गुरुवार, 11 जून 2020

जय हो गुरु घंटाल की / प्रवीण परिमल





▪मित्रों की अदालत में मेरा यह जनगीत , एक बार फिर से ----

#जय_हो_गुरुघंटाल_की
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सुनो , सुनाऊँ एक कहानी
मैं अगिया - बैताल की ।
जय हो गुरु घंटाल की !
जय हो गुरु घंटाल की !!

सत्ता उनकी, कुर्सी उनकी,
फागुन उनका, उनके फाग।
शासन उनका, आसन उनका,
डफली उनकी, उनके राग।

हाथी उनके,घोड़े उनके,
उनकी ही है पालकी ।

गुंडे उनके, लाठी उनकी,
अफसर उनके, उनके वोट।
थाने उनके, चमचे उनके,
ताकत उनकी, उनके नोट।

खुल्लम-खुल्ला लेकर घूमें
बंदूकें   दोनाल  की ।

थैले उनके, गोले उनके,
बक्से उनके, उनके बूथ।
जिह्वा उनकी, वाणी उनकी,
वादे उनके, उनके झूठ।

आँसू पर मत जाना उनके,
नौटंकी   घड़ियाल  की !

कोठी उनकी, बंगला उनका,
गाड़ी उनकी, उनका नाम।
चर्चा उनकी, खर्चा उनका,
पूजा उनकी, उनके राम।

अपनी तो औकात वही जो
दो - टकिये रूमाल की ।

सोफा उनका,गद्दे उनके,
सपने उनके,उनकी रात।
बिस्तर उनका,मसनद उनके,
किस्से उनके, उनकी बात।

हमको नींद कहाँ से आए,
चिंता  रोटी  - दाल  की !

चित भी उनका, पट भी उनका,
बाजी उनकी, उनका खेल।
कोर्ट  - कचहरी  -थाना उनका,
जेलर उनका , उनकी  जेल ।

जेलों में भी हासिल उनको
सुविधाएँ   ससुराल   की ।

बाजू अपने, मिहनत अपनी,
खेती अपनी, अपने बीज ।
गाड़ी अपनी, भैंसे अपने,
होगी कब अपनी हर चीज!

फसल हमारी ले जाते हैं
आखिर वे हर साल की ।

अपने भाले, अपनी बरछी
हँसिया अपनी अब लो तान।
हाथों में अब थाम हथौड़े,
दुश्मन   पेशेवर   शैतान ।

धार, किसानो ! चमका लो तुम
अपने हल की फाल की ।
जय धरती के लाल की !
जय धरती के लाल की !!

जय हो,जय हो,जय हो,जय हो
इस धरती के लाल की!!!!!!!!!

***** प्रवीण परिमल *****

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