मंगलवार, 9 जून 2020

नाक की पगड़ी / महाकवि वाट्सअप जी महाराज





*नाक की पगड़ी*

कई सदियों से नाक और सिर में यह तकरार थी तगड़ी,
कहती थी नाक, जब मुझ से है इज़्ज़त,
तो फिर सिर के पास ही क्यों पगड़ी !!

नाक का कहना था,
कि सभी मुहावरों में है मेरा फसाना,
चाहे वो नाक कटना हो,
नाक नीची होना,
या हो फिर, नाकों चने चबाना !

क्यों फिर सर को ही है केवल,
पगड़ी और टोपी का अधिकार,
जबकि इंसा की इज़्ज़त का,
मुझ से सीधा सरोकार!

कहा विधाता ने नक्कू जी,
दिन तेरा भी एक दिन आएगा,
सिर की पगड़ी भूलके इंसा,
बस तुझको ही ढकता जाएगा

फला विधाता का वरदान,
देखो नाक की बदली शान,
अब नाक की टोपी सर्वोपरि है,
बिन इसके खतरे में जान !
इस युग में नाक तू सबसे ऊपर,
तुझ से जीवन के आयाम,

भांति भांति के आवरण (मास्क) तेरे,
सुबह शाम के प्राणायाम !
इस पगड़ी-टोपी के झंझट में,
हुआ हम सब का काम तमाम,
अब नाक बचाने को केवल,
नाक ढके घूम रहा इंसान !!
🤔😀

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