गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

कुनैन लीला / रवि अरोड़ा


क़ुनैन तेरी महिमा अपरंपार


बचपन में जब भी बुखार होता था माँ मुझे नवयुग मार्केट में डाक्टर जगदीश के यहाँ ले जातीं और डाक्टर साहब झट क़ुनैन की छः आठ गोलियाँ पकड़ा देते थे । उन दिनो मलेरिया सबको होता था और हर डाक्टर के पास इसका एक ही नुस्ख़ा होता था- क़ुनैन । चूँकि उन दिनो डाक्टर पर्चा लिख कर मेडिकल स्टोर से दवा लेने को नहीं कहते थे तो हमें भी पता रहता था कि फ़लाँ तकलीफ़ में कंपाउंडर उस डिब्बे से इस रंग की दवाई देगा और फ़लाँ शिकायत होने पर फ़लाँ रंग की गोली पुड़िया में बाँध कर देगा । डाक्टर साहब का कंपाउंडर को स्थाई आदेश था कि क़ुनैन की गोली हर बुखार में देनी ही है । चूँकि सरकार भी क़ुनैन की गोलियाँ मुफ़्त बाँटती थी अतः यही एसी दवा थी जिसका नाम अनपढ़ भी जानते थे । चूँकि क़ुनैन की गोली बहुत कड़वी होती थी सो कड़वाहट को लेकर गढ़े गए मुहावरों में भी क़ुनैन शब्द का प्रयोग होने लगा । उसी दौर की साधारण सी हमारी दवा क़ुनैन के सुधरे हुए रूप हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के लिए अब पूरी दुनिया में मची मारामारी देख कर मन बहुत ख़ुश है । सोच कर देखिए जिस गोली के लिए अमेरिका का राष्ट्रपति ट्रम्प मरा जा रहा है , बचपन में उसे हम यूँ ही माँ से आँख बचा कर नाली में फेंक देते थे ।


बताते हैं कि वर्ष 1930 में पहली बार क़ुनैन बनी और फिर उन देशों में छा गई जहाँ मलेरिया बहुत होता था । बाद में जब परजीवियों ने क़ुनैन को लेकर अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली तब उसका नया रूप आया- क्लोरोक्वीन और यह नाम भी लोगों के ज़ुबान पर बहुत चढ़ा । आज जिस हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन को कोरोना के लिए लाभप्रद माना यह भी लगभग वही ही है । बेशक हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के अमेरिका को निर्यात करने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी की आलोचना हो रही है मगर उनका यह फ़ैसला बहुत ही काम का है । वह अमेरिका जो हमारी दवाओं को घटिया बताता था और पिछले छः साल से जिसने उनके आयात पर अपने यहाँ रोक लगा रखी थी , उसके लिए ही वहाँ के राष्ट्रपति का स्वयं फ़ोन आया, क्या यह मामूली बात है ?  बेशक यह दवा हमें पहले ख़ुद के लिए चाहिये और बाद में इसे दुनिया को देना चाहिये मगर हमारे यहाँ इस दवा की कमी भी तो हो ? हम सालाना सौ टन यह दवा बना सकते हैं और हमारे पास फ़िलवक़्त भी इसका अच्छा ख़ासा स्टाक है । इस मौक़े पर यह बेहद ज़रूरी था कि हम दुनिया को बताते कि हम सिर्फ़ ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ कहते ही नहीं हैं अपितु इसमें विश्वास भी करते हैं । आज जब तीस देश हमसे यह दवा माँग रहे हैं तो हमें इस अवसर का अवश्य ही लाभ उठा कर अपनी छवि और बेहतर करनी चाहिये । और यूँ भी अभी यह तय भी कहाँ है कि यह दवा क़ोविड 19 में कारगर है । एक एमपी के बयान के बाद न जाने क्यों ट्रम्प इस दवा को गेम चेंजर मान रहे हैं और इसकी दुनिया भर में मार्केटिंग कर रहे हैं ?

ख़ैर अपनी क़ुनैन के फिर चर्चाओं में आने से मैं बहुत ख़ुश हूँ । पूरी दुनिया में ताश के पत्ते जिस प्रकार फेंटे जा रहे हैं और एसे में हमारे देश के हाथ में एक इक्का आ जाना मुझे बेहद उत्साहित कर रहा है । इससे भी अधिक ख़ुशी इस बात की है कि अमेरिकी जोकर ट्रम्प जो हमें धमका रहा है वह स्वयं अपने हाथ में अभी भी सिर्फ़ जोकर लेकर ही खड़ा है । बेशक कोरोना से भारत में बहुत तबाही मचेगी मगर क़ुनैन जैसी दो चार ख़बरें और सामने आ जायें तो शायद कुछ भरपाई हो सके । अंतत चीन भी तो कोरोना से फ़ायदे में ही रहा , क्या पता हमारा भी नुक़सान कम हो और फ़ायदा ज़्यादा ।

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