शनिवार, 10 अप्रैल 2021

सब कुछ बदल रहा है / व्हाट्सप्प

 *दादी से पोती तक*


मेरी दादी आई थी अपने ससुराल पालकी में बैठकर,

माँ आई थी बैलगाड़ी में,

मैं कार में आई, 

मेरी बेटी हवाईजहाज से,

मेरी पोती हनीमून की ट्रिप पर उड़गई अंतरीक्ष में।


कच्चे मकान में दादी की जिंदगी गुजर गई

पक्के मकान में रही माँ

मुझे मिला मोजाइक का घर

बेटी के घर में मार्वल

पोती के घर में स्लैब लगे हैं ग्रेनाईट के।


दादी पहनती थी खुरदरे खद्दर की साड़ी

माँ की रेशमी और संबलपुरी

मैंने पहनी हर तरह की फैशनेबुल साड़ियाँ

बेटी की हैं सलवार-कमीज, जीन्स और टॉप्स

मेरी पोती पहन रही स्किन फिटिंग टी-शर्ट और शर्ट्स।


लकड़ी के चूल्हे में खाना पकाती थी दादी

माँ की थी कोयले की सिगड़ी और हीटर 

मेरे हिस्से में आया गैस का चूल्हा,

जहाँ बेटी की रसोई होती माइक्रोवेव ओवन से पोती आधे दिन घर चलाती 

डिब्बे के खाने से।


दादा जी से कुछ कहने को दादी इंतजार करती थी

सबेरे लालटेन के बुझने तक,

माँ बात करती पिता जी से ऐसे मानो दीवार से बोल रही,

मैं इनसे बात करती "अजी सुनते हो",

मेरी बेटी दामाद जी को नाम से बुलाती,

पोती आवाज लगाती दामाद को, "हाय हनी"।


दादी बतियाती थी दादा जी से आधी बात सीने में दबाकर

माँ बोलती पिताजी की हाँ में हाँ मिलाकर

मैंने इनकी कई बातों पर सवाल उठाये 

मेरी बेटी तो अपने तर्क से दामाद जी की बोलती बंद कर देती

उधर बातों-बातों में पोती

अपना अधिकार वसूलती दामाद से।


  कई बच्चों की माँ थी दादी

माँ के बच्चे उससे कुछ कम थे

मेरी गोद में बच्चे दो ही अच्छे

बेटी की तो आँख का तारा 

उसका इकलौता

पोती माँ बनने को ढूँढ रही 

किराये की कोख।


दादी मुँह धोती थी मुल्तानी मिट्टी से

माँ सिलबट्टे से पिसी हुई हल्दी से

मैं साबुन से धोती 

मेरी बेटी फेस वाश से

पोती फैस पैक चुपड़ती 

अपने स्टीम किए चेहरे पर।


दादी का था बहुत बड़ा परिवार

माँ भी पिस जाती थी परिवार की भीड़ में,

मैं कभी ससुराल जाती

तो कभी सास-ससुर मेरे पास आकर रहते,

मेरी बेटी सास-ससुर को 

कुछ दिनो के लिए रखती

एक घोंसलानूमा कमरे में

वह भी हिस्से में जब उसकी बारी आती,

पोती अभी से बात कर चुकी वृद्धाश्रम वालों से

अपने सास-ससुर के बुढ़ापे के लिए।


दादी की सोच और उसकी रीत थी 

बाबा आदम के जमाने की,

माँ की रूढ़ीवादी, 

मेरी आधुनिक,

पर बेटी की सोच है अत्याधुनिक,

जब कि मेरी नातिन, आचरण और उच्चारण

दोनो में उत्तर आधुनिक।


इसी तरह पीढ़ी आगे बढ़ रही,

पुरानी को मसलकर,

समय की धारा बदल रही

नयी को सँवार कर,

हमारे देखते बदल गया सबकुछ

दादी से पोती तक।


👣

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...