'माटी के लाल आज़मियों की तलाश में.. / अबरार आज़मी : इस अनजान शायर की तलाश जारी है..
@ अरविंद सिंह
आजमगढ़ एक खोज..
अबरार आजमी आजमगढ़ के किसी गाँव में सन् 1936 में जन्मे एक शानदार शायर हैं. जिनकी नज्में और गज़लों को पढ़कर उनके क़द का अंदाज़ा लगा सकते हैं, लेकिन उनके विषय में बहुत सी जानकारी उपलब्ध नहीं है. और नहीं कोई संदर्भ स्रोत ही मिल रहा है, लेकिन उनकी शायरी का मयार बड़ा है. वे अबतक सशरीर हैं भी या नहीं, इसकी जानकारी भी नहीं है. लेकिन उनके कामों की तारीफ होनी चाहिए. जिस किसी के पास इस नायाब शायर से जुड़ी जानकारी, जन्मस्थान, परिवेश और जीवनकाल की घटनाओं से जुड़े संस्मरण आदि मिल सके तो देने का कष्ट करें. ऐसे अनजान शायरों का संकलन और उनके नायाब कार्यों को सम्मान मिलना चाहिए. उनकी कुछ गजलों को आप देख सकते हैं...
सन्नाटे का दर्द निखारा करता हूँ/
ख़ुद को ख़ामोशी से पुकारा करता हूँ.
तन्हाई जब आईना दिखलाती है/
अपनी ज़ात का पहरों नज़ारा करता हूँ.
आवाज़ों का बोझ उठाए सदियों से/
बंजारों की तरह गुज़ारा करता हूँ.
ख़्वाबों के सुनसान जज़ीरों में जा कर/
वीरानी से ज़िक्र तुम्हारा करता हूँ.
जब से नींदें लौट गईं तारों की तरफ़/
जागते में ज़ख़्मों को सँवारा करता हूँ
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कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था
कल रात कोई फिर मिरा मेहमान बना था
बिस्तर में चली आएँ मचलती हुई किरनें
आग़ोश में तकिया था सो अंजान बना था
वो मैं था मिरा साया था या साए का साया
आईना मुक़ाबिल था मैं हैरान बना था
नज़रों से चुराता रहा जिस्मों की हलावत
सुनते हैं कोई साहिब-ए-ईमान बना था
नद्दी में छुपा चाँद था साहिल पे ख़मोशी
हर रंग लहू-रंग का ज़िंदान बना था
हर्फ़ों का बना था कि मआनी का ख़ज़ीना
हर शेर मिरा बहस का उनवान बना था
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नोट:- इस शायर के बारे में कोई जानकारी मिल सके तो हमें जरूर शेयर करें.
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