▪मित्रों की अदालत में मेरा यह जनगीत , एक बार फिर से ----
#जय_हो_गुरुघंटाल_की
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सुनो , सुनाऊँ एक कहानी
मैं अगिया - बैताल की ।
जय हो गुरु घंटाल की !
जय हो गुरु घंटाल की !!
सत्ता उनकी, कुर्सी उनकी,
फागुन उनका, उनके फाग।
शासन उनका, आसन उनका,
डफली उनकी, उनके राग।
हाथी उनके,घोड़े उनके,
उनकी ही है पालकी ।
गुंडे उनके, लाठी उनकी,
अफसर उनके, उनके वोट।
थाने उनके, चमचे उनके,
ताकत उनकी, उनके नोट।
खुल्लम-खुल्ला लेकर घूमें
बंदूकें दोनाल की ।
थैले उनके, गोले उनके,
बक्से उनके, उनके बूथ।
जिह्वा उनकी, वाणी उनकी,
वादे उनके, उनके झूठ।
आँसू पर मत जाना उनके,
नौटंकी घड़ियाल की !
कोठी उनकी, बंगला उनका,
गाड़ी उनकी, उनका नाम।
चर्चा उनकी, खर्चा उनका,
पूजा उनकी, उनके राम।
अपनी तो औकात वही जो
दो - टकिये रूमाल की ।
सोफा उनका,गद्दे उनके,
सपने उनके,उनकी रात।
बिस्तर उनका,मसनद उनके,
किस्से उनके, उनकी बात।
हमको नींद कहाँ से आए,
चिंता रोटी - दाल की !
चित भी उनका, पट भी उनका,
बाजी उनकी, उनका खेल।
कोर्ट - कचहरी -थाना उनका,
जेलर उनका , उनकी जेल ।
जेलों में भी हासिल उनको
सुविधाएँ ससुराल की ।
बाजू अपने, मिहनत अपनी,
खेती अपनी, अपने बीज ।
गाड़ी अपनी, भैंसे अपने,
होगी कब अपनी हर चीज!
फसल हमारी ले जाते हैं
आखिर वे हर साल की ।
अपने भाले, अपनी बरछी
हँसिया अपनी अब लो तान।
हाथों में अब थाम हथौड़े,
दुश्मन पेशेवर शैतान ।
धार, किसानो ! चमका लो तुम
अपने हल की फाल की ।
जय धरती के लाल की !
जय धरती के लाल की !!
जय हो,जय हो,जय हो,जय हो
इस धरती के लाल की!!!!!!!!!
***** प्रवीण परिमल *****
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