गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

कहानी एक राक्षस और चुड़ैल की

✌️ हास्य कहानी / कहानी एक राक्षस और चुड़ैल की --सुभाष चंदर✌️👌


यह कहानी एक  खौफनाक राक्षस और  खतरनाक  चुड़ैल की है । वे दोनों  कुछ बरसों पहले शादी नामकी एक दुर्घटना का शिकार हुए थे और ऐन उसी के बाद से, एक ही घर में रहते हुए, एक दूसरे का लहू पीकर ज़िन्दगी काट रहे थे। 

वैसे एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि वह  राक्षस थोड़ा अजीब था।उसकी साज सज्जा राक्षसों जैसी तो कतई ना थी । ना तो उसके सिर पर सींग थे ,ना बड़े बड़े दांत थे । उसके तो सीधे सीधे दो हाथ ,दो पैर , एक नाक और एक -एक  जोड़ी आंखें और कान थे। कहने का मतलब  यह है कि वह बिल्कुल आम आदमी जैसा लगता था। पर चूंकि उसकी  निजी पत्नी ने उसके बारे में प्रमाणपत्र दे रखा  था कि वह आदमी नहीं राक्षस है तो हमें इस बात को चुपचाप मान लेना चाहिए। 

कुछ ऐसा ही नेक खयाल उस राक्षस का अपनी पत्नी के बारे में था। वह उसे चुड़ैल कहता ही नहीं था , दिल से मानता भी था। जबकि उसका साज श्रृंगार भी सिम्पल टाइप की औरतों जैसा था।उसके भी हाथ ,पांव,आंख नाक वगैरह की गिनती पूरी थी। नाखून बड़े तो जरूर थे ,पर उनसे वह किसी का मांस- वांस नोच पाती होगी ,इसमें थोड़ा संशय है। यहीं हालत दांतों की भी थी ,वे भी सीधे सपाट थे, उनमें खून चूसक यंत्र भी लगे नहीं दिखते थे । दांतों के नीचे होठों पर ललाई जरूर दिखती थी पर वह लिपिस्टिक का साइड इफेक्ट ज्यादा लगती थी। किस्सा कोताह यह कि पहली नजर में वह ठीक ठाक महिला का ही लुक देती थी।पर चूंकि उसके राक्षस पति का मानना था कि वह चुड़ैल है और बेनागा उसका और बाकी घरवालों का लहू पी रही है तो हमें उसकी बात पर विश्वास कर लेना चाहिए।

अब थोड़ा कहानी को कुछ ऐसे  आगे बढ़ाते हैं कि एक छोटे शहर में एक  राक्षस और चुड़ैल मनुष्यों के भेष में रहते थे और एक दूसरे के लहू पर ज़िंदा रहते हुए दिन काट रहे थे। दोनों बेनागा लड़ते थे और उन्हें लड़ने के लिए  बहाने खोजने  की जरूरत  भी कभी नहीं पड़ती थी । वे टीवी का रिमोट किसके पास रहे ,चाय में चीनी ज्यादा  या कम क्यों है,  जैसी किसी भी छोटी मोटी बात पर घर को युद्ध के मैदान में बदल देते थे।  उनका सीधा सा फंडा था कि जैसे ही विरोधी के मुंह से कुछ निकले उसका सीधे विरोध करो।सही गलत ,लोजिक वगैरह कतई मत देखो ।सिर्फ कर्म पर ध्यान दो ,कारण की चिंता कतई मत करो।मतलब उनकी  लड़ाई सत्ता  पक्ष और विपक्ष जैसी थी जिसमे एक दूसरे की हर बात को काटना जरूरी माना जाता था। 

उस दिन भी कुछ ऐसा ही माहौल था। रविवार का दिन था। चुड़ैल रानी किचन में कुछ काम कर रही थी जबकि  राक्षस  को सफाई का दौरा पड़ गया था, सो वह  बालकनी  में रखे सामान को चमका रहा था।सफाई अभियान के दौरान ही उसकी नजर शीशे के फूलदान पर पड़ी । फूलदान काफी कीमती था और फिर  उनकी शादी में दहेज के संग आया था सो उन्होंने उसे पूरी इज्ज़त बख़्शी और अतिरिक्त उत्साह के साथ उसकी सफाई करनी शुरू कर दी। अब भगवान जाने फूलदान को इतनी इज्ज़त रास नहीं आई या उत्साह उस पर भारी पड़ गया। कारण जो भी रहा हो ,फूलदान राक्षस के हाथों से फिसला । चट्ट की जोरदार आवाज़ आई और फिर टूटे दिल की तर्ज पर, उसके टुकड़े इधर -उधर बिखर गए। बस फिर क्या था जिसे हंगामा कहते है,वह बरप गया और बढ़िया ढंग से बरप गया।चुड़ैल के कानों में जैसे ही यह आवाज़ पहुंची तो वह दौड़ी दौड़ी आई । उसने पहले टूटे फूलदान को, फिर फर्श को और आखिर में राक्षस की तरफ देखा। इस सारी कार्रवाई  से निपटने के बाद  उसने ऊंचे स्वर विलाप करना और राक्षस को कोसना शुरू कर दिया। वह चिल्लाकर बोली -" हाय राम,इस दुष्ट राक्षस ने मेरे घर से आया फूलदान तोड़ दिया।इसे तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी।इस नासपीटे के शरीर में दो दो मीटर के कीड़े पड़ेंगे । "

राक्षस ने पहले तो बिगड़कर चुड़ैल को हड़काने की कोशिश की। पर उससे बात और बिगड़ती देख बैक फुट  पर आ गया ।उसने   अपनी आदत के विपरीत    थोड़ा नर्माकर कहा ," विद्या रानी की कसम , मैंने जान बूझकर  नहीं तोड़ा।" उसने कुछ तर्क भी दिए ,पर चुड़ैल ने सब खारिज कर दिए।   कहते हैं ना कि मर्ज  बढ़ता गया ,ज्यों ज्यों दवा की। राक्षस जितना समझाता,चुड़ैल उतना ही ज्यादा शोर मचाती।कुछ ही देर में हालात इतने फंडू हो गए कि पड़ोसी लोग अपनी अपनी बालकोनियों में विराजमान हो गए। मन्नू बाबू ने तो पूछ ही लिया ," क्या बात है भाई साहब , भाभी जी इस तरह रो क्यों रही हैं। कोई बुरी खबर मिली है क्या ?

इस पर राक्षस ने सेंस ऑफ ह्यूमर का परिचय देते हुए कहा ," हां साहब ,वो ससुर साहब की हालत खराब है ,वे दो चार घंटे के मेहमान है बस"। यह सुनकर मन्नू बाबू ने अभी शोक संवेदना का एक वाक्य ही बोला था  कि चुड़ैल  बुरी तरह भिनक पड़ी।उसके बाद तो उसने पहले तो मन्नू बाबू की तबियत से धूल  झाड़ी फिर राक्षस पर जोरदार हमला बोल दिया। इस हमले में राक्षस के पूरे खानदान को शाप देकर भस्म करने से लेकर , राक्षस के साथ तू तडाक तक वे सब हथियार इस्तेमाल में लाए गए जिनसे राक्षस की बढ़िया किस्म की  बेइज्जती हो सकती थी ।सचमुच चुड़ैल के इन वचनों से राक्षस की आत्मा तक झंड हो गई। घर के अंदर तो बेइज्जती करने और कराने का उन्हें अच्छा अभ्यास था पर यहां तो मामला पड़ोसियों के सामने इज्जत का था जिसकी लंका जल रही थी । उस लंका की आग उसके दिल,जिगर और जहां जहां तक भी पहुंच सकती थी ,तबीयत से पहुंच गई । उसने एक बार चुड़ैल को आंखें दिखाईं , दूसरी बार में थप्पड़ दिखाया। पर चुड़ैल और बिगड़ गई ।उसने  आवाज़ का वॉल्यूम बढ़ाते हुए पैरों से चप्पल निकालकर हाथ में ले ली। इस दृश्य ने राक्षस की इज्जत की लंका का आखिरी बुर्ज भी जला दिया। इस जलते बुर्ज की रोशनी में , उसे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि जिस घर में इज्जत का फलूदा बन जाए,उस घर में रहने का कोई मतलब नहीं है। वाह चुपचाप अंदर आ गया और उसने शंकर जी की मूर्ति के सामने कसम खाई कि मौका मिलते ही वह इस घर को छोड़ देगा।

यह मौका उसे उसी रात को मिल गया।राक्षस ने कपड़ों से भरे सूटकेस और घर में पड़े सारे कैश के साथ घर छोड़ दिया।

सुबह जब चुड़ैल सो कर उठी तो उसने सुबह के युद्ध के लिए राक्षस का आह्वान करना चाहा पर देखा कि राक्षस नहीं था।उसने इंतजार किया पर मिनट ,घंटे ,दिन बीत गए पर गई जवानी की तरह राक्षस नहीं लौटा ।  अब तो चुड़ैल की हालत खस्ता हो गई। उसने अपने और मायके और ससुराल सबकी मदद ली। ऑपरेशन राक्षस खोज शुरू हुआ । सब संभावित जगहों पर खोज ख़बर ली गई ।इसी तरह छह महीने बीत गए । अब तो चुड़ैल का बुरा हाल हो लिया। आर्थिक समस्या तो ससुरावालों की कृपा से कुछ ना थी ,दुकान छोटे देवर ने संभाल  ही ली थी, इतनी भावुक भी ना थी कि राक्षस की  याद में रोज़ टसुए बहाती। कॉलोनी वालों के तानों से भी डरने वाली ना थी पर कहीं एक बड़ी कमी जरूर थी और वो थी कि लड़ा किससे जाए।कॉलोनी में, कामवाली से ,मार्केट में सब जगह झगड़ा करके देख लिया पर वह मज़ा नहीं आया जो अपने सगे पति से लडने में आता है। सो चुड़ैल जो थी वो खासी उदास थी और राक्षस पति का बड़ी बेताबी से इंतजार करते हुए दिन काट रही थी।

 एक दिन पड़ोस के रावत जी खबर लाए कि उन्होंने राक्षस जैसी शक्ल के आदमी को , मथुरा के बिल्लौरी बाबा के  आश्रम में देखा है।खबर मिलते ही चुड़ैल bb सब रिश्तेदारों को खबर की और  पूरे फौज फाटे के साथ ,अगले ही दिन आश्रम पर धावा बोल दिया। फौज जिस समय वहां दाखिल हुई ,उस समय राक्षस बदन पर गमछा धारण किए भांग घोट रहा था। उसका वजन और दाढ़ी दोनों तबीयत से बढ़े हुए थे ।अलबत्ता सर के बाल सफाचट थे  और उस्तरे से घुटवाया सिर चमक रहा था। राक्षस ने अपने माता पिता के चरण छुए,ससुर को नमस्ते की और चुड़ैल की तरफ सिर्फ घूरकर देखा ।फिर बोला,

" यहां क्या करने आई हो "

चुड़ैल आंखों में आंसू भरकर बोली ," आपको ले जाने आईं हूं।आपके बिना घर काटने को दौड़ रहा है ।प्लीज़ घर चलिए "।

उसका यह कहना था कि राक्षस भड़क उठा,बोला ," दुष्ट स्त्री,किसका घर ,कैसा घर ? मैं सन्यासी हूं। सन्यासियों के भी भला कहीं घर होते हैं।चुपचाप वापस जाओ मुझे और भी जरूरी काम  हैं।" इतना कहकर वह जरूरी काम निबटाने यानी भांग घोटने बैठ गया। अब तो चुड़ैल ने खूब चिरौरी की।मां बाप ने समझाया ,ससुराल वालो ने लल्लो चप्पो की। पर राक्षस ने किसी की नहीं सुनी वह भांग घोटने में ही व्यस्त रहा। थक हार कर घर ससुराल की फौज  चुड़ैल सहित वापस लौट आई।घर  लौटकर चुड़ैल बहुत परेशान रही । अकेलेपन का एहसास जो था वह तो था ही। इतने दिनों का जो लड़ने का अभ्यास था उसके भी छूट जाने का डर था।वैसे भी लड़ना जो था वह सिर्फ एक सामान्य क्रिया नहीं थी ,वह तो मनोरंजन, जरूरत , वाक् चातुर्य   ,युद्ध कला में निष्णात होने का प्रदर्शन आदि बहुत कुछ था।इस अभ्यास के छूटने से भविष्य में बहुत खतरे हो सकते थे।इसी कारण वह कई बार आश्रम हो आई , उसने राक्षस को मनाने की हरचंद कोशिश की। मुस्कान दिखाईं, आंसू दिखाए ,  ठोक मात्रा में कसमें खाई  ,यहां तक कि आत्महत्या तक  ट्राई करने की धमकी दी  पर राक्षस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।उसने लौटने की हामी नहीं भरी।

एक दिन चुड़ैल दोपहरी में, राक्षस के साथ युद्ध के क्षणों को मेमोराइस करके देख रही थी और आंखों की बगिया में आंसुओं के फूल उगा रही थी । तभी आरडब्लयू ए की सेकेट्री की अगुआई में ,महिलाओं का एक प्रतिनिधि मंडल उसके फ्लैट पर पहुंचा । उसने अल्टीमेटम दिया कि या तो श्रीमती चुड़ैल अपने पति को महीने भर में वापस  लाएं । नहीं तो उसके खिलाफ अनशन किया जाएगा।चुड़ैल चौंकी।भला ये नई मुसीबत कैसी । उसने कारण पूछा तो विन्नी रानी ने परेशान स्वर में बताया -"कॉलोनी के 40 पर्सेंट पतियों ने धमकी दी है कि यदि पत्नी समुदाय उन्हें परेशान करेगा तो वे भी राक्षस जी  की तरह साधु बन जाएंगे। " ।मिसेज शर्मा तो भिनभिनाकर बोली," बहन जी आपके चक्कर ने तो हमारी ज़िन्दगी बर्बाद कर रखी है।भला हम अपने पतियों से  भी नहीं लड़ेंगी तो क्या बाहर लड़ने जाएंगी। हमने शादी क्या इसी दिन के लिए की थी।" कहते कहते उनके आंसू निकल पड़े।उनकी रुलाई से इतना ज़ोरदार समां बंधा कि सबने अपना अपना रोने का कोटा पूरा कर लिया।जाते जाते वे धमकी दे गईं कि  अगर महीने भर में राक्षस जी नहीं लौटे तो वे उन्हें भी इस कॉलोनी में चैन से रहने नहीं देंगी ।

उनके जाने के बाद चुड़ैल का माथा ठनका।वह एक बार फिर बाबा के आश्रम में पहुंची ।इस बार उन्होंने अपने साथ अपनी दोनों छोटी बहनों को भी साथ ले लिया जो चुड़ैल से कई बार शिकायत कर चुकी थीं कि जिज्जा जी की नीयत में खोट है,वे  उन्हें ऐसी वैसी नजरों से  देखते हैं ।वे बेचारी भी बहन का घर बचाने के लिए खुद को ऐसी वैसी नजरों के हवाले करने को तैयार हो गईं । पर आश्रम जाकर उन्हें भी निराशा हुई क्योंकि राक्षस ने उन्हें ऐसी वैसी तो क्या कैसी भी नजरों से नहीं देखा । वह तो नज़रे झुकाए एक बात ही दोहराता रहा - मैं सन्यासी हूं। सन्यसियों के घर नहीं होते हैं।" काफी देर की मशक्कत के बाद भी नतीजा नहीं निकला।सो तीनों बहने निराश होकर लौट आईं।

एक दिन ऐसे ही चुड़ैल टेंशनियाई मुद्रा में बैठी थी तो यकायक उसे ख्याल आया कि क्यों न वह अंजलि से बात करे। अंजलि  अपने खुराफाती दिमाग की वजह से सहेलियों में प्रसिद्ध थी और आजकल राजधानी में वकालत की प्रैक्टिस कर रही थी। उसे लगा कि राक्षस की घर वापसी में अंजलि की मदद ली जा सकती है।उसने अंजलि को फोन पर सारा मामला समझाया। सलाह मांगी। सलाह के नाम पर अंजलि को याद आया कि वह  सहेली होने के अलावा एक प्रोफेशनल वकील भी है तो उसने चुड़ैल को अपना एकाउंट नंबर बताकर उसमें सलाह की  ऑनलाइन फीस जमा करने की मांग की।चुड़ैल ने उसे मन ही मन में गलियाते हुए फीस ट्रांसफर कर दी।इसके बाद अंजलि ने वकील का रूप धारण कर लिया ।उसने अपने क्लाइंट को कुछ फंडू सलाहें दी। वह  उसे देर तक  समझाती रही। इस बीच चुड़ैल के चेहरे के भाव लगातार बदलते रहे। वह चार बार चौंकी,पांच बार उसकी आंखें फैलकर कानों तक पहुंच गईं और हे भगवान ,ऐसा हो सके है का 'उच्चारण तो उसने पूरे डेढ़ दर्जन बार किया । आखिर में उसने एक बार बड़ी दीनता से पूछा ,ऐसा करने से मेरे वो  सच्ची में घर आ जाएंगे ना ? अंजलि ने उसे विश्वास दिलाया, बोली," वो तो वो उसका बाप भी आएगा।तुम बस जल्दी से  काम शुरू कर दो।" चुड़ैल के दिल को थोड़ा चैन पड़ मिल गया।

जल्दी का काम तो शैतान और चुड़ैल को वैसे भी पसंद होता है । यहां तो मौका,दस्तूर और जरूरत तीनों की जुगलबंदी थी सो  पहले राउंड में उसने अपने सास ससुर से फोन पर बात की। वे थोड़ी देर कि ना नुकुर के बाद मान गए ।फिर अपने मायके गई,भाई के कान में कुछ फुसफुसाई  । भाई चौंका ,फिर हंसा और फिर हामी भर दी।अब रह गया ,राक्षस का जिगरी दोस्त मिट्ठन। वह तैयार ही नहीं हो रहा था।हारकर चुड़ैल को उसे धमकी देनी पड़ी कि कॉलोनी की जिस  महिला से मिट्ठन का नैन मटक्का चल रहा है,उसकी खबर वह मिट्ठन की बीवी और उस महिला के पति को दे देगी।यह सुनते ही दोस्त की भैंस पानी में उतर गई । इसी के साथ उसे बड़ा कीमती  ज्ञान प्राप्त हुआ कि अगर उसने मित्र पत्नी की बात नहीं मानी तो उसे जल्दी ही किसी आश्रम में लंगोटी पहनकर भांग घोटनी पड़ेगी। लिहाज़ा वह भी हां के घोड़े पर सवार हो गया। मतलब सारे किले फतह ही लिए।

इस घटना के अगले ही  दिन चुड़ैल का भाई ,बाबा के आश्रम पहुंचा। जीजा के दर्शन किए और हाथ जोड़कर उसने अपनी जिज्ञासा रखी ," जीजाजी, तो आपने पक्की ठान रखी है ना कि आप सन्यासी ही बने रहोगे। घर कभी वापस नहीं आओगे ?"

राक्षस साले के प्रश्न से अंदर ही अंदर चौंका पर राग उसने पुराना ही अलापा।

"हम सन्यासी हैं।संन्यासियों का कोई घर बार नहीं होता।"

"मतलब  आपका फैसला पक्का है। अब आप कभी ना लौटोगे। " साले ने सवाल  दोहरा दिया ।जीजा ने भी जवाब ना बदला।

इस पर साले ने गहरी सांस लेते हुए बैग से कुछ कागज निकाले और राक्षस के सामने रख दिए और बोला,"  लो जीजाजी,तो फिर इन कागजो पर दस्तखत कर दो।"

ये कागज किस चीज़ के हैं ? अबकी बार राक्षस चौंका ।

"तलाक के, आपसी रजामंदी वाले तलाक के। आप साइन कर दोगे तो जिज्जी भी मुक्त हो जाएंगी । सोच रहे हैं कि जिज्जी की दूसरी शादी करा दें।"

यह सुनते ही राक्षस के गमछे में बंधे कई सारे तोते उड़ने को तैयार हो गए । वह तपाक से बोला, यह क्या कह रहे हो तुम्हारी बहन ना तो तलाक लेगी ना ही दूसरी शादी करेगी। ऐसा कभी नहीं हो सकता। तुमने उससे बात की है ना। '

साला राक्षस के तेवरों से कतई प्रभावित नहीं हुआ बोला," हां जीजाजी ,जिज्जी से बात हो गई है। वो तैयार हैं।ये देखो उनके दस्तखत ।"  उसने काi से दस्तखत देखे । दस्तखत तो चुड़ैल के ही थे ।उसे बहुत ज़ोर पड़ा। उसके बाद भी वह खुद को सांत्वना देते हुए बोला ,"चलो , यह तो उसने गुस्से में कर दिया को पर दूसरी शादी वह कभी नहीं करेगी । वह बहुत पतिव्रता स्त्री है  । मुझसे प्यार भी बहुत करती है । मैं तो कहता हूं ..." साले ने राक्षस की बात पूरी नहीं होने दी । बोला ,"  मैं जिज्जी से बात कर चुका हूं।पहले तो वो ना नुकुर कर रही थी। पर हमने समझाया तो वे मान  गईं।फिर थोड़ा रुककर बोला," एक बात और बताऊं जीजाजी ,हमने तो उनके लिए एक रिश्ता भी देख लिया है। जिज्जी उसे पसंद भी है । आप भी उसे जानते हैं ?

ना चाहते हुए भी राक्षस पूछ बैठा ," कौन है वो ?

"अरे वही अपना बांके ,जिसकी चक्की है घंटाघर पे।उसकी घरवाली गुजर गई थी पार साल बीमारी में। क्यों जीजाजी ,ठीक रहेगा ना अपनी जिज्जी के लिए ?" साले ने बड़े भोलेपन से पूछा ।

पर  जवाब जीजा के गले में फंस गया। राक्षस एं एं , करते हुए ही रह गया।

साले ने उसकी इस अवस्था का कुछ देर आंनद लिया फिर कागज निकालकर राक्षस के सामने रख दिए ।फिर पेन उसकी तरफ बढ़ाया हुआ  बोला " लो जीजाजी , साइन कर दो तो मैं चलूं।"

राक्षसने काफी समय पेन और कागजों  को देखने में खर्च किया । उसके बाद थोड़ी देर तक सोच की चिड़िया उड़ाई और फिर फंसे फंसे स्वर में बोला,'  कागज यही छोड़ जाओ । आज अपवित्र दिन है हमारे गुरुजी का कहना है कि आज के दिन किसी भी कागज पर दस्तखत नहीं करने चाहिए। फिर किसी दिन आ जाना।अब जाओ हमारा ध्यान का समय हो रहा है।"

साला सब समझ गया कि मुर्गी ने दाना चुगना शुरू कर दिया है । वह अंदर ही अंदर मुस्कराते हुए चला गया।उसके जाने के बाद राक्षस ने ध्यान लगाने की बहुत कोशिश की। पर जैसे ही ध्यान लगाता, आंखे बंद करते ही चुड़ैल और टकले बांकेलाल के फेरों से लेकर सुहागरात तक के संभावित दृश्य  सामने आने लगते।राक्षस घबरा गया।उसने दनादन तीन गिलास भांग के चढ़ाए ।तब जाकर दिमाग की बत्ती जली। इस बत्ती की रोशनी में उसने अपने पिता को फोन किया। उनसे साले की बातों की दरयाफ़्त की। पिता ने भी वही कहा । फिर उसने मां से बात की । मां बोली ,"  बहू ki ji तुमसे तलाक मिलते ही बांके के साथ ब्याह कर लेगी। बांके बहुत अच्छा आदमी है। हमें और बहू दोनों को पसंद है । "मां अभी कुछ और कहती, इससे पहले ही उसने फोन काट दिया। ।उसके मन में इमली का खट्टा पानी घुल चुका था।उसको कल नहीं लगीअगला फोन उसने अपने जिगरी दोस्त मिट्ठन को किया। उसने भी साले की बातों की ही तस्दीक की।  उसने उसे सलाह भी दी कि वह इस काम में देरी न करे।भाभीजी  का दुबारा घर बसाने में  योगदान देकर अपने बड़े दिल का परिचय दे।

इस बार भी राक्षस को फोन काटना पड़ा। उसके मूड की बत्ती गुल हो ली। उसने बत्ती जलाने के लिए एक बाबा से चिलम मांगी। उससे सुल्फे के चार कश लगाए।बाबा के सोने के बाद  बाबा के चोगे की जेब से एक पांच सौ का नोट निकाला और सीधे अपने शहर की ट्रेन पकड़ ली।

ट्रेन सुबह  पांच बजे पहुंच गई।वहां से वह रिक्शा लेकर सीधे बांके के घर पहुंचा । बांके अपनी आदतों के मुताबिक घर के पास की सड़क पर टहल रहा था। यूं तो अभी धुंधलका था पर राक्षस ने एहतियातन अगोंछे से मुंह ढक लिया और घर लिया बांके को। कर दी ,दे दनादन।बांके पूछता ही रह गया कि भाई ,कौन हो और मुझे क्यों मार रहे हो ? पर उसने कोई जवाब नहीं दिया और सिर्फ मारने पर ही कंसंट्रेट किया। पिटते पिटते बांके बेहोश  हो गया।तब राक्षस ने अपने घर की राह  ली।  सात बज चुके थे ,दिन निकल आया था।उसने  सांकल बजाई ।चुड़ैल बाहर आयी।राक्षस को देखते ही समझ गई कि वकील की फीस के पैसे वसूल हो गए। अंदर से खुश हुई । कहना तो कुछ और चाहती थी पर मुख से कुछ और ही शब्द निकले। चेहरे पर अपने आप  रुखाई का जुगाड हो गया। मुंह बनाकर  बोली ," क्यों ,क्या हुआ। भगा दिया ना आश्रमवालों ने। वो भी नहीं झेल पाए तुम्हारी हरकतों को। लौटकर आए ही गए ना घर। हम्म। बड़े गए थे सन्यासी बनने ।"

राक्षस को ऐसे सत्कार की उम्मीद कतई ना थी। वह भड़क गया , बोला" हां हां जानता हूं।मेरा आना तुझे क्यों अच्छा लगेगा । तू तो उस टकलू बांके की दुल्हनिया बनने जा रही थी ना। मेरे आने से तेरे सपने धूल में जो मिल गए "। वह कुछ और कहता तब तक तो चुड़ैल की जुबान की बंदूक से भी दनादन गोलियां छूटने लगीं।एक और युद्ध छिड़ गया। एक घंटे के बाद इस युद्ध का तोड़  इन डायलॉगों पर छूटा।

चुड़ैल चिल्लाकर बोली ," तुम कभी नहीं बदल सकते । तुम रहोगे राक्षस ही।

राक्षस ने भी उतने ही जोर से चीखकर कहा ," और तुम भी चुड़ैल ही रहोगी।खून चूसने वाली भयानक चुड़ैल।

उनके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर पड़ोसी फिर से बालकोनी में आ पहुंचे। यह दृश्य देखकर राधे चच्चा ने अपनी श्रीमती जी से कहा ,देखा, आखिर भगवान ने इनकी सुन ही ली। इनकी जिंदगी फिर पहले जैसी हो गई।भगवान ,तुमने जैसी इनकी जोड़ी बनाई ,ऐसी ही सबकी बनाना।

जी 186 ए,एच आई जी, प्रताप विहार , गाजियाबाद-201009

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किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

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