना शुरू किया, उसे चक्कर आने लगा । माँ ने उत्सुकता से पूछा !
क्या तुमने भोजन कर लिया ?
सब्जी बाली:- नहीं चाची, सब्जियां बिक जाएँ, तो किराना खरीदूँगी, फिर खाना बनाकर खाऊँगी ।
माँ :- एक मिनट रुको बस यहाँ ।
और फिर माँ ने उसे एक थाली में रोटी, सब्जी, चटनी, चावल और दाल परोस दिया, सब्जी बाली के खाने के बाद पानी दिया और एक केला भी थमाया ।
सब्जी बाली धन्यवाद बोलकर चली गयी ।
मुझसे नहीं रहा गया । मैंने अपनी माँ से पूछा :--
"आपने इतनी बेरहमी से कीमत कम करवाई, लेकिन फिर जितना तुमने बचाया उससे ज्यादा का सब्जी बाली को खिलाया"
माँ हँसी और उन्होंने जो कहा वह मेरे मस्तिष्क में आज तक अंकित है एक सीख कि तरह .....
"व्यापार करते समय दया मत करो"
"किन्तु दया करते समय व्यापार मत करो" !
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