आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का जन्मदिन है। दिनकर जी का जन्म २३ सितंबर १९०८ में बिहार के सिमरिया ग्राम में हुआ था।
बचपन से वो मेरे सबसे प्रिय कवि रहे हैं। मुझे याद है कि छठी से दसवीं तक जब भी हिंदी की नई पाठ्य पुस्तक मिलती थी, तो सबसे पहले मैं ये देखता था कि कविता वाले भाग में दिनकर की कोई कविता है या नहीं। उनकी कविता को कभी मन ही मन नहीं पढ़ा जाता था। बार बार पढ़ते और वो भी जोर जोर से बोल के जैसे खुद की ही कविता हो। जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के छायावादी रहस्यों को समझने की उम्र नहीं थी पर दिनकर की पंक्तियाँ ना केवल बड़ी आसानी से कंठस्थ हो जाती थीं बल्कि वे मन में एक ऐसा ओज भर देती थीं जिसका प्रभाव कविता की आवृति के साथ बढ़ता चला जाता था।
पहली बार छठी कक्षा में उनका किया इस प्रश्न ने मन में हलचल मचा दी थी
दो में से तुम्हें क्या चाहिए ?
कलम या कि तलवार
मन में ऊँचे भाव
या तन में शक्ति अजय आपार !
तो वहीं सातवीं या आठवीं में शक्ति और क्षमा पढ़ने के बाद उनकी काव्य शैली ने मुझे पूरी तरह मोहित कर दिया था
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
दसवीं की परीक्षा में इन पंक्तियों का भावार्थ लिखते वक़्त लगा ही नहीं था कि इसके लिए कुछ अलग से याद करना पड़ा हो..
रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ
जाने दे उनको स्वर्ग धीर,
पर लौटा हमें गांडीव गदा
लौटा दे अर्जुन भीम वीर
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