बुधवार, 24 जून 2020

पारिभाषिक शब्द




व्याकरण के पारिभाषिक शब्द "गुण" और "वृद्धि" - भाग-2
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भाग-1 में पारिभाषिक शब्द "गुण" की चर्चा की गई। अब पारिभाषिक शब्द "वृद्धि" पर आते हैं।
निम्नलिखित धातु और प्रातिपदिक (शब्द) से बने कृत् प्रत्ययान्त एवं तद्धित प्रत्ययान्त शब्दों पर विचार करें।

त्यज् - त्याग
पठ् - पाठक
वच् - वाचक
वर्ष - वार्षिक
धर्म - धार्मिक

इह - ऐहिक
दिन - दैनिक
किरात - कैरात (किरात जाति या देश से संबंध रखनेवाला)
केकय - कैकेयी

उचित - औचित्य
उज्ज्वल - औज्ज्वल्य
उत्सुक - औत्सुक्य
उदार - औदार्य
उद्योग - औद्योगिक
उपमा - औपम्य (सादृश्य, समता)
सुन्दर - सौन्दर्य
कुमार - कौमार्य
भूत - भौतिक

कृ - कारक
मृज् - मार्जक
ऋषि - आर्ष
मृज् - मार्जन (धो-माँजकर साफ करना, शोधन)

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि कृत् या तद्धित प्रत्यायान्त शब्दों में धातु या प्रातिपदिक के आदि अच् (स्वर) के स्थान में आ, ऐ, औ, आर् कर दिए गए हैं।
आ, ऐ, औ, आर् - इन्हें वृद्धि संज्ञक कहते हैं।

नोटः कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनमें गुण और वृद्धि दोनों होते हैं, लेकिन अर्थ में अन्तर होता है। जैसे -

ग्रह् (पकड़ना) - ग्रह (planet), ग्राह (घड़ियाल)। आप खुद ही सोच सकते हैं कि ग्रह या ग्राह का ऐसा नाम क्यों है।

वर्ण - वर्णिक (वर्ण संबंधी, जैसे - वर्णिक-वृत्त; लेखक); वार्णिक (लेखक)

भाग-1 में बताया जा चुका है कि -अन प्रत्यय लगाने पर अजन्त धातु और इकार या उकार उपधा वाली धातु का भी गुण होता है। परन्तु मृज् धातु इसका अपवाद है। पाणिनि सूत्र "मृजेर्वृद्धिः" (पा॰7.2.114) से बिना कोई शर्त के मृज् धातु से गुण के स्थान पर वृद्धि ही की जाती है।



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