रविवार, 1 अगस्त 2021

कौआ कान ले गया !/ मार्टिन जॉन

बंधुओं  ! आपने गौर किया होगा कि आपकी फ्रेंड लिस्ट में कुछदोस्तों की सजगता ,सतर्कता क़ाबिले-गौर , क़ाबिले तारीफ़ होती है | कुछ ऐसी मुस्तैदी से इस पटल पर वे आवा-जाही करते हैं कि 'कौआ कान ले गया ' सुनते ही दौड़ पड़ते हैं उस परिंदे के पीछे , बग़ैर अपने कान देखे ! दरअसल इन बंधुओं को इस प्लेट्फ़ॉर्म पर कूदने-फांदने की आदत- सी हो गई है - अपशब्दों , मुद्दों के विपरीत अनर्गल तर्कों , प्रलापों के भोथरे हथियारों को लेकर विचारों के रणक्षेत्र में |

    बीते दिन , कुछ ऐसा ही कडुवा अनुभव से गुज़ारना पड़ा मुझे | हुआ यह कि 'पाखी' पत्रिका के संपादक सम्मानीय अपूर्व जोशी ने किन्हीं हर्षवर्द्धन पाण्डेय की वाल से एक पोस्ट शेयर किया था , जिसमें इस समाचार का उल्लेख था , "स्वर्ण मंदिर की तरफ से कहा गया कि समूचे पंजाब के वेंटिलेटर और पीपीई किट की आपूर्ति करेंगे , यह है धर्म ! गंगा स्नान से ही पुण्य नहीं मिलता !"

     मुझे पोस्ट अच्छी लगी | मैंने साभार अपनी वाल में डाल दी | बस फिर क्या था , सब टूट पड़े मुझ पर !  मुझको संबोधित कर किसी ने तंज़ कसा कि मूढ़ता भरी टिप्पणी से मोक्ष मिलेगा , किसी ने व्यंग्य किया मुझे स्वर्ग मिलेगा , किसी ने  एक अंगुली उठाने पर चार अंगुलियां उठाये जाने की धमकी दे डाली | और तो और एक बहन और भाई  ने तो मामले से अलग जाकर चर्च को घसीट लाए  और उसके नकारेपन को साबित करने में जुट गए | कुछ ज़्यादा ही चहलक़दमी करने वाले , हर किसीकी पोस्ट पर अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराने  वाले , मेरे बेटे के हमउम्र, नौजवान क़लमकार ने मुझ जैसे लिखने -पढ़ने लिखने वाले को इन सब से ऊपर रहने, जकड़न भरी सोच को बदलने  की सलाह दे डाली |

    इन बंधुओं ने ओरिजिनल पोस्ट राइटर का नाम देखने की ज़रुरत नहीं समझी |  अरे भाई , पहले यह तो देख लिया होता कि पोस्ट राइटर कौन है | पोस्ट राइटर मार्टिन जॉन नहीं वरन हर्षवर्द्धन पाण्डेय हैं | खंडन -मंडन , जो भी किया आपने , पाण्डेयजी को संबोधित करके करना चाहिए था | उन्हीं से आपको माकूल ज़वाब मिल जाते |

    वैसे , इस पोस्ट से मेरी सहमति इसलिए बनती है कि मैं  इस कथन पर दिली यक़ीन करता हूं "सोबार ऊपरे मानुष सत्य !" मनुष्य बचा रहेगा तो बचा रहेगा परिवार , समाज और राष्ट्र | मनुष्य को और उसकी मनुष्यता को बचाए रखना पुनीत कार्य ही नहीं , यही सच्चा और परम धर्म है | इस संकट की घड़ी में पाण्डेयजी की ख़बर (जिसकी सत्यता का दावा मैं नहीं करता ) के अनुसार मनुष्य को बचाए रखने की मुहिम की पवित्रता गंगा स्नान कर पुण्य अर्जित करने की तुलना में अग्रणी स्थान रखता है कि नहीं --सहमति -असहमति इसी मुद्दे पर होनी चाहिए थी | लेकिन खेद है , मित्रों ने तंगनज़रिए और तंगख्याली का परिचय देते हुए मुझको संबोधित कर जबरन चर्च को घसीट लाया | अरे भाई 'मेरा सब सर्वश्रेष्ठ , तेरा सब निकृष्ट ' वाला मामला है कहां है इसमें ? बग़ैर चर्च को  घसीटे भी तो अपनी सहमति -असहमति जतायी जा सकती थी | चर्च को लेकर  ऐसा दृष्टिकोण  जताना  इस बात को प्रमाणित नहीं  करता  है कि आपके मन में समुदाय विशेष के प्रति वैमनस्य , विद्वेष की भावना फल - फूल रही है | सच तो यह है कि गोदी मीडिया के शर्मनाक आचरण के इस दौर में इस ख़बर से बाख़बर होने नहीं दिया जाता है कि संक्रमण काल  में चर्च की क्या -क्या भूमिका रही है , उसकी कैसी भागीदारी रही है |

     जानकारी के लिए बताये देना ज़रूरी समझता हूं कि बीते साल , कोरोना काल में दक्षिण भारत के चार चर्चों ने अपनी धार्मिक गतिविधियां स्थगित कर , उन्हें क्वारंटाइन सेंटर में बदल दिया गया था | पीएम केयर फंड के लिए देश के सभी चर्चों ने करोड़ों रूपये चंदा उगाही कर सम्बंधित मंत्रालय को सौंपा था | कई बस्तियों में मुफ़्त भोजन वितरण किया गया | ........स्वास्थ्य , चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में उसकी भागीदारी जग जाहिर है | शासक -प्रशासक , नेता , मंत्री यहीं के प्रोडक्ट हैं |

    अफ़सोस है , ये तमाम कल्याणकारी गतिविधियां कभी ख़बर नहीं बनी | योँ कहे बनने नहीं दी गई | मीडिया का पक्षपाती रवैया कल भी था और आज भी है |

     यक़ीन करना पड़ रहा है कि बीते कुछ सालों में सत्ता केन्द्रित शक्तियों ने लोगो की मानसिकता कुछ इस तरह तैयार कर दी है कि अल्पसंख्यक समुदाय की प्रतिरोधी , किन्तु सच बातें क़तई बरदाश्त की जाती | ....आनन्- फानन में टूट पड़ते हैं सच के प्रवक्ताओं पर !

    अभी अभी 'विश्व्गाथा' पत्रिका के संपादक (पंकज त्रिवेदी) के संपादकीय में गुजराती कवि जयंत डांगोदराकी काव्य पंक्तियां पढने को मिली --- " तमारा तीर-तुक्काने सभा गंभीरताथी ले , कहुं जो हूं कशुं तो कांकरीचालो बनी जातो |" अर्थात आप जो तीर और तुकबंदी करते हैं उसे सभा गंभीरता से लेती है | मगर मैंने कुछ कह दिया तो चिंगारी बन जाती है |

        इसी सन्दर्भ में शायर अकबर इलाहबादी का ये शे'र मौजूं  है ---

        "हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम , वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता |"

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