बुधवार, 8 अप्रैल 2020

कथा का कहानी कविता और संवाद





जापान में पुरानी कथा है।
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक कटवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने राज्य के एक बूढे फकीर के पास गया और सारी बातें बताई।

फकीर ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि युद्ध कौन करेगा।
फकीर ने कहा मैं,
वह फकीर बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह कभी घोड़े पर भी कभी चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा फकीर घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर  था। फकीर सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
बूढ़ा फकीर बोला ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।
फिर फकीर अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
फकीर ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।

सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।

रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस बूढ़े फकीर से बोली कि चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।
सेनापति बोला कोई जरूरत नहीं ।।
सेना बोली बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।
तब
उस बूढ़े फकीर ने कहा , वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दिया पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई दिया।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।
विचार अंततः वस्तुओं में बदल जाती है।
विचार अंततः घटनाओं में बदल जाती है।

मोदी जी दिया जलाने की बात कर रहे हैं वह वस्तुतः उपरोक्त प्रक्रिया का ही प्रयोग है। क्योंकि यह निश्चित है कि बाह्य संसाधनों के बल पर कोरोना से आप नहीं जीत सकते , अमेरिका का उदाहरण आपके सामने है ।
अमेरिका एक ताकतवर परंतु डरा हुआ मुल्क है। इतिहास गवाह है वह युद्ध अपनी धरती पर नहीं लड़ता कि उसके लोग मारे जायेंगे।
आधुनिक काल के इतिहास में यह पहला युद्ध है जिसे उसको अपनी धरती पर लड़ना पड़ रहा है।
यह वह मुल्क है जहां एक बार 6 घंटे बिजली आपूर्ति ठप्प हो गई थी तो सैकड़ों लोग डिप्रेशन से मर गए थे।
अतः हे भारत के अदम्य जिजीविषा से भरे हमारे बहनों एवं भाईयों हम यह युद्ध आधी जीत चुके हैं हमारे यहां कोरोना पीड़ितो की मृत्यु दर कम है वही मृत्यु को प्राप्त हो रहे है जिन्हें कोई अन्य बीमारी हो या जो जीवन से निराश हो चुके हैं।
अतः हे भारत के मानव आप सावधानियां बरतें।
सामाजिक दूरी बनाए रखें।
गाईडलाइन का फाँलो करे।
अपने आत्मविश्वास को मजबूत करें अभी बहुत कुछ करना है।
[08/04, 19:15] +91 85390 46852: डॉ. हरिवंशराय बच्चन की यह कविता - मत निकल, मत निकल, मत निकल* - आज के समय में बहुत उपयुक्त जान पड़ती है।  इस कविता का एक-एक शब्द जैसे आज की परिस्थिति में हमारे लिए उन्होंने लिखा है !

*शत्रु ये अदृश्य है*
*विनाश इसका लक्ष्य है*
*कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल*
*मत निकल, मत निकल, मत निकल*

*हिला रखा है विश्व को*
*रुला रखा है विश्व को*
*फूंक कर बढ़ा कदम, जरा संभल*
*मत निकल, मत निकल, मत निकल*

*उठा जो एक गलत कदम*
*कितनों का घुटेगा दम*
*तेरी जरा सी भूल से*
*देश जाएगा दहल*
*मत निकल, मत निकल, मत निकल*

*संतुलित व्यवहार कर*
*बन्द तू किवाड़ कर*
*घर में बैठ, इतना भी*
*तू ना मचल*
*मत निकल, मत निकल, मत निकल*
🙏


😀😃😄😂😄😃😀
*एक बार एक बंदर को उदासी के कारण मरने की इच्छा हुई, तो उसने एक सोते हुए शेर के कान खींच लिये।*

*शेर उठा और*
*गुस्से से दहाड़ा-*
*“किसने किया ये..? किसने अपनी मौत बुलायी है..?”*

*बंदर: "मैं हूँ महाराज। दोस्तो के अभाव में अत्याधिक उदास हूँ,*
*मरना चाहता हूँ,*
*आप मुझे खा लीजिये।"*

*शेर ने हँसते हुए पूछा-*
 *“ मेरे कान खीँचते हुए तुम्हें किसी ने देखा क्या..?”*
🤔

*बंदर: "नहीं महाराज..."*

*शेर: "ठीक है, एक दो बार और खीँचो, बहुत ही अच्छा लगता है.... !!"*

*इस कहानी का सार :*

*अकेले रह-रह कर जंगल का राजा भी बोर हो जाता है।*

*इसलिए अपने दोस्तों के संपर्क में रहें, कान खीँचते- खिचाते रहे, पंगा लेते रहे...।*

*सुस्त न रहे,*
*मस्ती 👇👆🤪करते रहें..!*

*आप सभी भी अपने मित्रों से संपर्क बनाकर रखिए*
*विश्वास कीजिए आपका मन सदा ही प्रफुल्लित और आप सदैव स्वस्थ रहेंगे*
😊😊😊😊😊
*ये वो चिकित्सक हैं*
*जो शब्दों से ही आपका उपचार कर दिया करते हैं।*
🥰🥰🥰😍🥰🥰🥰




ओऔ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...