नौकरी*
प्रस्तुति - प्रतिमा सिन्हा
*रंजना सिलाई मशीन पर बैठी कपडे काट रही थी . साथ ही बड़बडाये जा रही थी . उफ़ ! ये कैची तो किसी काम की नहीं रही बित्ता भर कपडा काटने में ही उँगलियाँ दुखने लगी हैं .*
*पता नहीं वो सोहन ग्राइंडिंग वाला कहाँ चला गया . हर महीने आया करता था तो कालोनी भर के लोगों के चाकू कैंची पर धार चढ़ा जाता था , वो भी सिर्फ चंद पैसों में !*
*सोहन एक ग्राइंडिंग करने वाला यही कोई 20-25 साल का एक युवक था . बहुत ही मेहनती और मृदुभाषी .*
*चेहरे पे उसके हमेशा पसीने की बूंदें झिलमिलाती रहती लेकिन साथ ही मुस्कुराहट भी खिली रहती .*
*जब कभी वो कालोनी में आता तो किसी पेड़ के नीचे अपनी विशेष प्रकार की साइकिल को स्टैंड पर खड़ा करता , जिसमे एक पत्थर की ग्राइंडिंग व्हील लगी हुई थी . और सीट पे बैठ के पैडल चला के घुमते हुए पत्थर की व्हील पर रगड़ दे के चाक़ू और कैंचियों की धार तेज कर देता .*
*इसी बहाने कालोनी की महिलाएं वहाँ इकठ्ठा हो के आपस में बातें किया करती .*
*जब वो नाचती हुई ग्राइंडिंग व्हील पर कोई चाकू या कैंची रखता तो उससे फुलझड़ी की तरह चिंगारिया निकलती , जिसे बच्चे बड़े कौतूहल से देखा करते और आनन्दित भी होते .*
*फिर वो बड़े ध्यान से उलट पुलट कर चाकू को देखता और संतुष्ट हो के कहता , "लो मेमसाब ! इतनी अच्छी धार रखी है कि बिलकुल नए जैसा हो गया !*
*अगर कोई उसे 10 माँगने पर 5 रूपये ही दे देता तो भी वो बिना कोई प्रतिवाद किये चुपचाप जेब में रख लेता .*
*मैंने अपनी पाँच साल की बेटी मिनी को आवाज लगाई . "मिनी जा के पड़ोस वाली सरला आंटी से कैची तो मांग लाना जरा" ! पता नहीं ये सोहन कितने दिन बाद कॉलोनी में आएगा .*
*थोड़ी देर बाद जब मिनी पड़ोस के घर से कैंची ले के लौटी तो उसने बताया कि उसने सोहन को अभी कॉलोनी में आया हुआ देखा है .*
*मैंने बिना समय गवाँये जल्दी से अपने बेकार पड़े सब्जी काटने वाले चाकुओं और कैंची को इकठ्ठा किया और बाहर निकल पड़ी .*
*बाहर जाके मैंने जो देखा वो मुझे आश्चर्य से भर देने वाला दृश्य था !!*
*क्या देखती हूँ कि सोहन अपनी ग्राइंडिंग वाली साइकिल के बजाय एक अपाहिज भिखारी की छोटी सी लकड़ी की ठेला गाडी को धकेल के ला रहा है , और उस पर बैठा हुआ भिखारी "भगवान के नाम पे कुछ दे दे बाबा !" की आवाज लगाता जा रहा है .*
*उसके आगे पैसों से भरा हुआ कटोरा रखा हुआ है . और लोग उसमे पैसे डाल देते थे .*
*पास आने पर मैंने बड़ी उत्सुकता से सोहन से पूछा , "सोहन ये क्या ?*
*और तुम्हारी वो ग्राइंडिंग वाली साइकिल ??*
*सोहन ने थोड़ा पास आके धीमे से फुसफुसाते हुए स्वर में कहा , "मेमसाब ! सारे दिन चाकू कैंची तेज करके मुझे मुश्किल से सत्तर अस्सी रुपये मिलते थे .*
*जब कि ये भिखारी अपना ठेला खींचने का ही मुझे डेढ़ सौ दे देता है ! इसलिए मैंने अपना पुराना वाला काम बंद कर दिया .*
*मैं हैरत से सोहन को दूर तक भिखारी की ठेला गाडी ले जाते देखती रही ! !!*
*और सोचती रही , एक अच्छा भला इंसान जो कल तक किसी सृजनात्मक कार्य से जुड़ा हुआ समाज को अपना योगदान दे रहा था आज हमारी ही सामाजिक व्यवस्था द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया !*
*हम अनायास एक भिखारी को तो उसकी आवश्यकता से अधिक पैसे दे डालते हैं , लेकिन एक मेहनतकश इन्सान को उसके श्रम का वह यथोचित मूल्य भी देने में संकोच करने लगते हैं !*
*उससे मोल भाव करते हैं . यदि हम हुनरमंद और मेहनतकशों को उनके श्रम का सही मूल्य चुकाएँ तो समाज में उसके श्रम की उपयोगिता बनी रहे . उसकी खुद्दारी और हमारी मानवता दोनों शर्मिंदा होने से बच जाएँ यह हम सबके लिए विचारणीय प्रश्न है ! !!*
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