बुधवार, 7 दिसंबर 2022

दिनेश श्रीवास्तव के गीत-

 गीतिका/सजल


                  *रोक दो!*


संस्कृतियों का क्षरण रोक दो!

अंधकार आवरण रोक दो!!


बिन विवाह सहवास के लिए,

किसी पुरुष का वरण रोक दो!


पश्चिम की सभ्यता विषैली,

संबंधों का मरण रोक दो!


'श्रद्धा-आफताब' से सीखो,

ऐसा हर आचरण रोक दो!


वृत्ति-आसुरी और राक्षसी,

करना सीता-हरण रोक दो!


हरी-भरी हो धरती सारी,

दूषित पर्यावरण रोक दो!


कवियों! ऐसी कलम चलाओ,

मानवता पर ग्रहण रोक दो!


              

               


 *लिव-इन को है मिली मान्यता,फिर क्यों रोना-धोना*


साथ-साथ रहना खाना है, पाणिग्रहण बिन सोना।

संस्कृतियों का क्षरण यही है, संस्कार का खोना।

संबंधों के पैंतिस टुकड़े, कर जंगल में बोना।

लिव-इन को है मिली मान्यता, फिर क्यों रोना-धोना।।


छोड़ दिए तुम मात-पिता को, कथित प्रेम में पड़कर।

अनजानी राहों के राही,बने हुए हो भगकर।

कैसे भूल गए घर सुंदर, अपना सुखद सलोना।

लिव-इन को है मिली मान्यता, फिर क्यों रोना-धोना।।


माना प्रेम सरस होता है, पर जब पावन होता।

गंगा जल- सा प्रेमी जन का, तन-मन सदा भिंगोता।

देह-यष्टि का आकर्षण तो,मात्र मोह का होना।

लिव-इन  को है मिली मान्यता, फिर क्यों रोना-धोना।।


प्रेमपाश में अगर फँसाने, लव-जेहादी आएँ।

सावधान तुम रहो बेटियों!, तुमको लुभा न पाएँ

भौतिकता की आँधी में मत, अपना आपा खोना।

लिव-इन को है मिली मान्यता, फिर क्यों रोना-धोना।।


      *दिनेश श्रीवास्तव*

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