बुधवार, 7 अप्रैल 2021

एक टोकरी भर मिट्टी - माधव राव सप्रे

 हिंदी की पहली कहानी-एक टोकरी भर मिट्टी-2 ?

पुष्पपाल सिंह

बीते जमाने की कथा पत्रिका सारिका ने प्रत्येक भारतीय  भाषा की आदि कहानी, पहली कहानी तलाश करने का बडा सार्थक प्रयत्न किया था। इसी क्रम में हिंदी की पहली कहानी के रूप में पं. माधपराव सप्रे की एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की पहली कहानी के रूप में प्रस्थापित किया गया था। इससे पूर्व हिंदी की पहली कहानी के रूप में दुलाई वाली (बंग महिला राजेंद्र बाला घोष) से लेकर ग्यारह वर्ष का समय (आचार्य रामचंद्र शुक्ल) और 1915 ई. में प्रकाशित उसने कहा था तक भी इस चर्चा को खींचा गया था किंतु हिंदी की पहली मौलिक कहानी के रूप में अब पं. माधवराव सप्रे की कहानी एक टोकरी भर मिट्टी जो अप्रैल 1901 के छत्तीसगढ मित्र नामक पत्र में प्रकाशित हुई थी, को प्राय: सर्वसम्मत मान्यता प्राप्त हो गई है। हमारी दृष्टि से भी यही हिंदी की पहली मौलिक कहानी कही जा सकती है क्योंकि इसके बाद हिंदी कहानी का प्रवाह बह चला।

मध्यप्रदेश के ही देवीप्रसाद वर्मा ने सपे्र की इस कहानी को हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी के रूप में पेश किया। यद्यपि देवी प्रसाद वर्मा ने पहले एक टोकरी भर मिट्टी को ही सप्रेजी की प्रथम मौलिक कहानी के रूप में प्रस्तावित किया, पर फिर समय को थोडा और पीछे खींचने के दुराग्रह में वे सप्रेजी की ही फरवरी 1900 ई. में प्रकाशित सुभाषित रत्‍‌न को उनकी पहली मौलिक कहानी बताते रहे। सप्रेजी की कहानियों की सूची इस प्रकार पेश की गई: सुभाषित रत्‍‌न जनवरी 1990 ई., एक टोकरी भर मिट्टी- अप्रैल, 1901 ई. और एक व्यंग्य जून 1990 ई. पर वास्तविकता यह है कि इनमें से एक टोकरी भर मिट्टी ही पं. माधव राव सप्रे की एकमात्र मौलिक कहानी है। जिस सुभाषित रत्‍‌न को देवी प्रसाद वर्मा ने प्रथम मौलिक कहानी के रूप में प्रस्थापित करना चाहा, वह अपने रूपबंध (फार्म) में कहानी में न होकर संस्कृत के सुभाषितों का महत्व प्रस्थापन है। वस्तुत: देवीप्रसाद वर्मा को यह स्वयं स्पष्ट नहीं हो पाया कि वे किसे सप्रेजी की मौलिक कहानी मानते हैं, इसलिए वे अपने आप में विरोधपूर्ण तर्क देते हैं। यदि एक ओर वे सुभाषित रत्‍‌न को उनकी प्रथम मौलिक कहानी मानते है तो दूसरी और यह भी कहते हैं, सवा साल की कथा यात्रा में उनके विभिन्न प्रयोग उनकी सही कहानी की तलाश को प्रमाणित करते हैं। यह बात भी अलग महत्व रखती है कि एक टोकरी भर मिट्टी लिखने के बाद सप्रेजी ने कोई भी कहानी नहीं लिखी। इससे हमारे कथन की ही पुष्टि मिलती है कि, एक टोकरी भर मिट्टी हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी है।

जब हम किसी कृति, रचना या रचनाकार की प्रशंसा करने लगते हैं, तब रुकते कहां हैं! उसे सातवें आसमान से नीचे लाकर छोडते ही नहीं हैं। हिंदी आलोचना का यह फतवेबाजी का खास अंदाज रहा है। देवीप्रसाद वर्मा ऐसा ही एक टोकरी भर मिट्टी के विषय में कहते हैं सातवें दशक में कहानी का जो स्वरूप आज हमारे सम्मुख है, उसके सभी बीज इस कहानी में स्पष्ट हैं-नई कहानी के प्रबल पक्षधर कमलेश्वर की वाणी किसी सीमा तक प्रस्तुत कहानी में मिलती है। ऐसा कहकर पता नहीं देवी प्रसाद वर्मा कमलेश्वर को पीछे क्यों खींचना चाहते हैं? सातवें दशक की हिंदी की जिस कहानी को उसकी गुणवत्ता के आधार पर विश्व स्तर की कहानी के सम्मुख सगर्व रखा गया, उसे वे हिंदी की पहली कहानी में ही बीज रूप में पा रहे हैं। किसी कहानीकार को हिंदी का पहला कहानीकार सिद्घ करने के लिए ऐसे गैरजिम्मेदाराना कथनों की आवश्यकता नहीं हैं।

एक टोकरी भर मिट्टी एक प्रभावी कहानी हैं, जिसमें वृद्घा की मार्मिक उक्ति जमींदार की वृत्ति ही परिवर्तित कर देती है। एक गरीब विधवा अपनी पौत्री के साथ अपनी झोपडी में रहती थी। यह उसकी बहुत पुश्तैनी झोपडी थी उसका बेटा इस झोपडी में ही मर गया था। उसके बेटे की बहू भी पांच वर्ष की कन्या को छोडकर मर गई थी और अब यही एक बालिका उसका एकमात्र आधार थी। जमींदार का महल उस झोपडी के पास ही था। उसे अपने महल के अहाते को झोपडी के स्थान तक बढाने की इच्छा हुई। बुढिया से बहुत कहा गया पर उसने अपनी झोपडी नहीं छोडी। किन्तु जमींदार ने अपने बल के धन पर अदालत द्वारा झोपडी पर अपना कब्जा कर लिया। विधवा को वहां से निकाल दिया गया। वह कहीं पडोस में जा कर रहने लगी।

एक दिन जब जमींदार उस झोपडी की भूमि पर मजदूरों से काम करा रहा था तो वह बुढिया हाथ में एक टोकरी लेकर वहां पहुंची। उसने अपनी पोती का बहाना बना कर बहुत अधिक मिन्नतें करके एक टोकरी भर मिट्टी वहां से लेनी चाही, जिससे चूल्हा बनाकर उस पर रोटी बना कर अपनी पोती को खिला सके। जमींदार ने झोपडी में से एक टोकरी मिट्टी ले जाने की आज्ञा दे दी। झोपडी के भीतर पहुंचते ही वृद्धा स्मृतियों में खो गई, उसकी अश्रुधारा बह चली। किसी प्रकार अपने पर नियंत्रण रख कर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली। फिर उसने जमींदार से प्रार्थना की कि उसकी टोकरी उठवा दे। जमींदार पहले तो नाराज होता है, पर वृद्धा के अनुनय विनय को मानकर उठवाने के लिए चल पडता है। पर टोकरी उससे टस से मस नहीं होती है। हार कर उसे कहना पडता है, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी। यह सुन कर उस विधवा ने कहा, महाराज आप नाराज न हों, पर जब आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती तो इस झोपडी में तो हजारों टोकरियां मिट्टी है, उसका भार आप जन्मभर नहीं उठा पाएंगे। बुढिया के ये मर्म वचन सुन कर जमींदार की आंखें खुल जाती हैं। उन्हें अपने किए हुए पर पछतावा होता है, वह क्षमा मांगते हुए उसे उसकी झोपडी लौटा देते हैं।

इस प्रकार यह संक्षिप्त-सी कथा बडे प्रभावी रूप से अपनी बात कहती है। एक छोटे-से-मर्म-कथन से असद् पात्र का हृदय-परिवर्तन करा कर उसे सद्कोटि में आदर्शात्मक समाधान के रूप में ला दिया जाता है। किंतु यह इतने कुशल रूप में दिया गया आदर्श है कि कहानी की संवेदना पर भारी नहीं पडता और न ही संस्कृत की नीति-कथाओं जैसा है। सब कुछ पूर्ण स्वाभाविक, सहज, रूप में घटित होता है।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी की पहली ही कहानी में तीव्र सामाजिक संवेदना है। जमींदार के अत्याचार को कहानी समस्या के रूप में उठाती ही नहीं अपितु उसका प्रतिकार भी वृद्धा के माध्यम से कराती है। पहली ही कहानी सामाजिक अन्याय के विरोध में इस प्रकार खडी हो सकी, हिंदी कहानी की यह बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है। बहुत चुन कर आवश्यक प्रसंगों का ही कहानी में नियोजन किया गया है, यह कहानीकार के कौशल का परिचायक है, कहानी की संक्षिप्ति में एक गहन और व्यापक संवेदना है।

कहानी की भाषा-शैली भी तत्कालीन कथा-लेखकों से कुछ अलग हटकर कहानी विधा की प्रवृत्ति के अनुरूप है। बोलचाल की सामान्य भाषा और ऋजु प्रवाहमयी यथा एक दिन श्रीमान उस झोपडी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि इतने में वह विधवा हाथ में टोकरी लेकर वहां पहुंची। कहीं-कहीं अत्यन्त छोटे-छोटे बडे प्रभावी वाक्य हैं, विधवा झोपडी के भीतर गई या बेचारी अनाथ तो थी ही। पास-पडोस में जाकर कहीं रहने लगी। कहना न होगा कि मिजाज में यह भाषा कहानी के कितनी अनुकूल है, एक जीवनधर्मी गंध लिए हुए। कहानी के संवाद भी अत्यन्त चुस्त-दुरुस्त और स्वाभाविक बन पडे हैं।

कहानी शिल्प की दृष्टि से भी पुष्ट है। इस कहानी ने हिंदी कहानी को बहुत दूर तक प्रभावित किया। सुदर्शन की हार की जीत कहानी में भी बाबा भारती के ऐसे ही छोटे से मर्म कथन से डाकू का हृदय-परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार यह कहनी-कहानी-कला की दृष्टि से पर्याप्त निखरी हुई और प्रभावी है। (जागरण से)

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