सोमवार, 8 जून 2020

लोकसंगीत / रेखा दीक्षित





#भारतीय_जनमानस_और
#लोकसंगीत

लॉकडाउन पीरियड चल रहा है , रात आधी प्रहर बीत चली है कि कहीं से ढोलक की थाप सुनाई दी । शायद कोई मां या सास अकेली ही बैठी #सोहर  गा रही थी ।
मन भटकने लगा लोकगीतों में ,जितने सुन्दर और सटीक शब्द गीतों के माध्यम से हमारी संस्कृति में बने हैं उसकी कुछ बानगियां पेश हैं  ।
प्रसव के बाद बेटे  की मां का दुख भी गीत में  झलकता है  कि सब पीड़ा सहने के बाद भी बच्चे को पिता का ही नाम मिलता है ..... और दूसरे भाव भी हैं __
#जुग_जुग_जियसु_ललनवा
#भवनवा_के_भाग_जागल_हो
#ललना_लाल_होईहे_ओओओ
होओओ
हमारी बुआ जी एक गाना हारमोनियम पर गाया करती हैं , वर्षाें पहले सुना था अब भी कानों में गूंजता है ।
#जवानी_सररर_सररर_होय
#जैसे_उड़े_हवाई_जहाज
#जैसे_बाजे_अंग्रेजी_बैंड
अब अगर इस गीत में जवानी की व्याख्या देखिए तो सोचिए
जवानी में जब रुधिर का एक एक पोर नाच उठता है ,तो चार दशक पहले हवाई जहाज़ भी  उड़ते हुए दिल की धड़कनें बढ़ा देता था ,या अंग्रेजी बैण्ड तब या अब भी बजता है तो दिल भी धड़ धड़ धड़कने लगता है और कदम  सब कुछ भूल कर थिरकने को आतुर हो उठते हैं । पर मेरा ध्यान गीत को रचने वाले पर जाता है कि जवानी के लिए ऐसी सटीक  उपमाएं कैसे उसके मन में उपजी होंगी !! जरूर तीव्र कल्पना शक्ति होगी उसकी ।
एक गाना कहीं सुना था , वह भी पति से बिछड़ने का दुख  पत्नी इतने सुन्दर और सरल शब्दों में कह रही है , कि मन में गड़ से जाते हैं । पेश है मुखड़ा
#बैरन_रेलगड़िया_पिया_को_लिये_जाय_री
#बैरन_रेलिया
यू ट्यूब पर इसे थोड़ा भोंडा बना दिया है पर इसके शब्द विन्यास पर ध्यान दिया जाए तो दूर जाते पिया के प्रति पत्नी की बेबसी समझ में आती है और दृश्य भी आंखों के सामने  करुणात्मक हो  साकार उठता है ।
ऐसे ही पहाड़ पर फौजौ की पत्नी का दुख
#तू_छुटियां_पर_आना_कदूर
#तेरे_रस्ते_पर_नैना_बिछाये_बैठी_रे
इसी  विरह वेदना को पंजाबी  में
#माही_मेरा_नी_सरू_दा_बूटा
फाग ,चैती , विरहा जाने कितने रागों से भरा है हमारा देश यहां तक की मृत्यु भी , बन्ना,बन्नी विदाई के गीत ।शादी में गाई जाने वाली गाली
#समधी_के_बालों_ऊपर_मोर_
#समधिन_को_ले_गये_काले_चोर
और  दुल्हन
#नी_मेहंदी_सगुना_दी
#सज_गयी_रुप_दे_नाल
विदाई के गीत , फ़सल को काटते और बोते हुए गीत सुनने के काबिल हैं । जीजा साली के गीत गढ़वाली
#हो_भिना_कस_के_जाऊ_दरहटा
#हीट_हटा_टीक_हटा_दरहटा
लखनऊ के रूमी दरवाजे के अन्दर अभी भी वह जगह महफूज़ है , जहां सवेरे सवेरे शहनाई वादक राग भैरवी के सुर छेड़ा करते थे , पर अफ़सोस कि अब इन सब की जगह डी जे DJ ले रहा है ।
मेरे लिखने का तात्पर्य है , शब्दों को भावों में पिरोने का काम हर मौके हर पल ये तो हमारी ही संस्कृति में संभव है । सोहर , मुण्डन , जनेऊ ,विवाह , मृत्यु  सब जगह बिखरे हुए  मोती हैं यह , इनको एक सूत्र में पिरोने की जरूरत है , वरना एक दिन ये  सहज ,सरल   मधुर कला विलुप्त हो भोंडे फिल्मी गीतों में विलीन हो जाएगी ।

रेखा दीक्षित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चिड़िया का घोंसला  सर्दियाँ आने को थीं और चिंकी चिड़िया का घोंसला पुराना हो चुका था। उसने सोचा चलो एक नया घोंसला बनाते हैं ताकि ठण्ड के दिनों ...