मंगलवार, 23 जून 2020

भूख कचोटे पेट को / रा. हि. ब......





रा हि ब - - -

दुनिया में सबसे अधिक , भ्रष्ट हिंद की प्रेस ।
कहां वसूली हो सके ,  दिन भर ढूँढ़े केस ॥

भूख कचोटे पेट को , धूप ओढ़ रह जायं ।
दुखिया को इस  हाल में , कैसे बुद्ध सुहांय॥

क्या पाए की शायरी , क्या  लहज़ा अंदाज़ ।
ग़ालिब मोमिन जौक ने , रखा मीर सर ताज॥

फंसा पंच स्कन्ध में , सुख से वंचित होय  ।
नाम रूप रस राग में , जीवन  मकसद खोय  ॥

ख़बर सितारों की धरो , लेकिन  पांव ज़मीन ।
ये खिसकी तो सब गया ,व्यर्थ पड़ी  दुरबीन ॥

  सारी बुद्धि उधार की , बुद्धिवाद कहलाय   ।
बिन अनुभव कोई कहां , बुद्ध  घटित हो पाय  ॥

राहिब क्यों पीछे चले  , अब तो आँखें खोल ।
स्वानुभूति के सत्य पर  , सारी बातें तोल ॥

राम रहीमा एक हैं  , कविता रही बताय  ।
कुफ़्र और इस्लाम का , अंतर ग़ज़ल मिटाय  ॥

सब सुविधाएं भोग के , उनको कुफ्र बतांय  ।
कठमुल्लों का ढोंग ये , काश समझ हम पांय  ॥

खोज ख़बर कागज़ क़लम  , नोंक झोंक रंग ढंग ।
हिंदी अरबी फारसी , जमा हिंदवी रंग ॥

लाख बरस की सभ्यता,  इक क़िताब में आय  ।
खरबों मानुष आ चुके , पन्नों ज्ञान समाय  ॥

नेत्र कर्ण अनुभव करें ,इसमें  ढेरों लोच ।
सबके  पीछे आत्मा ,  सोच सके तो   सोच ॥

बुद्ध कहैं आनंद से , उतना दिया बताय  ।
पतझड़ चारों ओर है , जितना मुट्ठी आय ॥

राहिब ख़ुद तेरे बिना , तुझको रोके कौन ।
तेरे मुँह से सब कहैं ,  केवल तू ही मौन ॥

घूँघट में कु़छ भी नहीं , केवल तेरे ख़ाब ।
तुझे भरम तू पी रहा , तुझको पिए शराब ॥

उपयोगी कछु कह सके ,  तो  राहिब मुख खोल ।
वरना बेहतर मौन है  , खाली है कचकोल ॥

साहस से बढ़ते चलो , साथ राखिए आस ।
अंधकार जितना घना , उतना निकट प्रकाश ॥

आवश्यकताएं अल्प हों , ऊँचा रहे ज़मीर ।
लेशमात्र  आशा नहीं , सबसे बड़ा अमीर ॥

डिजिटल दुनिया ने दिया , ध्यान भंग का रोग ।
बहके से चंचल मना ,  भटक रहे सब  लोग॥

भारत में सब चाहते , बातों से हो जाय ।
वैभव शाली राष्ट्र हो , बिना किए सब आय  ॥

बिना सहारे हो नहीं , भव सागर ये पार ।
सत संगति गुरु प्रेम की , नौका रहो सवार॥

होने से मरने तलक , पाखंडों का बोझ ।
मक्कारी में दब गया , भारत तेरा ओज ॥

मुर्दों को  पकवान हैं  , जिंदा भूखा जाय ।
रा हि ब  ये दीनो -धरम ,  जग भर हंसी कराय  ॥

नदियों में स्नान से , कहां धुल सकें पाप ।
आदम मैला ही रहा  , नदी सहें अभिशाप ॥

आम आदमी कर रहा , हर डर को स्वीकार ।
चोर ठगों को मिल रहे , रक्षा के अधिकार॥

श्वास श्वास है कीमती , कुदरत रही गिनाय ।
आलस और प्रमाद में , दिन दिन बीता  जाय  ॥

ढीली ढाली ज़िंदगी , फीकी सी मुस्कान ।
ज़िंदा खुद को  सब कहें , मगर कहां है  जान ॥

कौन कहां पैदा हुआ , ये केवल संयोग ।
मगर इसी में जी मरे , ये कहलाए रोग ॥

चलता फिरता आदमी , स्वयं प्रमाणित नांय  ।
चाल जात गुण हैसियत , कागज़ात बतलायं ॥

निर्बल से होता नहीं ,  प्रेम क्रोध अनुरोध  ।
बलशाली की शक्ति है , तोड़ सके अवरोध ॥

बुद्ध ख़ुदा मुर्शिद नहीं , खुद को वैध बतां य  ।
आजा पास निकाल  दूं , कांटा तेरे पांय  ,  ॥

रा हि ब जग तेरा नहीं , कैसे  देगा छोड़ ।
भरम जालघेरे खड़े , इनकी बांह मरोड़  ॥

कब मरना है पूछिए  , रा हि ब  लड़ भिड़ जाय  ।
एक मात्र जो  तय यहां , तासे पिंड छुड़ाय  ॥

उठते ही पहला क़दम , मंज़िल मिली  कमाल  ।
पत्थर छूटा  हाथ से , पहुंचेगा हर हाल॥

लेता अपने  विषय में , रा हि ब जग से राय ।
खुद से क्यूँ  पूछे नहीं , जो सब सच बतलाय ॥

जब तक बाज़ी चल रही , राजा रुतबा पाय  ।
खेल खतम मोहरे सहित , एकै डब्बा जाय  ॥

सूर किशन कुम्भन परम , छीत नंद गोविंद ।
चतुर संग अठछाप की , फैली गंध  सुगंध॥

ढोंगी गुंडे माफिया , पहले रस्ता पांय  ।
सड़क  किनारे देश में , सभ्य खड़े रह जांय  ॥

रहजन रहबर बन गए , खुलेआम है  लूट ।
शोषक पीड़ित से कहे  ,  तेरे  कारण  फूट ॥

कोटि कोटि जब मूढ़ हों , एक बुद्ध तब होय  ।
सौदा महंगा इस कदर , देखा सुना न कोय  ॥

नित्य क्रिया को जा रहा , धर कंधा बंदूक ।
कैसा भारत हो गया , कहां हो गयी चूक ॥

कु़छ पानी कु़छ धूप हो , कुछ हो चैन सूकून ।
स्वर्ग यहीं सबको मिले  , भोजन दोनों जून ॥

सूरज पानी पेड़ हों , कुछ अपनों का साथ ।
यह जीवन ही स्वर्ग है , काफ़ी है सौगात ॥

दिन दिन घटती जा रही , इस दुनिया की आयु ।
सब कु़छ मिला विकास से , दांव लगी जल वायु ॥

मुर्शिद ने मेरे दिया , तब मुझको कु़छ मान ।
जब इस नश्वर देह में , बची नहीं कु़छ जान ॥

ख़ुदा दूर से दूर है , और पास से पास ।
मैं जब तक क़ायम रहे , नहीं मिलन की आस ॥

संयम का अभिप्राय है , चार कदम बस देख ।
ता आगे सम्मोहना , वही बिगाड़े लेख ॥

ईंट बुरादा कैमिकल , पलास्टिक शैम्पू सोप ।
ये भोजन के तत्व हैं  , क्या अब भी कु़छ होप ॥

मैं मेरा के ढेर में , खोई मन की सुइ ।
हम अंधे काना गुरु , ढूँढ़ सकें ना दुइ ॥

मीरा ने रैदास को , मुर्शिद लिया बनाय ।
हीरे की तो  जौहरी  , जांच परख कर पाय॥

कुरुण प्रेम हित दैन्य का , भाव विह्वल संयोग ।
दास नरोत्तम को पढ़ें , रोते  रोते लोग ॥

रूहानी ग़ज़लें धुनें , कौन नहीं जो गाय ।
ख़ुसरो सबका दिल छुए , उसे कौन छू पाय ॥

ग़ज़ल पहेली गीत हों  या मुकरनियां राग ।
ख़ुसरो कानों में पड़ें , सोते जाएं जाग॥

जो खुद से हर्षित रहे  , सो सबको हर्षाय।
जो खुद से ही ख़ुश नहीं , किसको सुख दे  पाय ॥

- - - रा हि ब

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...