लघु कथा लॉकडाउन - 0000021 ममा के सांझ से पहले ही बैंक ड्यूटी से घर आने पर गोलू बेइंतहा खुश था... गोलू की ब्रीड को सब फैमिली लविंग के तौर पर जानते हैं...गोलू की बेपनाह खुशी को या तो उसके बाबा या परिजन या माई ...सहजता से समझ सकते हैं या डॉगी लविंग...बार - बार पूछ हिलाना फ्रेंडशिप या हैप्पीनेस का प्रतीक होता है... ये सभी लेब्रा की बॉडी लैंग्वेज को खूब पहचानते हैं... यूनिवर्सिटी क्यों बंद है...दीदी दिल्ली क्यों नहीं गई... मम ही ऑफिस क्यों जाती हैं...ये सारे सवाल उसके लिए बेमानी थे...कोरोना वायरस... जनता कर्फ्यू... लॉक डाउन... नाकेबंदी ... कर्फ्यू...सरीखे कानूनी शब्द अब तक उसकी डिक्शनरी में नहीं थे...बाबा और दीदी 72 घंटे से घर में हैं...मानो साईं राम ने उसके अकेलेपन के दंश को छूमंतर कर दिया है ....राष्ट्र के नाम संदेश सुनकर सभी ने बिना तर्क - वितर्क के संकल्प ले लिया... मानो इस लोकतांत्रिक देश में फिलहाल रुलिंग और अपोजिशन पार्टियों का एक ही एजेंडा है... विजयी भव... रात के 12 बजे का इंतजार क्यों ...लक्ष्मण रेखा जान गए थे...सो सभी घर के अंदर ही खाना खाने के बाद टहलने लगे... सारे परिजन खामोश थे... लेकिन मम के गोलू...बाबा के कालू...दीदी के गोली की खुशी का ठिकाना न था... ज़ोर... ज़ोर से पूछ हिलाना...कभी किसी के पीछे तो कभी किसी के पीछे चिपकना...तीन साल में उसने पहली बार संग - संग...और लक्ष्मण रेखा लांघते हुए नहीं देखा...
0 श्याम सुंदर भाटिया विभागाध्यक्ष - पत्रकारिता कॉलेज, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद (यूपी) 7500200085
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