// बौना शासक // शेफाली चौबे
साभार - वागर्थ
वह बौना दड़ियल शासक, भद्दा सा चेहरा, मोटे मोटे होंठ, पसरी हुई आटे की लोई की तरह नीचे की ओर लटकती नाक, जिसका देश की जनता खूब मखौल उड़ाया करती । इन सबसे बेपरवाह बौना शासक अपने शस्त्रागार में खुद के कद से बड़े शस्त्रों का जखीरा रखा करता। उस पर शस्त्र एकत्र करने का जूनून सवार रहता। जैसे युध्द का बिगुल बजने ही वाला हो ? "जब पूरा शहर नींद की आगोश में डूब जाता, और उसके सेवकगण दिन भर की चाकरी के बाद ऊंघने लगते, तब बौना शासक चोरों की तरह दबे पांव अपने ही शस्त्रागार के मोटे दरवाजे के ताले को, बिना आहट खोल, धीरे से अदंर घुस जाता। शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन जमीन में डाल, पूरे आत्म विश्वास के साथ सोचता, ऐसा करते वक्त उसे कोई देख नहीं सकता। हकीक़त में ऐसा नहीं था। एक आंख ऐसी थी जो अंधेरे को भी उजाले में बदलने का माद्दा रखती थी। उसके इस कारनामें पर नज़र रखे हुए थी। ताला खुलने की आहट से अंदर रखे शस्त्रों में खलबली मचने लगती।भयाक्रांत शस्त्र आंख के साथ फुसफुसाते हुए कहते, आ गया आदमखोर बौना, आ गया। जैसे ही बौना शस्त्रागार में प्रवेश करता, ना चाहते हुए भी खिन्न मन से सारे के सारे शस्त्र एक स्वर में" बौना बौना बौना" कह उसका स्वागत करते।यह सुनकर उसके कानों में "रणभेरी" बज उठती। उस पर युध्दोन्माद के फायदे का भूत सवार हो जाता। उन्मादी बौना आहिस्ता आहिस्ता कदम बढ़ा, एक एक मशाल के करीब पहुंचता, उन्हें जलाता और शस्त्रागार को रोशन देख उसके भीतर पीली, नारंगी ज्वालाएं धहकने लगतीं। बौना शस्त्रों के पास जाकर मुस्कुराता, उन्हें निहारता, शस्त्रों को सहलाता, पुचकारता, फुसफुसाते हुए बातें करता।ठहाके लगाते हुए बाज की तरह, झपट्टा मारने वाले अंदाज में शस्त्र को खींचता। सारे शस्त्र एक साथ चीख उठते नहीं नहीं, हम "युध्द" नहीं चाहते। हम देश की ताकत और अमन दोनों चाहते हैं, गैरज़रूरी जंग नहीं। यह सुनकर बौना विचलित और क्रूध्द हो उठता। अचानक बौना चौंक जाता है। उसे ऐसा लगता है जैसे उसके अतिरिक्त अंधेरे कोने में और भी कोई है। उसने शस्त्रों से पूछा क्या कोई यहां है? हमें नहीं मालूम। फिर वो चमक कैसी, कौन है वहां जो हमारी सारी बातें सुन रहा है। चीख उठा कौन है? कौन है ? सामने आओ, जवाब दो अन्यथा मार दिये जाओगे। अंधेरे में छुपी आंख ने कहा अपनी आंख को नहीं पहचानते। मेरी आखं ! दोनों हाथों से अपनी आंखो को टटोलता हुआ मेरी तो दोनों आंखें अपनी जगह स्थित हैं। आंख ने कहा इतनी आसानी से भुला दिया उन आंखों को जिन्होंने दूर देश - दुनिया तक पहुंचाने में अपनी ऊंगली में स्याही का निशान लगवाया। बौना ठठ्ठाकर हंसते हुए बोला मेरी जमीं मैंने खुद तैयार की है। आंख ने कहा हां, भरमाए रखकर, धोखा देकर। बौने ने झल्लाते हुए कहा- चुप, यह मेरा शस्त्रागार है यहां मेरे अतिरिक्त तीसरे को अनुमति नहीं है। अचानक बौने ने एक हथियार उठाया और आंख की ओर तानते हुए झपटा - चली जाओ, वरना गोली मार दूंगा। बेखौफ, हसंते हुए आंख बोली मुझे मारोगे ? दूसरी आ जाएगी, तीसरी आ जाएगी, लाखों लाख आंखों से कैसे निपटोगे ? किस किस पर गोली चलाओगे ? अचानक आंख अंधेरे से निकल कर बाहर आती है । बौना भौंंचक सा देखते रह जाता है । आंख बोली येे देश तुम्हारी बपौती नहीं है। फौरन शस्त्र से निशाना साधते हुए, बौना ने कहा मैं यहां का शासक हूं। आंख मुस्ककुराते हुए कहती है यार बौना तुम बड़े मूर्ख हो। शस्त्रों को, किसी बागीचे की क्यारी में खिलने वाला, खुश्बू बिखेरने वाला, खूबसूरत फूल समझ लिया, कि कोई आए और उन्हें तोड़ कर अपनी प्रेमिका के बालों में टांक दे।ये शस्त्र हैं शस्त्र। इनका उपयोग देश की सुरक्षा के लिए होता है। क्रूरता के साथ बौना ने आंख से कहा तुम्हें मालूम नहीं मैंने अपनी प्रेमिका के बालों में फूल नहीं शस्त्र टांका था। जोर जोर से हंसता हुआ जैसे पागल हो गया हो। चीखने चिल्लाने लगता है। शस्त्र टांका था, शस्त्र टांका था। अपनी प्रेमिका के बांलों में शस्त्र टांका था। दफा हो जाओ यहां से। बल्कि इस जहां से - ऐसा कहते हुए बौने ने आंख पर गोली दाग दी। गोली दागते ही अचानक उसने देखा कि लाखों - लाख आंखों के समुद्री तूफान ने उसे चारों ओर से घेर लिया। आंखों के इस विस्मयकारी तूफान के भंवर जाल से निकल पाने की जुगत बिठाने में लगा है बौना। देखें…..........
Shefali Choubey
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