शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

कविता / कवि अनाम





.               *एक अरदास*


             *जिन्दगी बख्शी है,*

    *तो जीने का सलीका भी बख्श।*
      *ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक,*
      *तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श।*
      *सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे,*
      *ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श।*
     *किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से,*
     *ऐसा अहसास भी तू मुझे बख्श।*
    *आपके चरणकमल में मैं लगा रहूँ,*
      *हे दाता ऐसा ध्यान भी बख्श।*
     *रिश्ते जो बनाये मेरे मालिक,*
         *उनमें अटूट प्यार तू भर।*
    *ज़िम्मेदारियाँ बख्शी हैं मेरे पालनहार,*
  *तो उनको निभाने की समझ भी बख्श।*
       *बुद्धि बख्शी है मेरे मालिक,*
               *तो विवेक बख्श।*
           *एक और अहसान कर दे,*
         *जो कुछ है, वो सब तेरा है,*
     *तो फिर इस मेरी  "मैं"  को भी बख्श।*

 
   
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