शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

जगदीश बरनवाल कुंद अबतक उपेक्षित क्यों ?

(आजमगढ़ : माटी के लाल) / हिंदी संस्थान का सम्मान तो उन्हें पहले मिल जाना चाहिए था..!


@ अरविंद सिंह


जी हाँ, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का 'पांडेय बेचने शर्मा उग्र' सम्मान आजमगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जगदीश बरनवाल कुंद को मिलने की खब़र आ रही है. सच कहें तो यह देर से ही सही, सरकार द्वारा सही व्यक्ति का सम्मान है, अगर साहित्य में सियासत और सत्ता की गणेश परिक्रमा का युग नहीं होता और जुगाड़ संस्कृति का इस कदर कुप्रभाव नहीं होता तो यह सम्मान उन्हें कम से कम दशक भर पहले मिल जाना चाहिए था. इस सम्मान से जगदीश बरनवाल कुंद जैसा साहित्यकार नहीं सम्मानित होता, बल्कि उन्हें देकर सरकारें सम्मानित होतीं. 

 मेरा मानना है कि कुछ शख्सियत ऐसी भी होती हैं जिनके सम्मानित होने से समाज सम्मानित महसूस करता है, साहित्य और साहित्य अनुरागी सम्मानित महसूस करते हैं. क्योंकि वह साहित्यकार उस व्यापक जनमानस की मुखर अभिव्यक्ति होता  है, वह अपने समाज के दुख सुख और परिवेश का दर्पण होता है. अपने समय की तहरीर और स्वतंत्र आवाज़ होता है. 

कुंद जी उसी धारा की मुसाफिर हैं, 'ना कहूँ से दोस्ती और ना कहूँ से बैर', खेमेबाजी और साहित्य की सियासत से दूर अपने रौव में, रचना संसार में बहे जाना, रचते जाना. किसी सम्मान और पुरस्कार की बाड़बंदी से निर्मुक्त होकर साहित्य आकाश में  किसी आजाद पक्षी के मानिंद उड़ते जाना और सृजन करते जाना. लेकिन देर से सही इस सुकून भरे समाचार के मिलने से पूरा आजमगढ़ सम्मानित महसूस कर रहा है. उनकी हाल में प्रकाशित किताब "राहुल सांकृत्यायन: जिन्हें सीमाएं नहीं रोक सकीं" पर हिंदी संस्थान का यह सम्मान मिला है.  

  इन पंक्तियों का लेखक जब भी मिला एक अपनापन और सहृदयता से लबरेज कुंद जी ने आत्मीयता से स्नेह दिया. उनके रचना संसार का सही मूल्यांकन यदि हुआ होता तो आजमगढ़ को ऐसे कई सम्मान पहले ही मिल गये होते. लेकिन एक बात जरूर कहूंगा- कुंद जी के रचना संसार का जब भी मूल्यांकन होगा. आजमगढ़ का यह सितारा साहित्य आकाश में चमकता नज़र आएगा.  या यूँ कहूँ तो -'' आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद डायनासोर के जीवाश्म की तरह अध्ययन किए जाएंगे जगदीश बरनवाल कुंद." आप मानो या न मानों. 

 एक फिर हृदय की अतल गहराइयों से मुबारक़बाद हो कुंद जी, बधाइयाँ सर!

नोट- जिनकी दो किताबें  क्रमश:-  #विदेशी विद्वानों का संस्कृत प्रेम, #विदेशी विद्वानों का हिंदी प्रेम, देश और दुनिया में पढ़ी जाती हैं.


स्वाभिमानी आज़मगढ़ी  Aap Azamgarh  Azamgarh Congress

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहिर लुधियानवी ,जावेद अख्तर और 200 रूपये

 एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे ।  ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक़्त लेकर उनसे...