/ सुरेन्द्र ग्लोश
एक दिल था शाम को सौंप दिया
अब दुजा कहां से लाएं हंम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सु नाएं हंम
एक दिल था शाम को सौंप दिया
आंखों में शाम हैं आन बसें
कुछ और देख ना पाएं हंम
इस तन पे शाम का राज चले
अब खुद कैसे चल पायें हम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
जब शाम शाम रंग डाल गये
किसी और ना रंग रंग पायें हंम
बैठा है लबों पे शाम नाम
कुछ और बोल ना पायें हम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
उदौ उस शाम का क्या कहना
हैं उस की आस लगाए हंम
अब रो रो आंसू सूख गए
दिल ही दिल घुटते जायें हम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
उस बिरहा जल जल खाक हुए
अब किस को और जलांयें हंम
अगर कांटा भी चुभ जाये उन्हें
यहां लहू लुहान हो जायें हम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
हम यही दुआ नित करें सदा
वह खुश रहें आबाद रहें
जब याद हमारी आ जाए
उन के ही मन पा जायें हम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब। और क्या उसे सुनाएं हंम
जा ऊदौ शाम से ना कैहना
हमं घुट घुट जिए जाते हैं
तेरी याद में तिल तिल मरते हैं
ना पायें चैन ना सोएं हंम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
कुछ ऐसा ना कह देना उन्हें
जो और दुःखी कर जाए उन्हें
हम खुश हैं जिसमें वो खुश हैं
चाहे जांन भी दे जायें गे हंम
बंसी धुन कान में बैठ गई
अब और क्या उसे सुनाएं हंम
एक दिल था शाम को सौंप दिया
अब दुजा कहां से लाएं ह
: हम तो प्यार _ ए _ वफा कर के सनम
बन गये तमाशा _ए _ जमानां ओ सनम
तुने क्यूं तोड़ दिया आईना _ए_दिल मेरा
टुकड़े टुकड़े बिखरा है ज़मी पे सनम
बन गये तमाशा _ ए _ जमानां ओ सनम
दुनिया ने दिये जख्म वो भर गये तमाम
भर ना पाया एक ज़ख़्म जो तूने दिया सनम
बन गये तमाशा _ए_ज़माना ओ सनम
बहारें भरी रहें तेरी राहों में जहां तुम रहो
तेरे ग़म के सहारे जी लेंगे सारी उम्र हम
बन गये तमाशा _ए_ज़माना ओ सनम
ना दर ना ठिकाना पड़ें रास्तों पे हम
राह तकें ये आंखें तेरे आने की सनम
बन गये तमाशा _ ए _ ज़माना ओ सनम
हम तो प्यार _ ए _ वफा कर के सनम
बन ग ये तमाशा _ ए _ ज़मानां ओ सनम
नां मैं तुझ से खफा था नां तू मूझसे थी खफा
फिर क्यु जिंदगी ने हमें जुदा कर दिया
नां वो रात हो गी अब नां वो चांद हो गा
तुझे देखने को मेरा दिल सदा बेताब हो गा
जांनता हूं मैं के तुम ना लौटो गी अब कभी
फिर भी हर पल तेरे मिलने का इंतजार हो गा
नां मैं तुझ खफा था नां तू मुझसे थी खफा
तुझे ढूंढें गी नज़रें हर शाख पे हर फूल में
आस रहे गी कहीं तो तेरा दीदार हो गा
दुआ मांगूं रब से ले जाये मुझे भी पास तेरे
मिला दे जान _ए_जिगर से बड़ा उपकार हो गा
नां मैं तुझ से खफा था नां तू मुझसे थी खफा
प्यार भरी दुनिया को उजाड़ के रख दिया
खिजां ने खिलते फूलों को बर्बाद कर दिया
अंधेरा छा गया मेरे घर में तेरे जाने के बाद
रौशन रहा हरदम तेरे हुस्न _ ए _ जमाल से था
नां मैं तुझ से खफा था नां तू मुझसे थी खफा
फिर क्युं जिंदगी ने हमें जुदा कर दिया
दील अंजानें तुझ को दे बैठा
एक ज़ैहर - ऐ-,आब.मैं पी बैठा
दिल अंंजानेंं तुझ को दे बैठा
कुछ ऐसी पी ली निग़ाह - ए -शराब
तेरी आपनें होश गवा बैठा
दिल अंजाने तुझ को दे बैठा
जब होश आया देखा मैं तो
तेरी चौखट पर था गीरा बैठा
दिल अंजांनें तुझ को दे बैठा
मुझ सा नां इश्क में खोना यारो
मैं तो आपना जनाजा उठा बैठा
दिल अंजांनें तुझ को दे बैठा
वो शख्स जो इश्क में डूब गया
वो खुद ही खुद को मिटा बैठा
दिल अंजानें तुझ को दे बठा
एक ज़हर - ए - आब मैं पी बैठा
दिल अंजांनें तुझ को दे बैठ
(यह रचना बच्चों को समर्पित)
ऐक चिड़िया ठंड के दिनों में जा बैठी धूप सेंकने
कबुतर ने देखा चीडिया को आ बैठा उसके सामने
देख के कौवा उन दोनों को लाया मुंगफली के दाने
मौसम सुहाना देख मोर भी लगा अपने पंख फैलाने
अंबवा बैठी कोयल आई कूहूं कूहूं करती गाना गाने
दौड़ता आया रीछ भी ले कर ढोल और लगा बजाने
जमां हो सब पंछी व जानवर लग गये धूम मचाने
साथ साथ में खाते जाएं मूंगफली केदाने
लगे भूल सब गिले-शिकवे एक दूजे को गले लगाने
सब ने कहा कुछ वक्त यहां रोज़ आएं खुशी मनाने
एक चीड़िया ठंड के दिनों में जा बैठी धूप सेंकने
कबुतर ने देखा चिड़िया कोआ बैठा उस के सामने
चिड़िया बैठी धूप सेंकने चिड़िया बैठी धूप सेंकने
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