जनसंदेश टाइम्स के शनिवार के व्यंग्य स्तंभ में पढ़िए "चुनाव सबसे बड़े मूर्ख का '
चुनाव सबसे बड़े मूर्ख का
सुभाष चंदर
आओ मित्रों, आज आपको एक ऐसे सम्मेलन में लिए चलता हूँ जहाँ सबसे बड़े मूर्ख का चुनाव होने वाला है l इस सम्मेलन में दूर दूर से मूर्ख लोगों की सवारियां आईं हुई हैं। चलिए आपका परिचय सभी सहभागियों से करा दूं जो इस चुनाव में हिस्सा लेने आये हैं l उनसे मिलिए l वह जिनके भारी व्यक्तित्व का खमियाजा उनकी कुर्सी भुगत रही है , वह हमारे देश के उद्योगपति हैं l इनके बराबर वाली कुर्सी पर कुर्ता-धोती की राष्ट्रीय पोशाक में नेताजी विद्यमान है जो आसमान को ऐसे घूर रहे हैं जैसे उसके कुछ तारे झपट लेंगे l नेताजी की बगल में खाकी वर्दी में थानेदार जी बैठे हैं जो कुर्सी पर बैठे- बैठे भी जमीन पर ठोकरे मार रहे हैं । उधर कोने में चेहरे पर मनहूसियत का स्थायी भाव लिए जो सज्जन शून्य में निहार रहे हैं ,वह हिंदी के साहित्यकार हैं । उधर एकदम कोने में एक साहब शर्माने का लगातार अभ्यास कर रहे है ।वह कभी पैर के नाखूनों से जमीन कुदेरते हैं तो कभी सीट छोडकर जमीन पर बैठने की कोशिश करते हैं । उनके चेहरे पर अजीब किस्म की दयनीयता तैर रही है । वह उनकी हरकतों से मुझे लगता है कि वह हो न हो कोई मामूली किस्म के आदमी है जिन्हें हम अपनी सुविधा के अनुसार जनता-जनार्दन या आम आदमी भी कह सकते हैं ।
और भी कुछ लोग हैं।पर देखने में ये ही बड़े दावेदार लग रहे हैं।सो हम उन्हीं पर कंसंट्रेट करेंगे।
तो पाठको ... आज के इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में हमारे सारे मेहमान पूरी तैयारी से आये हैं । सभी का दावा है कि उनसे बढकर मूर्ख और कोई नहीं है । आइये हम उन्हीं के श्रीमुख से उनकी दलीलें सुनें ।
सबसे पहले नेताजी का नाम पुकारा गया है । अब वह अपनी मूर्खता का दावा माइक पर पेश कर रहे हैं ।नेताजी कहते हैं,” -बहनों और भाइयो , बताइये हमसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा जो जनता की इतनी सेवा करने के बाद भी गाली खाता है । हम तो सब काम जनहित में करते है । शंकर जी ने तो सिर्फ विष पिया था, हम तो जनता के लिए यूरिया से लेकर जानवरों का चारा तक पचा लेते हैं । यह तो कोई देखता नहीं कि राजनीति की इस कच्ची नौकरी के लिए हमें कैसे- कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं । पर जरा सा कोई घोटाला कर लिया तो लोग बेईमान कहने लगते हैं । बताइए देश हमारा हम देश के । चाहे उसे चाटे या बेचें ,लोग कौन होते हैं। इसके बाद भी हम गालियाँ खाते हैं l पर हम हैं कि फिर भी जनता की सेवा से बाज़ नहीं आते हैं । बताइये होगा कोई मूर्ख जो सेवा भी करे गाली भी खाए ।बताइये ,बताइये l”
नेताजी के जाने के बाद उद्योगपति जी माइक के सामने आये और बोले,–“ साथियों ,सही मायने में हम उद्योगपति ही महा मूर्ख की पदवी के सही हकदार है । अब देखिये ,हम व्यवसायी लोग न जाने कितनी तिकड़में करके पैसा इकटठा करते है और सरकार बिना कुछ किए –धरे इनकम टैक्स के रूप में हमारा पैसा हड़प कर जाती है। दूसरा हमारी मूर्खता का सबूत ये कि ये नेता लोग हमसे ही चंदा लेकर चुनाव लड़ते हैं और हमें ही गालियाँ देतें हैं । यहाँ तक कि जब चुनाव जीत जाते हैं तो हमारे चंदे के बदले लाइसेंस परमिट देने तक में भी आना-कानी करते हैं । बताइये हमसे बड़ा मूर्ख देखा है आपने ? है । उनके जाते ही थानेदार जी आये और बोले,” देखिए हम लोगों ने अपराध कम करने के लिए कितने कदम उठाये हैं । हमारे डर के कारण लोग अपराध करते हुए डरते हैं । अब वही अपराध करता है ,जिसकी ज़ेब में नोट होते हैं । लोग कहते हैं कि हम लोगों को परेशान करते हैं ,उन्हें लूटते हैं l जबकि हम तो उनके पैसे लेकर उन्हें मोह माया से दूर करते हैं l बताइये हमसे बड़ा है कोई मूर्ख जो भलाई का काम भी करे और सजा भी पाए ? इतना कहकर डंडा फटकारते हुए वापस लौट जाते हैं।
पुलिस प्रतिनिधि के बाद साहित्यकारजी का आगमन हुआ है । उन्होंने पहले गला खखारा । परम्परा के मुताबिक ऑंखें आसमान में गड़ाई। महानता के चिह्न मनहूसियत को चेहरे पर चिपकाया और ऐसे बोलना शुरू किया । मानो शोक संदेश पढ़ रहें हों---
भाइयो और बहनों ,हिंदी के साहित्यकार से बड़ा मूर्ख और कोई नहीं हो सकता। बताइए हम पूरी- पूरी रात बैठकर रचना तैयार करते है और सम्पादक कई बार रचना छापना तो दूर,उसकी प्राप्ति की सूचना भी नहीं देते हैं । और तो और हम जिस आम आदमी के लिए लिखते हैं वो कहता है कि उसे हमारा लिखा समझ में नहीं आता,वह भी हमें कुछ नहीं समझता । यहाँ तक कि लेखक होने के ऐब के कारण हमारी शादी भी बड़ी मुश्किल से होती है । शादी हो भी जाये तो बीवी तक डांटती हैं । न तो वह रचना सुनती है और न ही काम करने से रोकती है। बताइए साहित्यकार को क्या काम करना चाहिए । अब बताइए “ हमसे बड़ा मूर्ख कौन होगा जो लेखन जैसे महान काम भी करेगा और अपमानित भी होगा”। यह कहकर लेखकजी दुखी मन से लौट गये ।
अब सिर्फ आखिरी प्रतिद्वंद्वी बचे हैं । वही फीके रंगो वाले आम आदमी जी।वह मंच पर काफी कुछ उल्टा पुल्टा बोल रहे हैं, –“सब माई बाप लोगो को प्रणाम । हुज़ूर , यहाँ सब बड़े –बड़े लोग मौजूद है । सबने अपनी –अपनी बात रखी । पर हुजुर,हम सच्ची कह देते हैं,हम बिल्कुल भी मूर्ख नहीं हैं । हम तो काफी समझदार हैं । काफी खुश है । नेताजी ने हमारे लिए बहुत काम किया है । ये हमारी गरीबी दूर करने में लगे हैं । ये तो हमारी गरीबी ही नामुराद ऐसी जिद्दी है कि दूर नहीं हो रही । सिर्फ नेताजी ही क्यों ? सब हमारे लिये सोचते है । सेठजी ने हम गरीबो के लिए ही मिल खोली है । पुलिस वाले दरोगा जी हमारी रक्षा करते हैं। लेखक- बाबू हम लोगो की खातिर ही इतनी मेहनत करते हैं । सरकार से लेकर सब लोग हमारे वास्ते कितना-कितना करते हैं ।पर हम उनके लिए कुछ नहीं करते । हुजुर.... हमने काफी कह लिया । पर हम इतना बताये देते हैं कि हम मूर्ख नहीं है।कतई मूर्ख नहीं है ।“ कहते –कहते आम आदमी रो पड़ा । वैसे एक बात कहें ,इस आम आदमी को रोने की बहुत बुरी बीमारी है । ख़ुशी गम हरेक में रोता है ।
पर छोड़िये ..... आप ने पूरा महामूर्ख सम्मेलन देख लिया न ? अब आप ही फैसला कीजिए कि इन सब में महामूर्ख की पदवी का हकदार कौन है ? और हाँ ,उस आम आदमी को तो छोड़ ही दीजियेगा जिसने खुद कहा है कि वह मूर्ख नहीं है ।
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