रा हि ब - - -
दुनिया में सबसे अधिक , भ्रष्ट हिंद की प्रेस ।
कहां वसूली हो सके , दिन भर ढूँढ़े केस ॥
भूख कचोटे पेट को , धूप ओढ़ रह जायं ।
दुखिया को इस हाल में , कैसे बुद्ध सुहांय॥
क्या पाए की शायरी , क्या लहज़ा अंदाज़ ।
ग़ालिब मोमिन जौक ने , रखा मीर सर ताज॥
फंसा पंच स्कन्ध में , सुख से वंचित होय ।
नाम रूप रस राग में , जीवन मकसद खोय ॥
ख़बर सितारों की धरो , लेकिन पांव ज़मीन ।
ये खिसकी तो सब गया ,व्यर्थ पड़ी दुरबीन ॥
सारी बुद्धि उधार की , बुद्धिवाद कहलाय ।
बिन अनुभव कोई कहां , बुद्ध घटित हो पाय ॥
राहिब क्यों पीछे चले , अब तो आँखें खोल ।
स्वानुभूति के सत्य पर , सारी बातें तोल ॥
राम रहीमा एक हैं , कविता रही बताय ।
कुफ़्र और इस्लाम का , अंतर ग़ज़ल मिटाय ॥
सब सुविधाएं भोग के , उनको कुफ्र बतांय ।
कठमुल्लों का ढोंग ये , काश समझ हम पांय ॥
खोज ख़बर कागज़ क़लम , नोंक झोंक रंग ढंग ।
हिंदी अरबी फारसी , जमा हिंदवी रंग ॥
लाख बरस की सभ्यता, इक क़िताब में आय ।
खरबों मानुष आ चुके , पन्नों ज्ञान समाय ॥
नेत्र कर्ण अनुभव करें ,इसमें ढेरों लोच ।
सबके पीछे आत्मा , सोच सके तो सोच ॥
बुद्ध कहैं आनंद से , उतना दिया बताय ।
पतझड़ चारों ओर है , जितना मुट्ठी आय ॥
राहिब ख़ुद तेरे बिना , तुझको रोके कौन ।
तेरे मुँह से सब कहैं , केवल तू ही मौन ॥
घूँघट में कु़छ भी नहीं , केवल तेरे ख़ाब ।
तुझे भरम तू पी रहा , तुझको पिए शराब ॥
उपयोगी कछु कह सके , तो राहिब मुख खोल ।
वरना बेहतर मौन है , खाली है कचकोल ॥
साहस से बढ़ते चलो , साथ राखिए आस ।
अंधकार जितना घना , उतना निकट प्रकाश ॥
आवश्यकताएं अल्प हों , ऊँचा रहे ज़मीर ।
लेशमात्र आशा नहीं , सबसे बड़ा अमीर ॥
डिजिटल दुनिया ने दिया , ध्यान भंग का रोग ।
बहके से चंचल मना , भटक रहे सब लोग॥
भारत में सब चाहते , बातों से हो जाय ।
वैभव शाली राष्ट्र हो , बिना किए सब आय ॥
बिना सहारे हो नहीं , भव सागर ये पार ।
सत संगति गुरु प्रेम की , नौका रहो सवार॥
होने से मरने तलक , पाखंडों का बोझ ।
मक्कारी में दब गया , भारत तेरा ओज ॥
मुर्दों को पकवान हैं , जिंदा भूखा जाय ।
रा हि ब ये दीनो -धरम , जग भर हंसी कराय ॥
नदियों में स्नान से , कहां धुल सकें पाप ।
आदम मैला ही रहा , नदी सहें अभिशाप ॥
आम आदमी कर रहा , हर डर को स्वीकार ।
चोर ठगों को मिल रहे , रक्षा के अधिकार॥
श्वास श्वास है कीमती , कुदरत रही गिनाय ।
आलस और प्रमाद में , दिन दिन बीता जाय ॥
ढीली ढाली ज़िंदगी , फीकी सी मुस्कान ।
ज़िंदा खुद को सब कहें , मगर कहां है जान ॥
कौन कहां पैदा हुआ , ये केवल संयोग ।
मगर इसी में जी मरे , ये कहलाए रोग ॥
चलता फिरता आदमी , स्वयं प्रमाणित नांय ।
चाल जात गुण हैसियत , कागज़ात बतलायं ॥
निर्बल से होता नहीं , प्रेम क्रोध अनुरोध ।
बलशाली की शक्ति है , तोड़ सके अवरोध ॥
बुद्ध ख़ुदा मुर्शिद नहीं , खुद को वैध बतां य ।
आजा पास निकाल दूं , कांटा तेरे पांय , ॥
रा हि ब जग तेरा नहीं , कैसे देगा छोड़ ।
भरम जालघेरे खड़े , इनकी बांह मरोड़ ॥
कब मरना है पूछिए , रा हि ब लड़ भिड़ जाय ।
एक मात्र जो तय यहां , तासे पिंड छुड़ाय ॥
उठते ही पहला क़दम , मंज़िल मिली कमाल ।
पत्थर छूटा हाथ से , पहुंचेगा हर हाल॥
लेता अपने विषय में , रा हि ब जग से राय ।
खुद से क्यूँ पूछे नहीं , जो सब सच बतलाय ॥
जब तक बाज़ी चल रही , राजा रुतबा पाय ।
खेल खतम मोहरे सहित , एकै डब्बा जाय ॥
सूर किशन कुम्भन परम , छीत नंद गोविंद ।
चतुर संग अठछाप की , फैली गंध सुगंध॥
ढोंगी गुंडे माफिया , पहले रस्ता पांय ।
सड़क किनारे देश में , सभ्य खड़े रह जांय ॥
रहजन रहबर बन गए , खुलेआम है लूट ।
शोषक पीड़ित से कहे , तेरे कारण फूट ॥
कोटि कोटि जब मूढ़ हों , एक बुद्ध तब होय ।
सौदा महंगा इस कदर , देखा सुना न कोय ॥
नित्य क्रिया को जा रहा , धर कंधा बंदूक ।
कैसा भारत हो गया , कहां हो गयी चूक ॥
कु़छ पानी कु़छ धूप हो , कुछ हो चैन सूकून ।
स्वर्ग यहीं सबको मिले , भोजन दोनों जून ॥
सूरज पानी पेड़ हों , कुछ अपनों का साथ ।
यह जीवन ही स्वर्ग है , काफ़ी है सौगात ॥
दिन दिन घटती जा रही , इस दुनिया की आयु ।
सब कु़छ मिला विकास से , दांव लगी जल वायु ॥
मुर्शिद ने मेरे दिया , तब मुझको कु़छ मान ।
जब इस नश्वर देह में , बची नहीं कु़छ जान ॥
ख़ुदा दूर से दूर है , और पास से पास ।
मैं जब तक क़ायम रहे , नहीं मिलन की आस ॥
संयम का अभिप्राय है , चार कदम बस देख ।
ता आगे सम्मोहना , वही बिगाड़े लेख ॥
ईंट बुरादा कैमिकल , पलास्टिक शैम्पू सोप ।
ये भोजन के तत्व हैं , क्या अब भी कु़छ होप ॥
मैं मेरा के ढेर में , खोई मन की सुइ ।
हम अंधे काना गुरु , ढूँढ़ सकें ना दुइ ॥
मीरा ने रैदास को , मुर्शिद लिया बनाय ।
हीरे की तो जौहरी , जांच परख कर पाय॥
कुरुण प्रेम हित दैन्य का , भाव विह्वल संयोग ।
दास नरोत्तम को पढ़ें , रोते रोते लोग ॥
रूहानी ग़ज़लें धुनें , कौन नहीं जो गाय ।
ख़ुसरो सबका दिल छुए , उसे कौन छू पाय ॥
ग़ज़ल पहेली गीत हों या मुकरनियां राग ।
ख़ुसरो कानों में पड़ें , सोते जाएं जाग॥
जो खुद से हर्षित रहे , सो सबको हर्षाय।
जो खुद से ही ख़ुश नहीं , किसको सुख दे पाय ॥
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