सोमवार, 26 दिसंबर 2022

तुलसी, #राम और #रामायण का नाता / डॉ_चंदन_कुमारी


साहित्य, समाज और संस्कृति में रामकथा अनेकानेक रूप में विद्यमान है। जैसे हंस में नीर-क्षीर विवेक होता है वैसे ही हर प्राणी के मन में नीर-क्षीर की परिकल्पना तो होती है, पर उनमें यह परिकल्पना मत वैभिन्न्य के साथ होती है। जिसे जो भाता है उसे ही वह चुनता है। चयन की स्वतन्त्रता तुलसी के मानस में भी द्रष्टव्य है। चयन और अभिव्यक्ति की इसी छूट का भरपूर उपयोग आप डॉ. ऋषभदेव शर्मा की कृति ‘रामायण संदर्शन’ (2022) में देख सकते हैं। लेखक ने  रामायण की अर्द्धालियों को यत्र-तत्र से पुष्प की भाँति चुनकर उसकी अनुपमता को अनुपम रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश में यहाँ जो बाँचा, वह रामायण का सार भाग है| किसी कवि, लेखक, वैज्ञानिक की कही-लिखी कोई बात हो या दृश्य-श्रव्य माध्यम से देखा-सुना कुछ हो, वह मस्तिष्क में स्थिर रह जाता है और स्वतः वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त भी होता है। ऐसी ही रामायण की कुछ पंक्तियाँ जो लेखक को बहुत प्रिय रही हों, संभवतः वे पंक्तियाँ ही इस पुस्तक के हर आलेख का शीर्षक बनी हैं। रत्नावली की फटकार ने तुलसी को रामोन्मुख किया। यहाँ लेखक राम की गाथा के चुनिंदा पलों को बाँचते हुए वर्तमान भूमि की ओर भी उन्मुख हो जाते हैं|। समसामयिक सरोकारों के सापेक्ष रामकथा के प्रसंगों की व्याख्या के साथ ही रामकथा के पात्रों का मनोवैज्ञानिक विवेचन भी पुस्तक में उपलब्ध है।


'रामचरितमानस' के आधार पर बेटी के लिए लेखक का जो संबोधन यहाँ प्राप्त हुआ है, उसे भ्रूणहत्या जैसी कुव्यवस्था का मनोवैज्ञानिक निवारण माना जा सकता है। देखें- “कब समझेंगे हम, बेटी चाहे हिमवान के घर जन्म ले या अन्य किसी के, पुत्री का पिता बनकर पुरुष धन्य होता है! इस धन्यता का अनुभव हिमालय ने कुछ इस प्रकार किया कि पुत्री के जन्मते ही सारी नदियों का जल पवित्र हो उठा। सब खग-मृग-मधुप सुख से भर उठे। सब जीवों ने परस्पर बैर त्याग दिया। सबका हिमालय के प्रति नैसर्गिक अनुराग बढ़ गया। उनके घर नित्य नूतन मंगल होने लगे और उनका यश दिगंतव्यापी हो गया। हर बेटी गिरिजा ही होती है। बेटी के आने से पिता पहली बार सच्ची पवित्रता को अपनी रगों में बहती हुई महसूस करता है। बेटियाँ अपने सहज स्नेह से सबको निर्वैरता सिखाती हैं। बेटियाँ अपनी सुंदरता और कमनीयता से सभ्यता और संस्कृति का हेतु बनती हैं। वे मंगल, यश और जय प्रदान करनेवाली हैं। तभी तो पुत्री-जन्म को तुलसी रामभक्ति के फल के सदृश मानते हैं- सोह सैल गिरिजा गृह आए।/ जिमि जनु रामभगति के पाए।।” (शर्मा:2022, 14)।


पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री का गैर-बराबरी वाला दर्जा निश्चित ही चिंता का सबब है। यह चिंता केवल स्त्री के हित से ही नहीं जुड़ी  है। रामायण से विविध संदर्भों को लेते हुए यहाँ स्पष्ट किया गया है कि समाज के किसी एक अंग का अहित पूरे समाज के लिए अहितकारक है।  राम के बहाने आज को आँकने का सफल प्रक्रम यहाँ दृष्टिगोचर है। राम के धर्मप्रिय, लोकरक्षक और शरणागतवत्सल स्वरूप की चर्चा के साथ समसामयिक गठबंधन की राजनीति और कोरोना जैसी महामारी को पछाड़ने के लिए भी रामचरित का अवगाहन करने का संकेत मिलता है।


लिखित और मौखिक साहित्य में राम और बहुत तरह की रामलीलाओं के बारे में बहुतायत में सामग्री उपलब्ध है। चित्रकला में राम और रामकथा की उपस्थिति को भी लेखक ने सटीक और ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ शोधपूर्ण रूप में यहाँ प्रस्तुत किया है| ‘सीता सिंग्स द ब्लूज’ (2008) अमरीकी फिल्म को रामकथा का एक नया पाठ मानते हुए लेखक की उद्भावना है- 


“आधुनिक मीडिया और प्रौद्योगिकी की सहायता से रचित रामकथा के इस नए पाठ में जो बात सर्वाधिक आकर्षित करती है वह है सीता का सर्वथा नए संदर्भ में प्रतिष्ठापन। पारंपरिक सभी पाठों में सीता की महानता शूर्पणखा, अहल्या, ताड़का, कैकेयी और अन्य स्त्री पात्रों के बरक्स रची जाती रही है। लेकिन इस नए पाठ में सीता को पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण अन्याय का शिकार होते हुए दिखाया गया है। इस कारुणिक दशा के बावजूद वह विलाप नहीं करती बल्कि अपने सम्मान का प्रश्न उपस्थित होने पर स्वाभिमानपूर्वक स्वयं राम का परित्याग कर देती है। यहाँ सीता महावृत्तांत का प्रस्तुतीकरण करनेवाली छायापुतलियों के साथ एकाकार हो जाती है और दर्शकों को सावधान करती है कि किस तरह महान कथावृत्त रचे जाते रहे हैं और किस तरह उनकी पात्र परिकल्पना हमारे साधारणीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करती रही है।” (शर्मा:2022, 114-115)।


सीता का चरित्र केवल एक पौराणिक स्त्री चरित्र नहीं है। सीता प्रतीक है पूरे स्त्री समाज का। और वह प्रतिबिंबित कर रही है समाज में हो रहे स्त्री के प्रति अन्याय एवं दुराचरण की छाया को। कुलीनता के घेरे में भी स्त्री-छवि के इर्द-गिर्द अँधेरे कितने गहन हैं! रामकथा के नए पाठ में सीता रूपी स्त्री-छवि इन अँधेरों को उड़ाकर अपने इर्द-गिर्द स्वयं ही प्रकाश बुन रही है।


राम-साहित्य का संसार में अविरल प्रवाह है। इस प्रवाह में विविध धर्मानुयायी बाधक नही बनते हैं। वे इस प्रवाह को गति देने में अपना एक हाथ आगे बढ़ाते हैं। लेखक ने खासी जनजाति पर शोध करनेवाले मेघालय निवासी मिस्टर लमारे के बारे में बताया है, जो ईसाई होते हुए भी राम साहित्य के प्रति समर्पित हैं। “उनके लिए रामायण कोई धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि समग्र भारत को एक करनेवाला ऐसा तत्व है जिसकी उपेक्षा उन्हें कष्ट देती है।” (शर्मा:2022, 79)।


मनुष्यता के लिए ‘अप्प दीपो भव’ की सार्थकता सिद्ध करनेवाली रामकथा पर आधारित यह पुस्तक रामकथा के आस्वादन हेतु जितनी उपयोगी हो सकती है; उतनी ही यह शोध और चिंतन के निमित्त भी उपयोगी है। अपनी इस रचना को लेखक ने स्वयं ही तुलसी, राम और रामायण का संबंध कहा है, जो उपयुक्त ही सिद्ध होता है| 


संदर्भ ग्रंथ:

शर्मा ऋषभदेव, 2022, रामायण संदर्शन, कानपुर O: साहित्य रत्नाकर। ◆

- डॉ. Chandan Kumari, संकाय सदस्य, डॉ. बी. आर. अंबेडकर सामजिक      विज्ञान विश्वविद्यालय, अंबेडकर नगर (महू) मध्यप्रदेश । 


 ◆2◆

#अभिमत : प्रो.Gopal Sharma 

गोस्वामी तुलसीदास विरचित 'रामचरितमानस' के सात कांडों में मानव की उन्नति के सात सोपान हैं।  उसके दोहों चौपाइयों में अनगिनत सूक्तियाँ हैं।  अर्धालियों में अर्थ के विविध धरातल हैं। रामायण की कुछ प्रसिद्ध चुनिंदा अर्धालियों के निहितार्थ को स्पष्ट करती इस पुस्तक में  रामकथा मर्मज्ञ प्रोफेसर #ऋषभदेव_शर्मा ने गागर में सागर भरते हुए यह संदर्शन जिज्ञासु  पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है।  इसमें एक एक अर्धाली लेकर उनके अर्थ को हस्तामलकवत खोल दिया गया है।  


रामकथा के मर्म को उद्घाटित करने वाली इस पुस्तक के हर पृष्ठ पर मंगल भवन अमंगल हारी भगवान राम का आशीर्वाद है और उनका गुणानुवाद है।  और साथ में है उनके वचनों और कथनों में छिपे रहस्य का उद्घाटन।  कई बार जिन आम पाठकों को 'ढोल गँवार' जैसी उक्तियों  के अर्थ को लेकर  मत-वैभिन्न्य  हो जाता है और आपस में वाद विवाद तक हो जाता है , उनके लिए यहाँ तुलसीदास के मंतव्य तक पहुँचने का मार्ग मिलता है… 'पुनर्पाठ की इस प्रविधि में यह स्थापना हमारी सहायता कर सकती है कि इकाइयाँ महत्वपूर्ण नहीं होतीं, उनके अंत:संबंध महत्वपूर्ण होते हैं।' डॉ. ऋषभदेव शर्मा का यह कथन इस पुस्तक के लिए कुंजी है, रामशलाका है।  


रामकथा के इस उन्मुक्त पाठ के पुनर्पाठ से पाठकों को तुलसी के वचनों की गहराई तक जाने का अवसर मिलेगा; और साथ ही वह प्रशिक्षण भी अनायास ही प्राप्त होगा जिससे वे भी कालांतर में जब रामायण की  किसी अन्य अर्धाली या चौपाई को पढ़ेंगे तो उसके अभिधार्थ से सहज ही आगे बहुत आगे जा सकेंगे। रामायण के खंड पाठ से  अखंड आनंद की ओर ले जाने वाली इस अद्भुत कृति में अवगाहन करने से मानस का सारा कलुष ही नहीं कटेगा बल्कि ज्ञान के चक्षु खुल जाएँगे, ऐसा विश्वास है।


जिस तरह गुड़ की भेली को कहीं से भी लेकर खाने से स्वाद इकसार आता है, वैसे ही 'रामायण संदर्शन' का स्वाद इसके आस्वादन से हर बार और लगातार   होता है। समकालीन हिंदी साहित्य में 'राम साहित्य' के नित्य प्रति बढ़ते आगार में एक महत्वपूर्ण अभिवृद्धि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती एक अनूठी पुस्तक!    

 #डॉ_गोपाल_शर्मा                                                        

 पूर्व प्रोफेसर, अरबामींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया (पूर्व अफ्रीका)●


( Rishabh Bajpai, Abhinav Bajpai)

#रामायण_संदर्शन #ऋषभदेवशर्मा

(साहित्य रत्नाकर @Aman Prakashan, 104-A / 80 C, near Tuti Maszid Chouraha, Ram Bagh, Kanpur, Uttar Pradesh 208012.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...