हिंदी कविता का नया जनतंत्र / संजय कुंदन
आज के मुक्तिबोधो, नागार्जुनो
त्रिलोचनो, गोरख पांडेयो!
तुम सबकी खैर नहीं
कविता की दुनिया इतनी बदल दी जाएगी
कि तुम संदिग्ध हो जाओगे
घुसपैठिये नज़र आओगे
वे, जो हर सत्ता पर काबिज़ हैं
अब कविता पर भी राज चाहते हैं
वे तुम्हारी कविताओं के सामने
अपनी कविताओं का पहाड़ खड़ा कर देंगे
और ओझल हो जाएंगी तुम्हारी पंक्तियाँ
उनकी कविताओं के सैलाब में बह जाएंगे तुम्हारे शब्द
वे शीतल पेय, टूथपेस्ट और थर्मोकोल के
गिलासों की तरह कविताओं का उत्पादन करेंगे
वे अश्रु गैस की जगह कविता छोड़ सकते हैं
वे फॉगिंग मशीन से कविताएं उड़ेल सकते हैं
2.
चाबी के छल्ले की तरह
देश को अपनी उंगली में नचाता हुआ
एक तानाशाह रोज लिख रहा कविता
उसके तमाम दरबारी खूब रच रहे कविताएं
एक हत्यारा हत्या करके
सीधा कवि सम्मेलन पहुंचता है
जहां शेयर बाजार के दलाल, ठेकेदार,कालाबाजारी
अपनी कविताएं सुनाते हैं
और सम्मेलन के बाद लूट की अगली योजना बनाते हैं
कविता पंक्तियों के साथ
संसद में पेश होता है
जनता की कुछ और इच्छाओं को बंधक
बनाने का कानून
तुम जब तक किसानों की आत्महत्या
पर एक कविता लिखते हो
कृषि मंत्री का काव्य संग्रह तैयार हो जाता है
जिस दिन जंगल बचाने पर तुम्हारी कविता आती है
उसी दिन निहत्थे आदिवासियों पर गोली चलाने वाले
एक क्रूर पुलिस अफसर की कविता-पुस्तक
का लोकार्पण होता है
जिसमें शामिल होते हैं नामी-गिरामी साहित्यकार।
3.
नेरूदा, ब्रेख्त, पाश, नाज़िम हिक़मत, सुकांत
और वरवर राव की चरण-धूलि सिर पर लगाने वालो!
तुम्हारी कविताएं कोई नहीं पढ़ेगा
कविताएं अब पढ़ने के लिए नहीं लिखी जाएंगी
वे दिखने के लिए लिखी जाएंगी
वे गाड़ियों में लाल और नीली बत्तियों की तरह
चमकने के लिए लिखी जाएंगी
कविताओं से अब बात नहीं बोलेगी
कवि बोलेगा, कवि का कद बोलेगा
जिसकी जितनी बड़ी पदवी
वह उतना बड़ा कवि
जो दिलाए पुरस्कार, जो बिकवाए किताब
वह सुकवि
जो दिलवाए नौकरी, वह महाकवि
बदल जाएगी आलोचना की भाषा
अब काव्य-तत्व नहीं कवि के प्रबंधन पर बात होगी
कहा जाएगा कि वे इतने महत्वपूर्ण कवि हैं
कि हर शहर में उनकी पांच प्रेमिकाएं हैं
वे इतने प्रासंगिक हैं कि मुख्यमंत्री उनको फोन करते हैं
कर्मचारी कवि केवल अपने बॉस के काव्य संग्रह पर लिखेगा
पत्रकार कवि संपादक के काव्य संग्रह पर
और छात्र कवि अपने पीएचडी गाइड के संग्रह पर
4.
कविता लिखने की इच्छा
उसी तरह भड़कती जाएगी
जैसे एक आदमी ज्यादा से ज्यादा कमीज खरीदना चाहेगा
जूते खरीदना चाहेगा
मोबाइल खरीदना चाहेगा
किटी पार्टियों में सेठों, अफसरों की बीवियां
पहले कविताएं सुनाएंगी
फिर जिम या बुटीक खोलने की
संभावनाओं पर मंथन करेंगी
कॉफी हाउस, बार और क्लबों में
एक माइक हमेशा प्रतीक्षा में रहेगी
कि कोई आए और कविताएं सुनाए
एक लड़की जब अपने अकेलेपन पर
कविताएं सुना रही होगी
कई श्रोता सोचेंगे
-यह आसानी से पटेगी
5.
कविता में विचार की क्या जरूरत
कविता तो अपने-आप में एक विचार है
-कहता है एक कवि संत की मुद्रा में
एक एनजीओ के मंच पर
वह सिर्फ आत्मा पर बात करता है
और कहता है आत्मा तो उत्तरीय है
वह गीला तौलिया है
कुछ कवि सिर्फ शरीर की बात करते हैं
एक कवि कविता में
शिश्न के आगे मोमबत्ती जलाता है
एक कवयित्री गुदा की आरती उतारती है
और कहती है
कविता को उदात्त से उदात्त होते जाना है
थ6.
यह कविता का जनतांत्रिकीकरण है
बता रहे जनतंत्र के अपहर्ता
मीडिया हाथोंहाथ ले रहा कविता को
मुसलमानों के नरसंहार को
आस्था का प्रकटीकरण बताने वाला अखबार
धड़ाधड़ साहित्य महोत्सव आयोजित कर रहा है
किसानों को आतंकवादी कहने वाला अखबार
बांट रहा कवियों को पुरस्कार पर पुरस्कार
7.
हे, कबीर के वारिसो !
वे अपना एक अलग कबीर ले आएंगे
और उसे साबित करेंगे असली कबीर
वे कविताओं को इतना पवित्र और सुगंधित
बना देंगे कि
तुम्हारी मटमैली, बास मारती कविताएं
कहीं से भी कविताएं नहीं लगेंगी
हो सकता है
तुम सब पर कविता को खराब करने
का आरोप लगे
और तुम्हें खदेड़ दिया जाए
बिलों, बांबियों और खोहों में।
…………….
-संजय कुंदन
3.4.21
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