प्रस्तुति - शिशिर सोनी
लगता है सोनिया गांधी पर भी अब राहुल गांधी का असर होने लगा है। तभी वो राहुल गांधी जैसी बहकी बहकी बातें कर रही हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि मीडिया को दिया जाने वाला विज्ञापन कोरोना से लड़ने के लिए दो साल के लिए बंद किया जाए।
मीडिया के बुनियाद पर वो चोट करने को क्यों कह रही हैं? जाहिर है कि उनका गुस्सा राहुल गांधी को लेकर मीडिया के ठंडे रवैये से होगा। गोया कि राहुल गांधी में दम नहीं तो उस बेदम में दम मीडिया कैसे फूंक दे? सोनिया गांधी की इस मांग का खूब मान मर्दन हो रहा है। होना भी चाहिए।
आईएएनएस, ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन सहित सभी मीडिया संगठनों ने सोनिया गांधी की इस मांग को अनुचित बताया है। समूची मीडिया को हर साल तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपए का विज्ञापन केंद्र सरकार और विभिन्न पब्लिक सेक्टर यूनिट्स से रीलीज होता है। उसमें भी मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद कई तरह की बंदिशें लगी हैं। भरी बैठीं सोनिया गांधी को ज्ञान आया है कि मीडिया को विज्ञापन बंद कर दिया जाए। यानि मीडिया का गला घोट दिया जाए। ये लोकतंत्र के प्रहरी पर अंतिम प्रहार होगा।
सोनिया गांधी जैसे नेता आखिर इस बात पर सवाल क्यों नहीं उठाते कि सांसदों, विधायकों , विधान पार्षदों को वेतन और फिर फैमिली पेंशन क्यों दिए जाएं? वे जनसेवक या जनप्रतिनिधि हैं कोई सरकारी नौकर नहीं?
सोनिया गांधी ने ये क्यों नहीं प्रधानमंत्री से अपील किया कि
1. सांसदों को मिलने वाले वेतन को बंद कर दिया जाए इसके एवज में सरकार की तिजोरी में 2 हजार करोड़ रुपए हर साल बचत होगी।
2. पेंशन बंद किए जाएं जिससे तकरीबन 800 करोड़ रुपए की बचत होगी !!!
3. हर साल सांसद निधि के नाम पर 8 हजार करोड़ रुपए की लूट को सिरे से बंद किया जाए। इस निधि का सिवाय बंदरबाट के कुछ नहीं होता।
सोनिया गांधी ने इस पर सवाल क्यों नहीं उठाए कि
1. एक ही व्यक्ति जो विधायक रहा हो, विधान परिषद में रहा हो, राज्यसभा और लोकसभा का सदस्य भी रहा हो और अगर सरकारी सेवाओं में भी रहा हो तो उसे 5-5 पेंशन क्यों मिलना चाहिए?
क्या ये देश की गरीब जनता की लूट नहीं। ये एक पेेशेवर गैंग की दिनदहाड़े लूट है। इसे बंद होना चाहिए।
वो सांसद मर जाए तो उसके परिजनों को ताउम्र पचास फीसदी पेंशन हम अपने पॉकेट से क्यों दें? संसद से ये नियम बनाने से पहले ये नेता चुल्लू भर पानी में क्यों नहीं डूब मरे?
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