शनिवार, 3 दिसंबर 2022

शैलप्रिया जी के लिए संबोधन के कुछ शब्द.......।

 (ज़िन्दगी में साथ चलते लोग जब अचानक अलविदा कहते हैं तो वह जगह हमेशा के लिए खाली हो जाती है। 28 साल पहले​ वह हादसा हुआ था जब सिर्फ 48 साल की उम्र में वे हमसब से बहुत दूर चली गयीं।  इसी सन्नाटे के बीच रहते हुए शैलप्रिया जी के लिए संबोधन के कुछ शब्द।) 


ओ मेरी तुम!

नींद और अवसाद में बीते हैं ये अकेले दिन।

ये दिन 

जिनके उजाले प्रतिपल मद्धिम हुए हैं।

उस रात अस्फुट अलविदा में

कांपे थे जो होंठ और हाथ, 

वे अब पिघलती पुतलियों के हमराज हैं।


एक दिन चावल के नियति-पिंड  पर

काले तिलों से लिखा था

आधी कविता का अधूरा पत्र। 

क्या सहज है पुरखों की कतार में

दिवंगत प्रिया की प्रतिष्ठा ?

और उसके लिए भरे-मरे मन से

अन्तिम बिदाई में

कर्मकांड की सनातनी क्रिया ?


आज यादों की वेदी पर

आंसुओं के फूल मुरझा चुके हैं,

मजार पर जलती मोमबत्तियां

धुएं में घुट रही हैं,

ऐसे में सिर्फ नीम बेहोशी की चाह

सुकून देती है।

ओ मेरी तुम!

मनोमंथन की यात्राएं

अजनबी पड़ावों से लौट कर

देह-घाटी में थम जाती हैं।

हरकत का इकतारा बजता है

जब यह भीतर का सन्नाटा

बाहरी कोलाहल से टकराता है।

000

 Vidya bhushn  



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