स्मृति शेष /
डॉ० गिरिधारी जी की रचनाएं नई पीढ़ी को जागरूक करती रहेगी /
विजय केसरी
डॉ० गिरिधारी राम गौंझू का जाना एक अपूरणीय क्षति है। झारखंड की लोक कला, संस्कृति, रीति - रिवाज, रहन-सहन, भाषा आदि पर उनकी गहरी पकड़ थी। झारखंड की लोक भाषा , कला - संस्कृति , नृत्य - संगीत विकास आदि के प्रति उनकी निष्ठा देखते बनती थी । उन्होंने बाल काल से ही हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए लेखन से नाता जोड़ा लिया था । उनका हिंदी से यह नाता आजीवन बना रहा था।
वे नियमित रूप से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में झारखंड से संबंधित लेख लिखा करते थे । उनकी सामग्रियां रांची सहित देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में स सम्मान प्रकाशित होती रही थी । रांची से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'रांची एक्सप्रेस' में उनके लेखन के प्रारंभिक दिनों में कई लेख प्रकाशित हुए । सभी लेख बहुत ही महत्वपूर्ण व शोध परक हैं । उनके लेखों का संकलन पुस्तक रूप में आ जाए तो यहां के सुधी पाठकों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक बन जाएगी । जहां तक मेरी स्मृति में है कि गिरिधारी राम गौंझू का पहला लेख 'रांची एक्सप्रेस' में प्रकाशित हुआ था ।
जब मैं 'कब बदलेगी झारखंड की तस्वीर ?' सिरीज़ लिख रहा था , इस श्री निमित्त मैंने उनसे कुछ लिखने के लिए आग्रह किया था । सबसे पहले उन्होंने मुझे इस सीरीज के लिए बधाई दिया था । साथ ही सुझाव भी दिया था कि आप झारखंड के बी.पी .केसरी, विद्याभूषण, डॉ० अशोक प्रियदर्शी, महुआ मांझी, प्रोफेसर शिव कुमार मिश्रा, आदि से मिलकर उनकी बातें भी प्रकाशित करें । इसके साथ ही उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की थी कि झारखंड अलग प्रांत का निर्माण जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था, सत्ता की दिशा उस ओर नहीं जा रही है। फलस्वरुप यहां की भाषा , संस्कृति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है । इस दिशा में भी झारखंड के लेखकों को अपनी कलम चलानी चाहिए । गिरिधारी राम गौंझू जी अपनी उक्त टिप्पणी को आधार सूत्र मानकर लिखते रहे थे।
उन्होंने समय पर मुझे लेख भेज दिया था मैंने उनके लेख को सचित्र प्रकाशित किया था । लेख प्रकाशन के बाद उन्होंने मुझे बधाई दी थी । उनसे मेरी जब भी बातचीत हुई , उन्हें झारखंड की नहीं बेहद चिंता थी । झारखंड अलग प्रांत के संघर्ष में उन्होंने सौ से अधिक लेख इस आंदोलन को समर्पित किया था । यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। वरिष्ठ पत्रकार संजय कृष्ण जी ने गिरिधारी राम गोंझू के संबंध में ठीक ही लिखा है कि 'वे एक सहज सरल, मृदुभाषी व्यक्ति थे । उनका अंदर और बाहर एक समान था । वे जब भी किसी से मिलते थे, उनके चेहरे की खुशी देखते बनती थी'।
मेरी कई रचनाएं उनकी रचनाओं के साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एक साथ छपी थी । मिलने पर वे रचनाओं के मुत्तलिक जरूर कुछ कहते थे । उनके सुझाव बहुत ही बहुमूल्य हुआ करते थे । वे रामदयाल मुंडा, बी .पी. केसरी ,अशोक प्रियदर्शी , बलबीर दत्त, हरिवंश जैसे शिक्षाविदों के एक प्रिय लेखक रहे । झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री बलवीर दत्त उनकी बड़ी तारीफ करते हैं ।
गिरिधारी जी एक मिलनसार व्यक्ति थे । हमेशा दूसरों के सुख - दुख में मदद किया करते थे। उनका यह मिलनसार व्यवहार आजीवन बना रहा । हिंदी साहित्य और नागपुरी भाषण पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी । वे जितना लिखते थे । उससे कहीं ज्यादा पढ़ते थे । उनकी रचनाओं में गहराई होती है । उनकी रचनाएं लोगों में आशा की किरण पैदा करती हैं । जब वे मंच से अपनी बातों को रखते थे । उनकी बातें भी गहरी होती थी। वे जिस विषय पर अपनी बातों को रखते थे । बहुत ही तन्मयता के साथ रखते थे । बिल्कुल विषयातर नहीं जाते थे । वे गहराई के साथ अपनी बातों को रखते थे । लोग उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुनते थे ।
झारखंड की लोक कला विकास, भाषा विकास और नृत्य विकास के प्रति उनकी रचनाएं निरंतर समय से संवाद करती रहेगी । उन्हें गर्व था कि उनका जन्म एक झारखंडी परिवार में हुआ । वे झारखंड की रीति रिवाज को सहेजना चाहते थे । इसे आगे बढ़ाना चाहते थे। इस निमित्त उन्होंने असंख्य लेख लिखा जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है । अब वे उम्र के जिस पड़ाव पर पहुंच चुके थे । उन्होंने लेखों का संकलन और संपादन प्रारंभ कर दिया था । लेकिन उनका यह कार्य अधूरा रह गया । उनकी छोटी - बड़ी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । उन्होंने जितना लिखा है ,मेरी दृष्टि में पच्चास से अधिक पुस्तकें तैयार हो सकती हैं । लेकिन उनका यह कार्य अधूरा रह गया ।
मैं झारखंड के मुख्यमंत्री से आग्रह करना चाहता हूं कि सरकारी स्तर पर गिरिधारी राम गौंझू जी के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे पड़े लेखों को संग्रहित कर पुस्तक का रूप प्रदान किया जाए । यह उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
झारखंड अलग प्रांत की लड़ाई में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। गिरिधारी राम गौंझू झारखंड के जाने-माने चिर परिचित लेखक थे । उनकी रचनाएं हिंदुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, खबर मंत्र, देशप्राण सहित देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती थी। झारखंड के पर्व - त्योहारों पर उनकी रचनाएं काफी जानकारियों से युक्त होती थी । अब वे हमारे बीच नहीं है। उनकी रचनाएं नई पीढ़ी को सदा जागरूक करती रहेगी। उनका इस धरा पर जाना अपूरणीय क्षति है ।
विजय केसरी,
(कथाकार स्तंभकार) ,
पंच मंदिर चौक , हजारीबाग - 825 301,
मोबाइल नंबर 92347 99550.
Aapne bilkul sahi kaha. Lekin aap iske liye agar unko ek patra likhen to behtar rahega. vitalik buterin net worth
जवाब देंहटाएंGreat information you are sharing with them. Hindipradesh
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