( १)
राजा बलि के पास से,मुक्त हुए भगवान।
दानवीर ने वचन का,किया सदा सम्मान।।
किया सदा सम्मान,सूत्र रक्षा कहलाया।
लक्ष्मी हुईं अधीर,पुनः प्रभु को लौटाया।।
वचनबद्ध हो वीर, लोक पाताल विराजा।
दानवेन्द्र था धीर,प्रतापी अद्भुत राजा।।
(२)
रक्षाबंधन में बँधे, छोड़ भगे सब काज।
जहाँ पुकारीं द्रौपदी,वहीं बचाने लाज।
वहीं बचाने लाज,भागकर प्रभुवर आए।
वचनबद्धता धर्म,कृष्ण को अतिप्रिय भाए।
देव-दनुज-गंधर्व, इंद्र,मानव, यदुनंदन।
सबका है प्रिय पर्व,आज का रक्षाबंधन।।
(३)
रक्षाबन्धन के लिए,बहना है तैयार।
लिए आरती थाल को,और लुटाने प्यार।।
और लुटाने प्यार,आज त्यौहार मनाने।
भाई भी तैयार,खड़ा है फर्ज निभाने।।
करता 'चन्द्र दिनेश' सभी का है अभिनंदन।
आओ मिलकर आज,मनाएँ रक्षाबन्धन।।
(४)
रक्षा- सूत्र बँधाइये,पर हो इतना ध्यान।
महिलाएँ अबला नहीं,हो इसका संज्ञान।।
हो इसका संज्ञान,आज सक्षम है नारी।
दुर्गा काली रूप,नहीं है वह बेचारी।।
नारी आज 'दिनेश',सभी क्षेत्रों में दक्षा।
खुद सक्षम हैं आज,नहीं आवश्यक रक्षा।।
दिनेश श्रीवास्तव
ग़ाज़ियाबाद
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