रविवार, 18 दिसंबर 2022

विष्णु प्रभाकर से से. रा. यात्री की बातचीत

आभार  / साभारसंपादक: दैनिक हिन्दुस्तान 



मेरी पत्नी ने मुझे मेरे लेखन से  जोड़ा  :  विष्णु प्रभाकर 


  एक धार्मिक विचारों वाले परिवार में जन्म, तो दूसरी तरफ रुढ़ियों के खिलाफ विद्रोह करने के मां से मिले संस्कार आर्यसमाज से प्रभावित विष्णु जी ने 'कोई तो' जैसे चर्चित उपन्यास सहित नाटक, लघु कथाएं तथा यात्रा संस्मरण भी लिखे। विष्णु दयाल से विष्णु प्रभाकर तक का सफर तय करने वाले कालजयी कृति 'अवारा मसीहा' के रचनाकार से से. रा. यात्री की बातचीत :

( सुविधा हेतु मूल स्क्रिप्ट संलग्न है )


🎤 प्रारंभ में आप लेखन की ओर किस रूप में प्रवृत्त हुए?

📎 मेरे परिवार में मेरी मां ही एकमात्र पढ़ी-लिखी महिला थीं। बचपन में वे मुझे भागवत, रामायण, पुराण आदि सुनाया करती थीं। गांव में उस वक्त केवल तीसरी कक्षा तक का स्कूल था। मां की इच्छा थी कि मैं ऊंची शिक्षा प्राप्त करूं। अतः उन्होंने मुझे मामा के पास हिसार (तब का पंजाब और आज का हरियाणा) भेज दिया। मामाजी के स्नेह और सद्भावना के बावजूद मां और परिवार से दूर होना मुझे रास नहीं आया। किसी तरह मैट्रिक की परीक्षा पास की। आशा थी कि कॉलेज पढ़़ने जाऊंगा पर तभी परिवार की स्थिति बिगड़ गई। हमारे परिवार में व्यापार होता था, पर उसमें घाटा आ जाने की वजह से आगे पढ़़ना संभव नहीं हो पाया। मामा जी ने अपने ही दफ्तर में 19 रुपए मासिक के दफ्तरी की नौकरी दिलवा दी। लेखकों को रचनाएं पढ़़ने को मिल गईं। रवींद्र, शरत, प्रेमचंद तथा उपनिषद् आदि मैंने वहीं पढ़े। रूसी तथा अन्य भाषाओं के अनूदित साहित्य के संपर्क में भी आया और इस प्रकार मेरे भीतर का लेखक जाग उठा।

🎤 उस समय के साहित्यिक आंदोलन तत्कालीन सामाजिक गतिविधियों को किस रूप में प्रभावित करते थे? 

📎 जहां तक साहित्यिक आंदोलनों की बात है गांधी और आजादी के लिए संघर्षकी  भावना का साहित्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव था। प्रेमचंद और उनके अनुयायी अन्याय के खिलाफ तथा हरिजनों के विकास के लिए लिखते थे। स्वाधीनता संग्राम को साहित्य में मूर्त करते थे। जैनेंद्र, अज्ञेय और इलाचंद्र जोशी आदि का मार्ग अलग था। उनके लेखन में सूक्ष्मा मनोविश्लेषण की प्रवृत्ति थी। उस समय के प्रगतिशील लेखन में सुधारवाद के साथ स्वतंत्रता का स्वर मुखर था।


🎤 उस समय के किन वरिष्ठ लेखकों ने आपको प्रभावित किया?


📎 पहले मैं प्रेमचंद की ओर झुका था, पर कई कारणों से शरत ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया। प्रतिबद्धता की बात कहूं तो यह कहा जा सकता है कि इस शब्द का इस्तेमाल किए बिना ही उस समय के लेखन में इसका भरपूर निर्वाह हो रहा था। शरतचंद्र ने नारी को मनुष्य की मर्यादा दी। पतिता के अंदर से उदात्त मानवता को खोज निकाला। प्रायः सभी लेखकों के पात्र गांधी की प्रेरणा से आप्लावित थे। वे देश के आजादी के लिए क्या कुछ नहीं कर जाना चाहते थे। मुझे शरत के लेखन ने शुरू से ही प्रभावित किया और उनकी विलक्षण भावुकता मेरे लेखन में आ गई। प्रेमचंद की सामाजिकता और जैनेंद्र की सूक्ष्म सोच की भाषा से भी मैं प्रभावित हुआ।

🎤 'आवारा मसीहा' पढ़ते हुए लगता है कि आपका समस्त चिंतन और रचनात्मक सक्रियता वहीं केंद्रित है? 

📎 वास्तव में यह एक ऐसी कृति है, जिसमें आपको सभी विधाओं के दर्शन हो सकते हैं। संस्मरण, रेखाचित्र, कहानी, नाटक, यात्रा विवरण क्या नहीं है उसमें? दरअसल शरत का चरित्र ही इतना वैविध्य और वैचित्र्यपूर्ण है कि इसे किसी एक विधा में बांधा ही नहीं जा सकता। यों शरत पर बहुत कुछ और मेरे से पहले लिखा जा चुका है। स्व. हुमायूं कबीर ने भी शरत पर एक पुस्तक लिखी है। मैं शरत का कोई भी पक्ष नहीं छोड़़ना चाहता था। उनके प्रति आरंभ से ही समर्पित रहा था। ऐसे विराट व्यक्तित्व के बारे में बिल्कुल वैसा ही लिखना चाहता था, जिस तरह कि यह जिया था। शरत पर लिखने की प्रक्रिया में मुझे जितनी तकलीफें उठानी पड़ी, उस पर अलग से एक पुस्तक लिखी जा सकती है। आर्थिक कठिनाइयां तो थीं ही, इसके अलावा मुझे ऐसी धमकियां मिलती रहीं कि अगर मैंने शरत के प्रति न्याय नहीं किया तो मुझे बंगाल क्षमा नहीं करेगा। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। कभी-कभी तो मुझे स्वयं पर भी शंका होने लगती थी कि शरत पर ऐसा वैसा काम न हो जाए। मुझे शरत के जीवन पर सामग्री एकत्र करते देखकर प्रसिद्ध इतिहासकार मजूमदार शाह ने कहा था कि एक अबंगाली शरद के लिए परेशान क्यों हो रहा है? मैंने उन्हें जवाब दिया 'साहित्यकार के लिए कोई "आउट साइडर" (बाहर का आदमी) नहीं होता'। मेरी बात पर वह प्रसन्न और संतुष्ट हो गए और उन्होंने मेरे काम की सफलता की कामना की।

🎤 पिछले कई वर्षों से आप देश के भिन्न-भिन्न भागों में यात्रा कर रहे हैं। यह मन की मौज है? अकेलेपन को काटने का साधन है? अथवा किसी बड़ी कृति की तैयारी है?


📎 आप ठीक कहते हैं। इस यात्रा के पीछे तीनों ही बातें हैं। अब मैं अकेलापन महसूस करता हूं। मेरी पत्नी मेरा दाहिना हाथ थीं। वह पत्नी से अधिक मेरी मित्र थीं। लेखन की प्रेरणा में उसका बड़ा हाथ है। वह निर्द्वंद्व भाव से समाज के ऐसे पात्रों से मिल लेती थीं, जिन्हें लोग अधिक महत्त्व नहीं देते। मेरे प्रेरणास्त्रोत मेरे बड़े भाई भी अब नहीं रहे। इन दोनों के चले जाने से जैसे मैं बिलकुल अकेला रह गया हूं। देश भर की यात्रा से मेरा एक और प्रयोजन भी है। मैं देश की संस्कृति के मूल में एकता और बाह्य में अनेकरूपता देखता हूं। इसके अलावा मेरी एक योजना भी है। मैं देश के राजनीतिक परिदृश्य पर एक वृहद उपन्यास लिखना चाहता हूं। इसका आधार मैं संस्कृत नाटक 'मृच्छकटिकम्' को बनाना चाहता हूं। राजा को हटा कर साधारण जन का गद्दी पर बैठना और उस युग की वैश्या की प्रतिष्ठा का प्रसंग मुझे कुछ सोचने को विवश करता है। आज हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कितनी ही उन्नति कर गए हों 


पर मूल्यों की दृष्टि से नीचे ही गिरे हैं... अगर मैं इस प्रसंग को लेकर उपन्यास लिख पाया तो राजनीति के बहुत से अनछुए प्रसंग उद्घाटित हो सकेंगे।


(साभार : किताबघर प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक 'मेरे साक्षात्कार सिरीज', के संपादित अंश)

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